दिल तो बच्चा है जी
दिल तो बच्चा है जी
सही में हर इंसान के दिल में एक बच्चा छिपा होता है जो समय समय पर बाहर भी आ जाता है।
कुछ लोग उस दिल के बच्चे को अपने गंभीरता के पीछे छुपा कर रखते हैं।उनको ऐसा लगता है कि अगर हम खुलकर बच्चे जैसा जिएंगे तो लोगों को क्या कहेंगे। जबकि ऐसा होता नहीं ।
दिल तो हमेशा बच्चा ही रहता है बच्चों के साथ बच्चा और बड़ों के साथ बड़ा जैसी परिस्थिति वैसा।
एक सच्चा संस्मरणः
करीब 20 ,25 साल पहले की बात है उनकी उम्र करीब 80 साल की रही होगी मगर हमेशा बच्चों के साथ में खेलना बिल्कुल उसी तरह से चीटिंग करना जैसे बच्चे करते हैं एक दूसरे के पत्ते देखना, छुपा देना , कैरम की गोटी यों के अंदर मस्ती करना सभी कुछ चलता ।वे हमेशा बच्चों के साथ बच्चे ही बने रहते । लगता ही नहीं था कि इनकी उम्र इतनी ज्यादा है।
ऐसे करते हुए दिवाली आई दिवाली के समय सबके लिए पटाखे लाए जाते। तो उन्होंने अपने छोटे छोटे से पटाखे छोटी वाले बम की लड़ी छिपा कर रख लिए।
सब लोग छत पर पटाखे फोड़ रहे थे, और वे चुपचाप चुपचाप अपने हाथ में बच्चों की देखा देखी 1,1 बम लेकर के फोड़ रही थी।छत पर बहुत सारे लोग थे सब ने बोला हमारे साथ आओ । इधर पटाखे छोड़ो मगर वह बोले हम यही ठीक हैं। और वह पटाखे फोड़ते हुए उनकी ओढनी में थोड़ा जल् गया।और थोड़े से हाथ पर भी जला होगा मगर उन्होंने डर के मारे किसी को नहीं बताया। दूसरे दिन जब उनकी ओढ़नी धोने में आई तब पता लगा कि इतने सारे छेद हो रहे हैं।सब बच्चे पीछे पड़ गए तब वह हंसने लगी और बोले क्या हाथ में बम फोड़ना तुमको ही आता है। तब हम लोगो ने उनके हाथ भी देखे तो हाथ भी काफी जले हुए थे ।मगर वे बच्चों के जैसे बहुत खुश हो कर हंस रही थी।
सच में उनकी हंसी देखकर उनकी खुशी देख कर ऐसा ही लगा कि बुढ़ापा भी बचपन ही होता है । और हर इंसान के दिल में एक बच्चा रहता है।