minni mishra

Tragedy Classics Inspirational

3.4  

minni mishra

Tragedy Classics Inspirational

दो पाटन के बीच

दो पाटन के बीच

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अक्सर रात को सोते समय हम दोनों के बीच चाँद की गंध आ जाती और मैं बैचेन, चुपचाप आँसू बहाती। पति से कुछ पूछने की मुझे हिम्मत ही नहीं होती!

एक दिन फिर ऐसा ही हुआ,सारी रात चाँद की गंध से बेचैन रही, मैं तिलमिला उठी!

ऐसा लगा जैसे मेरे देह पर एक साथ कई देवियाँ सवार हो गईं हैं और मैं खुद से बातें करने लगी--- 

"अब अधिक बर्दाश्त नहीं करूँगी ! इस अनमोल जिंदगी को क्यों तबाह होने दूँ ...? ! अम्मा से सुनी बातें, “मर्द की जात अधूरी औरत नहीं अपनाती।" यह मुझे सच लगने लगी।मैं माँ बनना चाहती हूँ..मुझे पति का पूर्ण समर्पण चाहिए।

अन्याय..सहना अन्याय को बढ़ाबा देना हुआ न, मैं अपने अधिकार को लड़कर हासिल करूँगी।

पति खुद मज़े से नौकरी करता है, और अय्याशी भी। उसने स्कूल में लगी टीचर की नौकरी मुझे छुड़वा दिया !नौकरी रहती, तो आज मैं शहर की नामी साइंस टीचर कहलाती ... पैसे वाली भी! और तब इज्जत खुद ही मेरे पास दौड़ कर आती!

 मैं जब कभी पति से दुबारा नौकरी शुरू करने की चर्चा करती हूँ, उबलते पानी की तरह वो खौलने लगते हैं, कसकर मुझे फटकारते, “ चुपचाप सिर्फ घर संभाल...नौकरी का ख़्वाब छोड़ दे !” 

नौकरी भले भांड में जाए, परंतु मैं चांद को हरगिज बीच में नहीं रहने दूँगी।

 बगल में सोये पति को धक्के मारकर मैंने उठाया, “अरे...आपके शरीर से चाँद की बू आ रही है !”

उठते ही उसने मुझे खींच कर एक थप्पड़ मारा, ”बदतमीजी की हद्द होती है, रात को भी तुम चैन से सोने नहीं देती! क्या...चाँद...चाँद का रट्टा लगाए रखी हो...!”

लेकिन मैं अंगद की पाँव की तरह अडिग रही। हूँ हहह! आज सोने नहीं दूँगी, सच-सच बताइए,चाँद से शारीरिक संबंध रखते हैं या नहीं ? ” मैंने उन्हें झकझोरते हुए पूछा।

“हाँ, है मेरे संबंध...चाँद के साथ, उससे बेपनाह मुहब्बत करता हूँ। जल्दी निकाह भी करने वाला हूँ, समझी ?”

निकाह ?!सुनते ही सरहाने की दीवार से सर पटककर मैं गरजने लगी,“बताओ ..मुझे साथ रखोगे या चाँद को ?!”

"तुम्हे भी ! क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हूँ।” 

“ प्या..र, या...समझौता ? चाँद के साथ संबंध,आपके मुँह से यह सुनकर घृणा होने लगी है आपसे ! जल्द से जल्द मुझे तलाक चाहिए।” 

“ मैं हरगिज़ तलाक नहीं दूँगा।” 

पति ने ऊँचे स्वर में जवाब दिया।

"क्यों नहीं ...?" क्रोध और आक्रोश के कारण मेरा शरीर जोर से काँप रहा था, लेकिन मन दृढ़ था।

“ क्योंकि, मैं नहीं चाहता कि इस वजह से तुम्हारी तीन बहनें... कुँवारी रह जाएं।"

" पतित मर्द ! अपनी पत्नी के साथ जो विश्वासघात कर सकता है,वह खाक उसकी बहन के सुहाग के बारे में चिंता करेगा?" मेरा हृदय प्रतिशोध की ज्वाला में धधक उठा। इस चाहरदीवारी के अंदर दम बहुत घुट रहा है मेरा। 

मैं अर्द्धविक्षीप्त की तरह अपना जरूरी सामान झोले में ठूंस, उसे कंधे पर लटकाते हुए ..अनजान रास्ते पर बाहर निकल पड़ी। 

दू...र क्षितिज में... भोर का तारा मुझे प्रकाश पूंज की तरह राह दिखा रहा था। मैं उसी ओर बढती गयी,चलते-चलते सही जगह पहुँच गयी.. मंदिर में, मतलब न्यायालय ..न्याय का मंदिर,जहाँ फरियाद की गुहार लगाई जाती है।

 इसी मंदिर ने मेरी फरियाद सुनी। न्यायालय से नोटिस मिलते ही पति को न्यायालय का चक्कर शुरू हो गया। वहाँ कटघरे में खड़े होकर जज के सामने वो जलील होने लगे। और मैं आनंदित!जैसी करनी वैसी भरनी!  

इस बात की भनक लगते ही दो टके की चाँद ने तुरंत अपनी दिशा बदल ली। अब चाँद की गंध हमारे नथुनों से कभी नहीं टकराती। पति भी इन बातों को अब अच्छी तरह से समझने लगे थे।

चाँद का हमारे जीवन में न रहना, मेरे‌ दगध तन-मन को ठंडक पहुँचा रही थी, क्योंकि मैं गर्भवती हो गई !


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