डायरी जुलाई 2022 :
डायरी जुलाई 2022 :
हाय हाय ईडी, उफ्फ उफ्फ ईडी
सखी,
कुछ सालों पूर्व एक फिल्म आई थी जिसमें एक गाना था
"हाय हाय गर्मी, उफ्फ उफ्फ गर्मी"।
पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि अब वह गाना
कुछ लोगों द्वारा कुछ इस तरह से गाया जा रहा है
हाय हाय ई डी, उफ्फ उफ्फ ई डी
तू ऐसे जले जैसे बीडी
चारों तरफ एक ही शोर है
अब सीबीआई का नहीं ई डी का जोर है
कांप रहा वह इंसान जो चोर है
सड़कों पर ये हंगामा घनघोर है।
कभी जिनकी हवेली से ही सूरज निकलता था।
चांद भी जिन्हें सजदे किया करता था।
हवाऐं भी इजाजत लेकर सहमी सहमी सी चलती थी।
बादलों की गति उनके इशारों पर थिरकती थी।
सितारे उनके दम से रोशनी पाते थे।
कानून के हाथ भी जिनसे कंपकंपाते थे।
सागर अपनी सीमाओं में अनमना सा रहता था।
वो गलियां आबाद हो जाया करती थीं,
जहां से उनका काफिला गुजरता था
टेढी भृकुटी होने से जलजला आ जाता था
काल भी जिनकी पुतलियों से थर्राता था
उनके एक इशारे पर कत्लेआम हो जाता था
कितना भी संगीन आरोप हो, खत्म हो जाता था
जिनकी शान में खैराती कसीदे पढते थे
बुद्धिजीवी जिनका प्रशस्ति गान करते ना थकते थे
चाटुकार चरण वंदना कर प्रसाद पाते थे
भ्रष्टाचारी जिनसे अभय दान पाते थे
वे पैदा ही राज करने के लिए हुए थे
स्वयं भू भारत की तकदीर बने हुए थे
अफसोस कि वे आज दर दर भटक रहे हैं
किसी ई डी फी डी के चंगुल में उलझ रहे हैं
ना कोई रहम ना कोई रियायत
कितनी अजीब है ई डी की ये रवायत
ऐसे भी कोई करता है क्या भला
ये ई डी है या फिर है कोई बला
तेरा सत्यानाश हो जाए ई डी
तुझे सब चमचों की हाय लग जाए ई डी
तू मुर्दाबाद हो जाए ई डी
तुझे कोढ, कैंसर, कोरोना हो जाए ई डी
हाय हाय ई डी, उफ्फ उफ्फ ई डी
कुंभीपाक नर्क में तू जाए ई डी
बहुत उम्मीदें थी उस सिस्टम से जो बरसों की मेहनत से बनाया था। उस सिस्टम के बदौलत ही अब तक जिन्होंने विरोध का झंडा उठाया था। सरकार बदल जाती है , लोग बदल जाते हैं।मगर शाही लोग तो सिस्टम के कारण अभी भी मौज उड़ाते हैं। पर ये सिस्टम भी अब दगा दे गया। सालों से वफादार था , अब बेवफाई कर गया। इसने भी ई डी को सही ठहरा दिया। मानो उसके हाथ में भीम का सोटा थमा दिया। अब कौन है जो इनको बचाएगा ? भगवान पर पहले ही विश्वास नहीं था, अब वो क्या कर पाएगा ? पता नहीं आगे क्या होने वाला है ? लगता है कि दिल खून के आंसू रोने वाला है।
आज के लिए इतना ही बहुत है सखि, बाकी कल।