धनु कोष्ठक - ३१
धनु कोष्ठक - ३१


लेखक: सिर्गेइ नोसव
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
10.00
ब्रेकफ़ास्ट नींद की भेंट चढ़ गया. बाकी की चीज़ें भी वह नींद के कारण खो देता.
11.09
कागज़ पर नज़र डालकर कपितोनव खिड़की की ओर बढ़ता है:
“मुझे इन्वेस्टिगेटर चिर्नोव के पास जाना है.”
“क्या सम्मन पे?”
“नहीं इन्विटेशन है.”
कपितोनव के पासपोर्ट को पढ़ने के बाद, ड्यूटी-ऑफ़िसर चोंग़ा उठाता है, कुछ देर किसी से बात करता है.
“रूम नं 11.”
इन्वेस्टिगेटर चिर्नोव, मेयर ऑफ़ जस्टिस, ऑफ़िस की मेज़ पे बैठा है, उसके सामने कम्प्यूटर रखा है. इन्वेस्टिगेटर की पीठ के पीछे, कमरे के कोने में गन्दे-हरे रंग की बड़ी भारी सेफ़ रखी है, उसके ऊपर माइक्रोवेव और इलेक्ट्रिक-केटल है. इन्वेस्टिगेटर का चेहरा हाइपर टेंशन के मरीज़ जैसा फूला-फूला है.
“बैठिए, येव्गेनी गिन्नाद्येविच. ये तो अच्छा हुआ कि आप भागे नहीं. मगर देर करना – बुरी बात है.”
कपितोनव ख़ाली कुर्सी को मेज़ से दूर खिसका कर उस पर बैठ जाता है. कमरे में एक और कुर्सी है, मगर उस पर बैग रखी है.
“आप तो कल जाने वाले हैं ना, क्या टिकट खरीद लिया है?”
“कल क्यों? आज ही.”
“आज,” इन्वेस्टिगेटर ने बिना झिझके कहा. “ये कुछ समझ में नहीं आता...”
कपितोनव ख़ामोश रहता है. ये कहना ठीक नहीं है, कि फ्लाइट ढ़ाई घण्टे बाद है, ख़तरनाक होता, उसे पकड़ कर बन्द भी कर सकते थे.
“पहले मुझे इस बात का जवाब दीजिए. क्या ‘तालाब’ के साथ आपके संबंध अप्रिय थे?”
“नहीं, हमारे संबंध अप्रिय नहीं थे.”
“तो फिर बताइए, आप दोनों के बीच वहाँ हो क्या रहा था. और ये भी, संक्षेप में, कि आप दोनों ही वहाँ, गोदाम में, कैसे पहुँचे, बगैर किसी प्रत्यक्षदर्शी के.”
“जानते हैं, मैं दो अंकों वाली संख्याएँ बूझता हूँ.”
“हाँ, मुझे इस बारे में बताया गया है.”
“कॉन्फ़्रेन्स थी. इंटरवल था. इंटरवल ख़त्म हो रहा था, सेशन शुरू होने में सिर्फ पाँच मिनट बचे थे. ‘तालाब’ मेरे पास आया और बोला, कि अभी काफ़ी समय है दिखाने के लिए...मतलब, वो, जिसका मैंने उससे वादा किया था...इससे पहले...स्क्रीन रखकर. और उस कमरे में था एक पार्टीशन, एक बुलेटिन-बोर्ड, उस पर नए साल का इश्तेहार लटक रहा था...”
“नए साल वाला?”
“हाँ, पुराना. और ये पार्टीशन, ‘तालाब’ की राय में, हमारे लिए स्क्रीन का काम दे सकता था. ‘तालाब’ ये सोचता था, कि उसके चेहरे पर, जैसे, लिखा होता है, कि वह क्या सोच रहा है...और मैं पढ़ सकता हूँ, कि उसने कौन सी संख्या सोची है. इसीलिए स्क्रीन की ज़रूरत थी. मतलब, उस परिस्थिति में, वह पार्टीशन...हम उसे सरका कर कमरे के बीचोंबीच ले आए. ‘तालाब’ उसके पीछे चला गया, मैं इस तरफ़ रह गया. मैंने उससे दो अंकों वाली संख्या सोचने की विनती की, हमेशा की तरह. उसने सोचा 21. फिर उसने एक और संख्या सोची, और मैंने वह भी बूझ ली, अब याद नहीं है कि कौन सी थी.”
“ताज्जुब की बात है कि आपको याद नहीं है.”
“मगर मैं याद क्यों रखूँ? 21 भी मुझे इसलिए याद रही, क्योंकि ये ‘ब्लैकजैक’35 है. हमने इस बारे में बहस भी की. वह ताशों वाले जादू करता था, और उसके लिए इस संख्या का महत्व था. मगर, उसे लग रहा था कि वह किसी न किसी तरह अपना राज़ खोल रहा है. कुछ संदर्भों से, जैसे नज़र से, आवाज़ से...तीसरी बार हमने ये तय किया कि पार्टीशन के पीछे वह ख़ामोश रहेगा, और मैं बोलता रहूँगा, जैसा हमेशा करता हूँ. मैं उसे न देख रहा हूँ, न सुन रहा हूँ, ऐसा प्रयोग, समझ रहे हैं? और उसने सोचा : 99.”
यहाँ विस्तार से बताइए.”
“मैं पार्टीशन के पीछे से उसे कोई संख्या सोचने के लिए कहता हूँ, दो अंकों वाली. वह ख़ामोश रहता है. तब मैं उसमें पांच जोड़ने के लिए कहता हूँ. वह ख़ामोश रहता है. मैं कुछ देर इंतज़ार करता हूँ और इस योग में से तीन घटाने के लिए कहता हूँ. फिर मैं चुप रहता हूँ और कहता हूँ: आपने 99 सोचा था. और तभी फर्श पर धम् की आवाज़ सुनता हूँ.”
“समझ गया. एक बात समझ में नहीं आई. आपको कैसे मालूम कि उसने 99 ही सोचा था?”
“मालूम है, बस, इतना ही.”
“मतलब, आप ये कहना चाहते हैं कि उसे आपके दो 9 ने मार डाला?”
“पहली बात, मेरे नहीं, बल्कि उसके, और दूसरे, ऐसी कोई भी बात मैं नहीं कहना चाहता. आप मुझ पर उन विचारों को लाद रहे हैं, जो मेरे नहीं हैं.”
“ठीक है. और आपने उसे क्यों पहले पांच जोड़ने को और बाद में तीन घटाने की आज्ञा दी?”
“आज्ञा नहीं दी, बल्कि विनती की.”
“हाँ. क्यों”
“मैं इसका जवाब नहीं दे सकता.”
“क्यों नहीं दे सकते?”
“ऊफ़. चलिए, ऐसा समझ लीजिए. ये मेरा प्रोग्राम है. सिर्फ मेरा, लेखक का. वह कॉपीराइट कानून से सुरक्षित है. प्लीज़, मुझ पर इसे समझाने के लिए दबाव न डालें, कि क्यों और कितने जोड़ने के लिए मैं कहता हूँ, और क्यों और कितने घटाने के लिए कहता हूँ.”
“आपका सीक्रेट है.”
“क़रीब-क़रीब वही समझ लीजिए.”
“मैं भी एक जादू जानता हूँ. देखिए.”
मेयर पेन्सिल उठाता है और, दोनों हथेलियों को एक दूसरे के ऊपर चिपका कर उसे अँगूठों से दबाता है. इसके बाद हथेलियों को इस तरह से घुमाता है कि एक अँगूठा दूसरे का चक्कर लगाता है – इस प्रक्रिया में पेन्सिल 180 डिग्री घूम जाती है और वह नीचे से दोनों अंगूठों द्वारा हथेलियों के बीच दबी हुई प्रतीत होती है - मेज़ के समांतर तल पर और कपितोनव की ओर तनी हुई.”
“आप दुहराइए.”
कपितोनव इन्वेस्टिगेटर के हाथों से पेन्सिल लेता है और उसी ट्रिक को दुहरा नहीं पाता है. उसके हाथ बेडौल तरीके से घूमते हैं.
“ये सिर्फ इसलिए, कि आपके हाथों की मूवमेन्ट किसी दूसरे धरातल पर होती है,” मेयर अपनी ख़ुशी को छुपा नहीं पाता. “आपकी गतिविधियाँ बाईं ओर होती हैं, जबकि मेरी – दाईं ओर. है ना?”
कपितोनव ने चुपचाप पेन्सिल मेज़ पर रख दी.
“देखिए, आपको विश्वास नहीं हुआ कि हमारे हाथों की गतिविधि भिन्न-भिन्न धरातलों पर होती है, तो मैं क्यों विश्वास कर लूँ कि उसने 99 ही सोचा था?”
“इससे क्या फ़रक पड़ता है, कि उसने क्या सोचा था. चाहे 27 ही सही.”
“अब आप विषय से हट रहे हैं.”
कपितोनव ख़ामोश रहता है, हालाँकि इन्वेस्टिगेटर को किसी ज़ोरदार प्रतिक्रिया की अपेक्षा थी.
“दिखाइए, प्लीज़.”
“क्या दिखाऊँ?”
“आपका जादू. आप और क्या दिखा सकते हैं?”
“मैंने वादा किया है कि उसे अब कभी भी नहीं दिखाऊँगा.”
“आपने मुझसे कोई वादा नहीं किया है. इसे इन्वेस्टिगेटिंग एक्सपेरिमेंट समझ लीजिए.”
“क्या मैं दिखाने के लिए बाध्य हूँ?”
“ओह, अचानक ये ‘बाध्य’ क्यों? ऐसा करेंगे तो हम दोनों के लिए बेहतर होगा. आपके लिए – ख़ासकर.”
“ईमानदारी से कहूँ, तो जी नहीं चाहता.”
“जान लीजिए कि क्या बात है. ‘जी नहीं चाहता’ को छोड़ दीजिए. हम कोई बच्चों के खेल तो नहीं खेल रहे हैं.”
“कोई संख्या सोचिए,” थके हुए सुर में कपितोनव कहता है, “दो अंकों वाली.”
“और?”
“उसमें सात जोड़िए.”
“पाँच क्यों नहीं?”
“क्योंकि सात ही जोड़ना है.”
“जोड़ दिए.”
“दो घटाइए.”
“मान लेते हैं.”
“क्या ‘मान लेते हैं’? आपने 99 सोचा था.”
“इसमें क्या जादू है?”
“आपने 99 सोचा था,” कपितोनव ने दुहराया.
“ये तो कोई मच्छर भी समझ सकता है. जो कुछ भी हुआ, उसके बाद मैं और क्या सोच सकता था?”
“जो कुछ हुआ, उसके बाद आपने 99 का अंक सोचा, इसमें मेरा कोई क़ुसूर नहीं है.”
“मैं आप को क़ुसूरवार घोषित भी नहीं कर रहा हूँ.”
ये आख़िरी वाक्य कुछ ज़्यादा कठोरता से कहा गया था – उसका लहज़ा मतलब से मेल नहीं खा रहा था.
“पहले किसी ने भी 99 नहीं सोचा था. वो पहला था.”
मगर ये स्वीकारोक्ति के समान प्रतीत हुआ. कपितोनव को स्वयम् से ऐसे लहज़े की उम्मीद नहीं थी.
“मैं दूसरा हूँ,” इन्वेस्टिगेटर कहता है. “तो एक छोटी सी प्रॉब्लेम है. उसने सोचा 99 – और वह मॉर्ग (मुर्दाघर) में है, और मैंने सोचा – 99 – और आप देख रहे हैं, कि ज़िन्दा हूँ, तन्दुरुस्त हूँ, मेज़ के पीछे बैठा हूँ और आगे भी ज़िन्दा रहना चाहता हूँ. क्या आपको ये अजीब नहीं लगता?”
“आप मुझसे क्या सुनना चाहते हैं? आपको क्या चाहिए? आप मुझसे क्या निकलवाना चाहते हैं?”
“नहीं, कुछ भी निकलवाना नहीं चाहता. सिर्फ, इस बात पर ज़ोर देना, कि उसने 99 ही सोचा था – जल्दबाज़ी होगी. आप इस बारे में बहुत ज़्यादा सोच रहे हैं.”
“उम्मीद करता हूँ कि जाँच हो चुकी होगी. क्या मृत्यु के कारण का पता चला?”
“मृत्यु के कारण का यहाँ क्या काम है? उसके बारे में तो आप के बिना भी फ़ैसला कर लेंगे.”
इन्वेस्टिगेटर मेज़ की दराज़ बाहर निकालता है, वहाँ से हाइजिनिक नैपकिन्स का पैक निकालता है, एक नैपकिन लेकर उसमें नाक छिनकता है, डस्ट-बिन में फेंकता है.
“आयडिया ये है कि आपसे ये ग्यारंटी ली जाए कि आप शहर छोड़कर बाहर नहीं जाएँगे. मगर, आप यहाँ, मेरे सामने, आए ही क्यों? जाइए अपने...मालूम नहीं, कहाँ. मगर पहले लिख कर – सब कुछ, जैसा हुआ था.”
कपितोनव के सामने कोरा कागज़ पड़ा है.
“ठहरिए. मैं समझ सकता हूँ कि आप क्या लिखने वाले हैं. बाद में प्रॉब्लेम सुलझा नहीं पाएँगे. आप लिखिए - सारांश में, मोटे तौर पर. बात कर रहे थे. और अचानक उसकी तबियत बिगड़ गई. वो मर गया.”
“बिना जादू के?”
“बिल्कुल बिना जादू के,” इन्वेस्टिगेटर कहता है.
कपितोनव चार वाक्यों में घटनाओं का स्पष्टीकरण देता है – संक्षेप में, स्पष्ट तौर पे.
“और ये किसलिए? ये कोष्ठक?” - इन्वेस्टिगेटर ने टेक्स्ट के आरंभ में और फिर अंत में भी धनु-कोष्ठक देखे. हस्ताक्षर के साथ क्या हुआ? क्या आप हमेशा धनु-कोष्ठकों के बीच में हस्ताक्षर करते हैं? किसलिए?”
“चलता है,” कपितोनव कहता है.
13.45
अचरज की बात ये नहीं थी कि वह हवाई अड्डे पर वक़्त से पहले पहुँच गया, अचरज की बात ये थी कि मेटल-डिटेक्टर की कमान के पार जाना संभव नहीं हो रहा है. उसने मोबाइल फ़ोन बाहर निकाल कर रख दिया है, और जेब से सारी चिल्लर निकाल दी है, और बेल्ट भी उतार दिया है, मगर ये बेवकूफ़ कमान बजे जा रही है, बजे जा रही है.
“शायद आपके जिस्म में कोई धातु फ़िक्स की गई हो?”
और यहाँ कपितोनव पल भर के लिए कांप गया – उसे शक हुआ कि कहीं ये भेस बदले हुए माइक्रोमैजिशियन्स उसे फ़ेस-, मेटल- आदि जाँचों से नहीं गुज़ारेंगे: और, वाक़ई में, पेट में भारी ‘नट’ का पता लगा लेंगे, जिसके बारे में एक बुरे ख़याल ने उसे परेशान कर रखा था.
हाथ वाले मेटल-डिटेक्टर से गुज़र रहे कपितोनव के जिस्म का एक भी हिस्सा नहीं झनझनाता – जैसे कपितोनव के भीतर कोई प्रतिक्रिया आरंभ हो गई है, जो सन्देहास्पद कारणों को निष्क्रिय कर रही है.
मगर सभी कारणों को नहीं.
उसे इन्ट्रोस्कोप से गुज़रते हुए पर्स को खोलने के लिए कहा गया. उसमें छोटी सी ब्रीफ़केस क्यों रखी है? इसलिए, कि पूरी तरह पर्स में समा गई, और कपितोनव ने एक लगेज कम करने का फ़ैसला कर लिया.
ये तो अच्छा हुआ कि ब्रीफ़केस में ऐसी कोई चीज़ नहीं है – कैबेज के कटलेट्स भी नहीं हैं.
कपितोनव ख़ुद भी नहीं जानता, कि इस ब्रीफ़केस को वह मॉस्को क्यों ले जा रहा है. क्या उसे इस ब्रीफ़केस की ज़रूरत है? मगर अब इसे हवाई अड्डे की बिल्डिंग में भी तो नहीं छोड़ा जा सकता.
वह वहाँ से दूर नहीं जा पाया – अजीब सी यूनिफॉर्म में गश्ती दल के दो आदमियों ने पासपोर्ट दिखाने के लिए कहा. एक के हाथ में जंज़ीर से बंधा कुत्ता था, जो कुछ कर सकता था – कम से कम अनगिनत पैसेंजर्स का ध्यान तो अपनी ओर आकर्षित न करे.
“क्या मुझमें कोई कमी नज़र आ रही है?” कपितोनव स्वयम् पर ध्यान न देने की, और अपनी तरफ़ से – कुत्ते का ध्यान आकर्षित न करने की कोशिश करते हुए पूछता है.
“क्या आपको यक़ीन है, कि ये पासपोर्ट आपका है?”
“वहाँ मेरी फ़ोटो है!”
“सिर्फ इसीलिए?”
ये तो अच्छा है कि कुत्ता उसकी ओर ध्यान नहीं दे रहा है.
“और हस्ताक्षर!”
धारक को पासपोर्ट लौटा देते हैं:
“हैप्पी जर्नी, येव्गेनी गिन्नाद्येविच.”
रजिस्ट्रेशन बिना किसी झंझट के पूरा हो गया. कॉफ़ी पीने लायक समय है, मगर एक फ़ेस-टू-फ़ेस मुलाक़ात ने इससे भी परावृत्त कर दिया:
“वॉव! क्या बात है?”
ज़िनाइदा और झेन्या, उसका डाउन बेटा.
“आपकी मैथेमेटिक्स वाली कॉन्फ़्रेन्स कैसी रही?” ज़िनाइदा दिलचस्पी दिखाती है.
“ठीक रही. और आप यहाँ क्या कर रही हैं?”
”हाँ, देखिए, सब गड़बड़ हो गया, बहन को स्ट्रोक आ गया, फ़ौरन वरोनेझ की फ़्लाइट पकड़नी है. और वहाँ से फिर घर, जैसे भी होगा.”
“आप क्या कह रही हैं! रुकिए, आपकी बहन तो पीटर्सबुर्ग में है.”
“ये दूसरी है.”
“अफ़सोस है,” कपितोनव कहता है. “लगता है कि आप सिर्फ एक दिन पीटरबुर्ग में रहीं?”
“कआब्लिक, कआब्लिक!” हमनाम येव्गेनी चहकता है.
कपितोनव उससे कहता है:
“कआब्लिक देखा?”
“क्या तुमने कआब्लिक देखा?” सवाल कपितोनव की ओर मुड़ जाता है.
“कैसे नहीं देखता,” कपितोनव कहता है.
याद आता है.
“ये ले. अब ये तेरी हो गई.”
छड़ी लेकर, हमनाम झेन्या उसे ऐसे झटकता है, जैसे वो थर्मामीटर हो, और कुछ अपना ही, समझ में न आने वाला, बड़बड़ाने लगता है.
“लिखा है, कि जादुई है.”
“मैं समझ रही हूँ,” ज़िनाइदा खोई-खोई सी मुस्कुराती है. “मगर आपने ‘सिर्फ एक दिन’ क्यों कहा? हम तो यहाँ एक हफ़्ते से ऊपर रहे.”
“क्या मैं आपके साथ यहाँ परसों नहीं आया था – इस शनिवार को?”
“इस शनिवार को कैसे?...इस शनिवार को नहीं, बल्कि उस शनिवार को...आप क्या मज़ाक कर रहे हैं?”
कपितोनव मज़ाक नहीं करता. जब और लोग मज़ाक कर रहे होते हैं, उसने, शायद, समझना बन्द कर दिया है. वह बिदा लेकर वहाँ से चल पड़ता है.
14.18
कपितोनव डिपार्चर हॉल में बैठा है, बेटी को मैसेज भेजना चाहता है. न जाने क्यों उसे लगता है कि अपने पहुँचने के बारे में उसे बता देना चाहिए. कुछ ऐसे: “फ्लाइट से आ रहा हूँ.” या ऐसे: “डिपार्चर हॉल. जल्दी.”
जल्दी ही सभी इलेक्ट्रिक उपकरणों को बन्द करने की घोषणा की जाएगी.
डिपार्चर हॉल में कुछ लोग जल्दी-जल्दी जी भरके बात कर लेना चाहते हैं. मुफ़्त अख़बारों वाले स्टैण्ड के पास बच्चे भाग रहे हैं. शीशे के पार काला आसमान है. हवाई जहाज़ हर मौसम में टेक-ऑफ़ करते हैं.
{{{‘तालाब’ कौन है?}}}
ये मरीना है.
ये जानती है कि आपकी विकेट कैसे डाउन की जाए. कपितोनव फ़ौरन जवाब नहीं देता.
{{{ वो मर गया. तुम क्यों पूछ रही हो?}}}
मरीना – उसे:
{{{ वो ज़िन्दा है.}}}
उसे फिर से ऐसा लगता है कि पेट में एक भारी ‘नट’ है.
{{{ क्या तुम्हें यक़ीन है?}}}
इंतज़ार करता है. जवाब आता है.
{{{ वो मेरे मूखिन का भाई है और वे दोनों मंगोलिया में रहते हैं, खदान में काम करते हैं.}}}
“आसमानी क्षेत्र,” कपितोनव ज़ोर से पराई आवाज़ में कहता है.
मैसेज आता है:
{{{ थैंक्यू.}}}
{{{ किसलिए?}}}
जवाब आता है:
{{{ हर चीज़ के लिए.}}}
कपितोनव मोबाइल स्विच-ऑफ़ कर देता है. कुछ करना चाहता है. फिर से ‘ऑन’ करता है.
आन्का को लिखता है:
{{{ तुमसे बहुत प्यार करता हूँ}}}
क्या ‘पापा’ शब्द लिखे? मगर सोचता है: समझ जाएगी.
फ्लाइट के तीस मिनट लेट होने की घोषणा होती है.
अब ये और किसलिए? क्या हो गया? क्या हो रहा है?
‘और मैं भी तुमसे बेहद.’
सिर्फ टेक्स्ट – बिना कोष्ठकों के.
वह उठकर हॉल में घूमने लगता है – इस डिपार्चर हॉल में, इंतज़ार करता है. घड़ी की तरफ़ देखता है.
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