Charumati Ramdas

Horror Crime

3  

Charumati Ramdas

Horror Crime

धनु कोष्ठक - ३०

धनु कोष्ठक - ३०

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208


लेखक: सिर्गेइ नोसव 

अनुवाद: आ. चारुमति रामदास 

23.16

      

इसके बाद वह “कपितोनव !” कहकर नहीं चीख़ी, और चीखती ही नहीं है.     

और फिर


23.28


वह कहती है (क्योंकि कॉरीडोर में कुछ लोग शोर मचा रहे हैं): 

 “ये ‘हमारे लोग’ बैन्क्वेट से लौट रहे हैं.”

 ‘हमारे लोग बैन्क्वेट से’ चलते हुए किसी महत्वपूर्ण बात पर बहस कर रहे हैं – किसे चुना गया और खाने के बारे में... 

वह टैक्सी बुलाती है.

 “आर यू श्युअर?”

 “बिल्कुल. मैं सिर्फ घर में ही रात बिताती हूँ.”


तभी

23.32


दीवार के उस ओर वाला पड़ोसी – वह भी बैन्क्वेट से लौटा है.

 “काल-भक्षक, वह पूरे समय उल्टियाँ निकालता रहता है,” कपितोनव कहता है.

 “पता है, पता है... प्लीज़ मेहेरबानी करो, मेरे टाइट्स फ़ट गए हैं.”

कपितोनव ने भी कपड़े पहन लिए, कपितोनव उसे छोड़ने जाना चाहता है.

 “मुझे यहाँ किसी ने थर्मल्स बेचे, बेलारूसी-रूसी प्रॉडक्शन. इस बात की गारंटी देते हैं कि चलते समय ये घर्षण को कम करते हैं. मैंने तो जाँच तो नहीं की.”

 “क्या यादगार के तौर पर दोगे?”

“ओके, गुड लक. चलते समय घर्षण कम करते हैं – ये तो अच्छी बात है.”

 “मर्दाना. मतलब, यादगार के तौर पे... दो.”


23.56


सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए वह उससे कहती है:

 “क्या तुम्हें कभी ऐसा नहीं लगता, कि वाक़ई में कोई उसे खा रहा है, या, पता नहीं, पूरा खाए जा रहा है?”

 “क्या तुम समय के बारे में कह रही हो?”

 “हाँ, व्यक्तिगत समय के बारे में, जो हम सबको दिया गया है. कोई उसका पूरा गूदा खा रहा है, पूरा रसभरा गूदा, और बच रहता है भूसा. सिर्फ भूसा, घटनाओं का भूसा. और बस.”

 “अगर तुम उसके बारे में कह रही हो, जो मेरी दीवार के परे है, तो मुझे डर है कि उसके साथ ऐसा नहीं है. ऐसा नहीं लगता कि वह स्वादिष्ट चीज़ें खाता होगा. तुमने तो सुना कि वह कैसे उल्टियाँ निकालता है...”

 “नहीं - मैं आम तौर पे कह रही थी.”

 “और मेरे लिए ये दो दिन अंतहीन थे. वो इसलिए कि, शायद, मैं सोता नहीं हूँ. या, किसे पता, हो सकता है, कि ये उसने मेरी आंतों को इस क़दर बेहाल कर दिया हो...”

 “माफ़ करना, कपितोनव, मगर तुम्हारे चेहरे पर बेहद थकावट दिखाई दे रही है.”

 “बस, एक दिन और, हो सकता है, सब ख़त्म न हो.”

 “सब ख़त्म हो जाएगा, परेशान मत हो. “

और ये वाक़ई में उस दिन के अंतिम शब्द थे.

आगमन हुआ


सोमवार का. 

00.00     

  

बर्फ गिरना शुरू हो गई थी. टैक्सी वाला इंतज़ार कर रहा है, इंजिन बिना बन्द किए, और विंडस्क्रीन पर वाइपर्स घूम रहे हैं.

 “तुम्हारे सामने स्वीकार करती हूँ, मैं, हो सकता है, तुम पर बिल्कुल हावी न होती, अगर तुमने ये न किया होता. सिर्फ मैं ठीक से तुम्हें देख नहीं पाई. हालाँकि ये तुम्हारा ‘गेम’ नहीं था, मगर उसके नियमों पर भी तुमने उसे बख़ूबी खेला. तुम ‘तालाब’ को अभी भी नहीं पहचान पाए? यह सब उसी का किया-धरा था. ‘तालाब’ सिर्फ मिलनसार दिखना चाहता था, असल में तो वह बेहद बुरा इन्सान था, एकदम ख़ाली, दुष्ट, असहनीय. मैं यह बात औरों से ज़्यादा अच्छी तरह जानती हूँ. उसने तुम्हें भी इस्तेमाल किया. तुम्हारा पता लगाया, मॉस्को से खींचकर लाया, उस स्टोर-रूम में खींच कर ले गया. क्या तुम सचमुच में कुछ नहीं समझते? ये आत्महत्या थी! तुम उसके लिए थे...किसी सोने की पिस्तौल के समान! तुम्हें अपने आप को ज़रा भी दोष नहीं देना चाहिए. तुम किसी भी सोने की पिस्तौल से बेहतर हो! तुम लाजवाब थे, सिर्फ लाजवाब! इन्सानियत की दृष्टि से मुझे ‘तालाब’ का अफ़सोस है, मगर एक औरत की दृष्टि से – ज़रा भी नहीं. अपनी हिफ़ाज़त करना, कपितोनव . नीनेल को याद रखना. बाय, कॉम्रेड! मैं कभी भी हत्यारों के साथ नहीं सोई.”

कपितोनव नज़रों से जाती हुई कार को देखता रहा. उसका हॉटेल में लौटने का मन नहीं है. वह बेचैन है, जैसे उसने कोई भारी स्क्रू निगल लिया हो. वह लैम्प के नीचे बेंच पर बैठा रहता, मगर वह भुरभुरी बर्फ़ से ढँक गया था.        

उस पर नज़र रखी जा रही है.

वह तेज़ी से पलटता है – धीरे-धीरे आती हुई कार की ओर: ये पुरानी ‘झिगूली’ थी, हेडलैम्प टूटा हुआ था. उसने उन्हें तभी देख लिया था, जब नीनेल बिदा होते समय ‘तालाब’ की नीचता के बारे में अपना स्वगत भाषण दे रही थी, - उस समय कार यहाँ से उतने ही धीमे गुज़री थी, जैसी अब जा रही है, मगर विपरीत दिशा में, और चौराहे पर ‘झिगूली’ वापस मुड़ गई.

कपितोनव के क़रीब आकर कार रुक जाती है, और ड्राइवर, झुक कर कपितोनव के लिए दरवाज़ा खोलता है.

 “मालिक, चलें! कहाँ?”

ये है मिसाल असंगठित कैब्स पर टैक्सी नामक संस्था की विजय की.

कपितोनव सिर्फ बैठना चाहता है.

दरवाज़ा पहली बार में बन्द नहीं होता – और ज़ोर से बन्द करना पड़ता है.

पूरबी आदमी कपितोनव की ओर देखकर मुस्कुराता है, इंतज़ार कर रहा है.

 “एक मिनट,” कपितोनव कहता है. “अभी सोचते हैं,” कुछ सोचता है, पूछता है: “तुम्हारा नाम क्या है?”

 “तुर्गून.”

 “तुर्गून, क्या तुम बहुत दिनों से हो पीटर में?”

 “एक साल, पाँच महीने से.”

 “क्या कन्स्ट्रक्शन साइट पर काम करते थे?”

 “नहीं, भाई के पास.”

 “क्या पहाड़ों की याद आती है?”

 “परिवार की याद आती है. बहनों की. हमारे यहाँ पहाड़ नहीं हैं.”

 “क्या पीटरबुर्ग तुम्हें अच्छा लगता हि?”

 “अच्छा शहर है, बड़ा. बेहद ठण्डा. कहाँ जाएँगे?”

 “कहीं नहीं,” कपितोनव दो नोट निकालता है. “तुम मुझे बस यूँ ही घुमाओ.”

 “नहीं, मैं नहीं! मैं नशेबाज़ों को नहीं !”

कपितोनव उसकी जेब में पैसे ठूँस देता है.

 “तुर्गून, मैं तुमसे इन्सान की तरह पेश आ रहा हूँ. तुम मेरी बात सुन रहे हो, हाँ? मैं पीटरबुर्ग देखना चाहता हूँ. काफ़ी अर्से से यहाँ नहीं आया. याद आती थी. तुम्हें सेन्ट इसाकोव्स्की-केथेड्रल मालूम है? ऐडमिरैल्टी-छोटे से जहाज़ के साथ? मुझे सिर्फ ले जा सकते हो? नेवा, मोयका, ग्रिबायेदव-कैनाल...अगर कोई तुम्हारी पसन्दीदा जगह हो, तो वहाँ भी ले चलो. जहाँ चाहो, ले चलो. मेरी फ़्लाइट कल है. पता नहीं, फिर कब आऊँगा?”

 “क्या दूर जा रहे हो? अमेरिका जा रहे हो?”

 “कहाँ का अमेरिका?” कपितोनव बुदबुदाता है, ये महसूस करते हुए कि उसने तुर्गून से जगह बदल ली है, अब वो सवाल कर रहा है. “क़रीब ही जाना है. अमेरिका ही क्यों जाया जाए?”

जोश में आकर तुर्गून पूछता है:

 “क्या सुबह तक चलते रहेंगे?”

 “जब तक उकता न जाऊँ.”

चल पड़े. तुर्गून को अभी तक अपनी सफ़लता में विश्वास नहीं हुआ था – वह पैसेंजर को देखता है: कहीं उसका इरादा न बदल जाए, कहीं पैसे वापस न मांगने लगे.

यहाँ कुछ गर्माहट है. कपितोनव ओवरकोट के बटन खोलता है और स्कार्फ उतारता है. सर्दियों की बर्फ़ीली रात में पीटरबुर्ग को देखना – कपितोनव को सबसे ज़्यादा इसी बात की ख़्वाहिश थी. किसी चीज़ को याद करके, या किसी बारे में कल्पना करके, वह आँखें बन्द करता है, और फ़ौरन सो जाता है.


0.41


 “मालिक, आ गए.”

 “आँ? क्या?”

 “इसाकोव्स्की-कैथेड्रल.”

 “कहाँ?”

 “ये रहा. इसाकोव्स्की-कैथेड्रल.”

 “तुर्गून, तुम – तुर्गून?...तुर्गून, ये इसाकोव्स्की-कैथेड्रल नहीं है, ये ट्रिनिटी कैथेड्रल है, इसी को इज़माइलोव्स्की कहते हैं...और मैं क्या सो गया था?”

 “सो रहे थे, जब हम जा रहे थे.”

 “तुमने मुझे क्यों जगाया?”

 “इसाकोव्स्की-कैथेड्रल, ख़ुद ही ने तो कहा था दिखाने के लिए.” 

 “ट्रिनिटी, मैं तुम्हें समझाता हूँ. ये भी बड़ा है, मगर इसाकोव्स्की से थोड़ा कम. इसाकोव्स्की का गुम्बद सोने का है. तू भी क्या...अगर मुझे इसाकोव्स्की दिखाना चाहता है, तो लेर्मन्तव्स्की पर मुड़ जाना, और वहाँ रीम्स्की-कर्साकोव पर, और फिर ग्लिन्का स्ट्रीट पर बल्शाया-मर्स्काया स्ट्रीट तक...कुछ इस तरह. या फिर इज़माइलोव्स्की पर, मगर वहाँ वज़्नेसेन्स्की प्रॉस्पेक्ट पर ट्रैफ़िक वन-वे है, सदोवाया पर बल्शाया पद्याचेस्काया पर निकलना पड़ेगा, और फ़नार्नी तक...मगर, यदि मैं सो जाऊँ, तो मुझे जगाना ज़रूरी नहीं है.”

 “क्या सोओगे?”

 “नहीं, तुर्गून, मेरे पास सोने के लिए जगह है. मैंने तुम्हें इसलिए नहीं लिया. मैं तीन रातों से सोया नहीं हूँ, क्या मैं कुछ देर सो नहीं सकता? समझे? मैं एक आदमी को, कह सकते हैं, कि उस दुनिया में भेज कर आया हूँ. सुबह इन्वेस्टिगेटर मुझे बेज़ार कर देगा. हो सकता है, कि मैं कहीं भी न जा पाऊँ. समझ गए? और तुम कहते हो “सोओगे”. तुम मुझे नहीं जानते, तुर्गून. मुझे जादू अच्छा नहीं लगता. मगर सिर्फ इतना जान लो, कि अगर अचानक मैं सो जाऊँ, तो ध्यान रख कि मैं सब देखता हूँ, मैं ख़ुद ही जानता हूँ कि मुझे कहाँ उठना है.”

कपितोनव एक नौचालक की तरह ग़ौर से देखता है कि तुर्गून लेर्मन्तोव्स्की प्रॉस्पेकट पर मुड़ जाए. जब पुल के ऊपर से गुज़रते हैं, तो वह उत्साहपूर्वक तुर्गून से कहता है: “फ़व्वारा, देख रहे हो, पूरा बर्फ के नीचे है...” मगर सदोवाया से पहले, जब सिग्नल के पास रुकते हैं, तो कपितोनव की आँखें फिर से बन्द हो जाती हैं, और वह रीम्स्की-कर्साकोव प्रॉस्पेक्ट वाले मोड़ को नहीं देख पाता.

क्र्यूकव कैनाल के ऊपर वाला पुल तुर्गून बहुत धीरे-धीरे पार करता है – वह चाहता है कि पैसेंजर ऊँचे घण्टे को देखे, मगर उसे उठाने की हिम्मत नहीं कर पाया. ये रहा गुम्बज़ों वाला मन्दिर, और सब कुछ चकाचौंध करते प्रकाश से आलोकित है, मगर तुर्गून जानता है कि ये भी इसाकोव्स्की-कैथेड्रल नहीं है, - कैथेड्रल के बारे में उसे सब कुछ याद था, मगर ट्रिनिटी-कैथेड्रल को इसाकोव्स्की–कैथेड्रल इसलिए समझ बैठा कि ट्रिनिटी-कैथेड्रल के पास ट्रिनिटी मार्केट है, वहाँ तुर्गून अपने भाई की मदद करता था.

बाईं ओर मुड़कर, तुर्गून ट्राम की पटरियों को पार करता है – हो सकता है, पैसेंजर को दो स्मारक देखने में दिलचस्पी हो – एक खड़ा है, और दूसरा बैठा है, ख़ासकर बैठा हुआ ज़्यादा अच्छा है – उसके सिर पर बड़ी सी बर्फ़ की टोपी थी. मगर, आगे और भी दिलचस्प चीज़ें होंगी, और इस सड़क को तुर्गून काफ़ी तेज़ी से पार कर लेता है – उतनी तेज़ी से जितने की सिमेंट पर पिघलती बर्फ इजाज़त देती थी.

बल्शाया-मर्स्काया पर बर्फ़ तोड़ने वाले काम कर रहे थे. मगर यहाँ समुद्र कहाँ है, ये तुर्गून नहीं जानता. पीटरबुर्ग में डेढ़ साल से रह रहा है, मगर आज तक समुद्र नहीं देखा.

ये रहा वो – इसाकोव्स्की-कैथेड्रल, और उसके सामने घोड़े पर सवार स्मारक, और उसके पीछे दूसरा स्मारक – घोड़े पर : तुर्गून धीरे-धीरे जा रहा है, जैसे पैसेंजर को दिखा रहा हो वह चीज़ जिसे वह देखना चाहता था – पीटरबुर्ग के ये महान दर्शनीय स्थल. बड़ी मुश्किल से तुर्गून अपने आप को रोकता है, ताकि कपितोनव को जगा न दे. अब उसके सामने है नेवा. आसमान की कालिमा में उस तरफ़ की मीनार चमचमा रही है.        

तुर्गून कुछ-कुछ ख़ुद कपितोनव बन चुका है – उस लिहाज़ से नहीं, कि वह भी सोना चाहता है, बल्कि इसलिए, कि वह ये सब उसकी नज़रों से देखने की कोशिश करता है, जो लम्बे समय तक इस सब के लिए तरसा था. और, जब वह ब्लागोविश्शेन्स्की ब्रिज पार करता है, तो नेवा की तरफ़ ऐसी नज़र डालता है, मानो सोते हुए कपितोनव की ख़ातिर उसे देख रहा है.


तुर्गून बड़ी ख़ूबसूरत जगहों पर गाड़ी ले जाता है, और जितनी ख़ूबसूरत वह जगह होती है, उतने ही धीरे वह गाड़ी चलाता है. बुर्ज़ रहा दाहिने हाथ को, और बाईं ओर – म्यूज़ियम, और यहाँ, तोप की फ़ेन्सिंग के पीछे, और, और भी कई जगहों पर वह क़रीब-क़रीब रुक ही जाता है. मुश्किल ही लगता है, कि इस पैसेंजर ने किसी को मार डाला है, - तुर्गून, शायद, पैसेंजर के शब्दों को ठीक से समझ नहीं पाया. शायद, कोई इसे ही मारना चाहता था, न कि उसने किसी को मारा था. ये देखो, वह अभी सो गया है.


इसके बाद वह मस्जिद की तरफ़ आते हैं. तुर्गून रुक जाता है, और दुर्घटना वाली बत्तियों को जला देता है, क्योंकि यहाँ पार्किंग करना मना है, और एक मिनट के लिए इंजिन भी बन्द कर देता है इस उम्मीद में कि पैसेंजर उठ जाएगा, और ख़ुद उसके लिए सम्मानपूर्वक मस्जिद को देखने लगता है.

बर्फ से ढंकी गलियों से होकर वह पुराने जंगी जहाज़ की ओर जाता है, जहाँ से यहाँ क्रांति का आरंभ हुआ था. और फिर, पुल पार करने के बाद, न जाने किस तरफ़ चल पड़ा. पैसेंजर को यहाँ अच्छा न लगता, और तुर्गून फुर्ती से इस इण्डस्ट्रियल एरिया से निकलता है.

पैसेंजर तब भी नहीं उठता जब पेट्रोल पम्प के पास तुर्गून गाड़ी रोकता है, और, हालाँकि कार की शैफ्ट में कोई प्रॉब्लम है, तुर्गून पैसेंजर को नेवा के किनारे की सैर करवाना अपना कर्तव्य समझता है. पहले वह नेवा के किनारे-किनारे पूरब से पश्चिम की ओर जाते हैं (इस समय


03.10


नेव्स्की प्रॉस्पेक्ट पर भी बहुत कम गाड़ियाँ चल रही हैं और पैदल चलने वाले तो बिल्कुल ही नहीं हैं), और फिर वह पैसेंजर को नेवा के किनारे-किनारे पश्चिम से पूरब की ओर ले जाता है. पूरबी छोर पर उसे याद आता है कि इस सड़क पर, जिसे कोन्नाया स्ट्रीट कहते हैं, एक प्रसिद्ध इमारत है. वैसे तो ये किसी साधारण इमारत ही की तरह है, ऐसी इमारतें पीटरबुर्ग में अनगिनत हैं, मगर उसके लिए ये ख़ास है. उसकी दीवार पर स्ट्रा से साबुन के बुलबुले उड़ाते हुए बच्चे की तस्वीर बनी है. पीटरबुर्ग में तो सब कुछ बड़ा कठोर है, मगर तुर्गून को यह तस्वीर गुदगुदा गई. और वह अब


04.02


हौले से मुस्कुराता है.

कपितोनव आँखें खोलता है. 


तुर्गून ऊँगली से नक्काशी की ओर इशारा करता है, मगर शब्दों में समझा नहीं सकता. वह सिर्फ एक ही शब्द कहता है:

 “तस्वीर.”

कपितोनव नज़र उठाता है – देखता है – सिर हिलाता है.

और कहता है:

 “चल, घर ले चल.”

 “क्या समर-गार्डन दिखाऊँ?”

 “ठीक है,” कपितोनव कहता है, और आँखें बन्द कर लेता है.

 04.51

 

 “तुर्गून, क्या मैंने तुम्हें पैसे दे दिए?”

 “हाँ, हाँ, अच्छे पैसे दिए हैं.”

 “तेरा नाम बड़ा भारी-भरकम है – तुर्गून. क्या तुझे मालूम है कि इसका क्या मतलब है?”

 “मालूम है,” तुर्गून जवाब देता है. “जो ज़िन्दा है.”

 “सिर्फ ज़िन्दा है?”

 “जो ज़िन्दा है. धरती पर चलता है.”

 “ऐसा ही होना चाहिए. और मैंने सोचा, कोई लीडर होगा. विजेता.”

 “नहीं. जो ज़िन्दा है.”

 “अच्छा, ऐसे ही रहो, जो ज़िन्दा है. थैंक्यू.”            


कपितोनव को याद नहीं कि वह अपने कमरे तक कैसे पहुँचा और, सिर्फ ओवरकोट उतार कर बिस्तर में दुबक गया.



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