Ram Binod Kumar 'Sanatan Bharat'

Classics Inspirational

4  

Ram Binod Kumar 'Sanatan Bharat'

Classics Inspirational

डांस पर चांस

डांस पर चांस

9 mins
181


कहा जाता है कि, कि मौका छोड़ना नहीं चाहिए। हमें सदा अपनी सफलता के लिए मौके की तलाश में रहनी चाहिए। क्योंकि हर सफलता में देश काल परिस्थिति का भी योगदान होता है। और हमें इसका विशेष ख्याल रखना चाहिए।

हमारे जीवन में कई ऐसे कार्य हैं।जो उचित समय पर ही किया जाना ठीक रहता है। ऐसे तो हमें अपना कोई भी कार्य समय से करना चाहिए। जिनमें छोटा सा छोटा कार्य भी शामिल है। क्योंकि हर कार्य का अपना ही महत्व है।

हमारे दैनिक दिनचर्या के कुछ कार्य जैसे कि, जैसे कि जागरण, उषा पान, शौच, भ्रमण, स्नान ,स्वाध्याय ,भोजन ,विश्राम ,संध्या- वंदन, संध्या- भ्रमण भोजन और निद्रा यह सब भी नियत समय पर हो तो फिर क्या कहना !

जब मौसम अनुकूल होतो कोई कार्य ,फसल पक गया हो तो उसकी कटाई, सत्पात्रता हो तो ज्ञान या संसाधन का दान, खेत की स्थिति अच्छी हो तो जुताई और बुवाई, लोहा गरम हो तो उस पर चोट करना, सही उम्र में ही उचित कार्य जिम्मेदारी देना, मौके पर ही कोई बात कहना, भूख लगने पर खाना, जरूरतमंद को वह वस्तु प्रदान करना, ऐसी बातें ' मौके पर चौका ' या ' डांस पे चांस ' का प्रतीकात्मक है।ऐसा नहीं इतनी बातों के बाद हमारी कहानी पूरी हो गई।

 अब मैं अपनी कहानी शुरू करता हूं।

 रविंद्र जी हमारे मित्र हैं, अभी वर्तमान में वे मेरे ही तरह एक शिक्षक है। वैसे तो अभी विद्यालय बंद है , नित्य उनसे मुलाकात नहीं हो पाती है। "कोरोना काल" में उन्मुक्त रूप से मिलने जुलने और घूमने फिरने पर भी थोड़ी स्वयं  की पाबंदी भी है।

एक दिन मुलाकात उनसे मुलाकात हुई।

उस दिन वह थोड़े उदास थे, उन्होंने मुझे यह तो बताया कि वे थोड़े उदास है। इनका मूड ठीक नहीं है। पर उन्होंने मुझे पूरी बातें शेयर नहीं की। संभव है , वह उस समय सारी बातें मुझे पता नहीं आवश्यक नहीं समझ रहे थे। या फिर वह निर्णय नहीं कर पाए थे , कि उन्हें करना क्या है। शेयर करना है या , अपने तक ही सीमित रखना है।

फिर एक दिन हम दूसरी बार मिले, उस समय में बैठा अपनी कहानियां लिख रहा था। जब उन्होंने मुझे लेखन से जुड़ा लिखते देखा, तो तब वह बहुत खुश हुए।

उन्होंने मुझसे पूछा "अगर आपको कभी फिल्म और धारावाहिकों के लिए कुछ लिखने का मौका मिला तो आप क्या करेंगे,?"

  मैंने बोला "मैं निश्चित रूप से लिखना चाहूंगा।"

" अगर आपको कभी फिल्मों में काम करने का मौका मिले तब क्या करना चाहेंगे ?

" मैं अवश्य ही काम करना चाहूंगा।"

"आपके घर का कोई सदस्य यदि उसमें बाधा डालेंगे या मना करेंगे ,तो तब आप क्या करेंगे ?"

    "मेरे कार्य में वह क्यों बाधा डालेंगे। यह कार्य कोई निंदनीय थोड़े हैं ? फिर मैं अपने पसंद से अपना कार्य क्यों नहीं चुन सकता हूं ?"

मेरी बात सुनकर वह गंभीर हो गए।

बोले " देखिए एक मैं हूं, ऐसे -ऐसे बहुत सारे अवसर मेरे पास आए। पर मैं अपने घर परिवार से ऐसे मजबूर हो जाता हूं , जो इसका लाभ नहीं ले पा रहा हूं। मुझे समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूं।"

  मैं बोला"आखिर मैंने समझा नहीं आपको परेशानी क्या है ?

 वह बोलें " वैसे तो अन्य कोई विशेष परेशानी नहीं। परेशानी केवल मुझे अपने श्रीमती जी से है। वह नहीं चाहतीं हैं कि मैं जाकर फिल्मों में काम करूं ? मैंने स्कूल के दिनों से आज तक जो अपने कैरियर निर्माण किया था। वह मेरा सारा कैरियर चौपट हो गया। अब मैं अपनी प्रतिभा और अनुभव को मारकर घुटन के साथ जी रहा हूं।'

   इतना कह कर एक गहरी सांस लेकर वह चुप हो गए ,और पुनः कुछ सोचने लगे।

  मैं भी सोच में पड़ गया। कुछ देर सोचने के पश्चात मैंने फिर उनसे प्रश्न किया।

"आखिर आपके फिल्मों में काम करने से आपकी श्रीमती जी को क्या समस्या हो सकती है? मुझे तो समझ में नहीं आ रहा है। ऐसा मौका सबको नहीं मिलता है।"

अब उन्हें विशेष क्या परेशानी है ,यह तो मैं नहीं जान पाता हूं। लेकिन जहां तक मुझे लगता है। वह ऐसा सोचती हैं, कि कहीं मैं उस दुनिया में अपना संसार ना बसा लूं।

  अब इस उम्र में भी उन्हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। क्योंकि आपकी शादी को 25 वर्ष हो गया। आपके बच्चें और परिवार भी हैं।

आपका एक लड़का का विवाह हो चुका है। इस उम्र में भी उनकी ऐसी सोच है। फिर आप उनसे बातें कर उन्हें अवश्य समझाएं।

  " मालूम नहीं उनके मन में कौन सी कसक है। जो खुद से मुझको दूर नहीं करना चाहती हैं। उनके मन में है, कि मुझे कहीं कोई और मिल जाए तो मैं उन्हें छोड़ ना दूं।"

‌"उन्हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। आप उनसे स्पष्ट बातें करें। और उन्हें समझाइए कि आपका जीवन, आपका कैरियर , आपकी शौक , आदि कार्यों में वे दखल ना दें। इन सब चीजों से उन्हें भी फायदा मिलेगा।"

   " भाई साहब ! मैं बात करके कर थक गया। उन को समझाते हुए 25 वर्ष गुजर गया।"

 मैंने कहा " मैं एक बार उनसे बात करके देखता हूं। शायद कोई सकारात्मक परिणाम निकल आए। "

उन्होंने कहा " ठीक है ! आप बात कर लीजिएगा। लेकिन मुझे नहीं लगता कि, कोई फायदा होगा। जब मैं दिन-रात उनके साथ रहता हूं। मेरी बात को नहीं समझ पाती है। तो फिर आपकी बात समझना.....!

  आप तो उनके लिए अजनबी ही है।"

   फिर उन्होंने अपनी सारी आपबीती बताई।

    " मेरा जन्म मुंबई में हुआ। बचपन से वही पला - बढा। मेरी स्नातक तक की शिक्षा वही पूरी हुई। बचपन से मुझे कला से प्रेम था। उस जमाने में जब गांव में किसी के घर में टीवी नहीं था । तब मुंबई में हमारे घर में टीवी था । मैं गाने सुनता और गुनगुनाया करता था। इसी तरह मुझे नृत्य- संगीत से प्रेम हो गया। हमारे विद्यालय में भी इन सबका प्रशिक्षण दिया जाता था । बात वर्ष 1988 की है। जब मैं नौवीं कक्षा में पढ़ता था।

मैंने विद्यालय के संस्कृति कार्यक्रम में भाग लिया। मैं मोहम्मद रफी के गीत गाया।मुझे इतना मान मिला, शिक्षक और विद्यार्थियों ने इतना पसंद किया , कि मैं उन पलों को आज भी नहीं भुला पाता हूं।

 उसके बाद जो व्यक्ति मुझे नाम से नहीं जानता। वह भी मोहम्मद रफी के नाम से मुझे पहचानता था।

    नृत्य में भी मैं कुशल हो गया। लोगों ने कहा तुम्हारे आगे तो गोविंदा भी फेल है। दसवीं के बाद मुझे एक स्टेज शो में गाने और नृत्य करने का मौका मिला। मैंने बाजी मार ली। उस सभा में बॉलीवुड के कुछ कलाकार में थे।

जिन्होंने मुझे फिल्मों में काम दिलाने का ऑफर दिया।

 ऑडिशन हुई। मैं उस में सफल होने के बाद, कुछ छोटी बजट के डरावनी फिल्मों में काम भी किया।

 उसके बाद एक पहचान बनी। कुछ भोजपुरी फिल्मों के गीतों में नृत्य भी फिल्माया गया।

    मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। कोई छोटा- मोटा काम मुझे मिलता तो मैं उसे करके संतुष्ट होता। इसी बीच गांव की लड़की से मेरा विवाह संपन्न हुआ। कुछ दिनों के लिए मैं गांव में रह गया। मेरे विवाह के पश्चात मेरी मां पिताजी मुंबई गए थे। कुछ दिन बाद वहां से गांव वापस आ गए।

    मैंने पूछा तो पिताजी ने कहा " कर्ज की वजह से हमने मुंबई वाला घर बेच दिया है।

 अब हम सब गांव में ही रहेंगे। मैंने सुना तो आवाक रह गया। मेरे तो जैसे सारे सपने ही टूट गए। कुछ दिन बाद मैं फिर मुंबई गया। अपने दोस्त की खोली में उसके साथ रहने लगा। पर बचपन से अपने घर की सुविधाओं मैं रहने का आदी , मैं झुग्गी के खोली की कठिन जिंदगी में मैं नहीं रह सका। फिर पत्नी भी गांव में ही रहती थी। उसकी चिंता अलग थी , वह नित्य घर आने को कहती थी।

मैंने भी क्षणिक सुख, और उम्र के प्रभाव में आकर गांव आकर उसके साथ रहने लगा। इस तरह हमारे तीन बच्चे हो गए। फिर यहां मेरे टैलेंट का कोई उपयोग नहीं था।

  नहीं , उससे हमारी जीविका ही चल पाती। इसलिए मैं शिक्षण से जुड़ गया। इसे अपना कैरियर बना लिया।

पर आज भी मैं भोजपुरी फिल्मों के निर्माताओं से सीधे संपर्क में हूं। लेकिन श्रीमती जी का कोई हल नहीं निकल रहा। कभी उनको बिना बताए चला जाता हूं , तो आने पर पचास सवाल करतीं हैं।

   अब मुझे वह सब सपने जैसा लगता है। डायलॉग और कहानियां लिखना, गाना - नाचना तो मैं जैसे भूल ही गया हूं।

  इतना कहने के पश्चात वह चुप हो गए। मैं भी चिंता में पड़ गया। सोचने लगा क्या किया जाए ? अंत में मैंने उनकी पत्नी से बात करने को ठानी।

एक दिन मैं उनसे मिलने गया । मुझसे उनका परिचय पहले से केवल औपचारिक ही था।

हम तीनों साथ बैठे थे। मैंने उनसे कहा देखिए काम तो काम होता है। हर इंसान को अपनी योग्यता और प्रतिभा का उपयोग करना चाहिए । फिर हम ऐसा काम करें, जो हमारे लिए रुचिकर हो हमें मन लगता हो। तो हमें उस काम को अवश्य करना चाहिए। हर इंसान किसी खास काम के लिए बना होता है।

आप चिंता ना करें अब इस उम्र में भाई साहब आपके सिवाय किसी और को देख भी नहीं सकते। परिवार और आपके लिए इन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित किया है। तरक्की का कोई अवसर मिल रहा है। तो आप इन्हें वहां काम करने दें। वहां पर ऐसा कुछ नहीं होता ,जैसा आप सोच रही है। हर कलाकार एक साथ काम करके भी एक दूसरे से अलग होते हैं। सबकी अपनी निजी जिंदगी होती है फिर यह काम ऐसा है। यदि आपको काम मिले तो आप बुढ़ापे तक काम कर सकते हैं।

जैसा कि आपने अमिताभ बच्चन जी का नाम सुना है। मुझे याद है शायद 1992 का वर्ष रहा होगा अमित जी 50 वर्ष के हो गए थे। उन्होंने अपनी सफेद दाढ़ी दिखाकर यह कहा कि अब मैं बूढ़ा हो गया हूं । फिल्मों में काम नहीं करूंगा ‌।

  फिर एक ऐसा दौर आया। किसी प्रोडक्शन में अधिक पैसा लग जाने के कारण और उसको सफल ना होने की वजह से उनको अपने घर तक गिरवी रखने की नौबत आई।

    उनके मन में फिर आया । मैं किस लिए बना हूं ? आखिर मैं क्या कर सकता हूं ?

इंसान को वही काम करना चाहिए। जो उसे आता हो। उन्होंने केबीसी शुरू किया सफलता मिली। आगे उनको फिल्मों में काम करने के लिए भी निर्माताओं ने आग्रह किया। फिर से एक बार अभिनय की दुनिया में आ गए। और आज तक इतने वृद्ध होने के बावजूद उन्होंने अपनी एक्टिंग नहीं छोड़ी। क्योंकि वह उसी को जीते हैं आज वह महानायक है।

    आप भी उनके जीवन से सीखे। और भाई साहब को काम करने दे। हां आपको कोई असुविधा हो , यदि आपकी खर्चों में कटौती हो। आपके बच्चों की शिक्षा में कोई कमी हो तो, फिर आप मुझे बताएं। मैं इनसे बात करूंगा।

इस तरह श्रीमती जी मान गई। उन्होंने मुझे भरोसा दिया कि, आगे से वह इनके मार्ग में बाधक नहीं बनेंगे। इनको जहां जो भी काम करना है कर सकते हैं।

   आज रविंद्र जी खुश है। उन्हें एक फिल्म की शूटिंग के लिए नालंदा बुलाया गया है। अब उनके कार्य में कोई बाधा नहीं है । मैं भी खुश हूं। संभव है मेरी बातें दो लोगों की जिंदगी बदल दे।

हम कामना करते हैं , कि हमारे प्रिय मित्र रविंद्र जी " मौके पर चौका" लगाएं। अपनी" डांस पर चांस" पाए। और एक स्टार बने। फिर मैं इनके साथ अपनी फोटो खिंचवाऊंगा।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Classics