्दीवाली की पार्टी
्दीवाली की पार्टी
जमुना की आँखों से लगातार गंगा यमुना बह रही थी। धीरे धीरे रोना क्रंदन में बदल गया फिर विलाप में। स्वर्गवासी माई बापू और बाबा को जी भर उलाहने दे जब वह थक गई तो रोना सिसकियों में ढल गया।उफ़ त्यौहार के दिन भी कोई ऐसे रोता है वो भी इतने बड़े त्यौहार के दिन। लेकिन जमुना का रोना बदस्तूर जारी था।
पिन्नी और सोमू ने थोड़ी देर तो माँ को असमंजस में देखा फिर बाहर भाग गए। बाहर चारों ओर बिजली की लड़ियों की झिलमिलाहट थी। छूट रहे पटाखों की ठाए- ठाय थी। पूरा शहर रौशनी में नहाया हुआ कितना बदला बदला लग रहा था।
बच्चे आगे बढ़ कालोनी की कोठियों के सामने पहुंच गए। थोड़ी देर में भैया लोग बाहर निकल पटाखे फोड़ेंगे तो देख कर ही मजा ले लेंगे। पिन्नी ने सोमू को देखा मानो होंसला दे रही हो।
मंदिर जाने के लिए निकली यामिनी की नज़र इन मैले कुचैले फटे कपड़ों में लिपटे बच्चों पर पड़ी।
अरे तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?
मिठाई खाओगे ?
सोमू ने सवालिया निगाहों से बहन को देखा।बहन ने आँखों से मना किया।
पर मुँह से दोनों ही कुछ नहीं बोले। यामिनी हँस पड़ी।पूजा की थाली से ही मुट्ठी भर मिठाई बच्चों की नन्ही हथेली में भर दी।
पटाखे ….....
पटाखे चाहिए बच्चों को। लो भाई फुलझड़ियाँ भी लो।
बच्चों के मुरझाये चेहरे गुलाब की तरह महक उठे। यामिनी के चेहरे पर भी असंख्य दीपों की आभा झिलमिला उठी।