दादी तुम ग्रेट हो
दादी तुम ग्रेट हो
आज सुबह से ही रसोईघर से आवाजें आ रही थी। माँ तो सोई हुई थी तो फिर कौन होगा जो रसोईघर में काम कर रहा है। घड़ी को देखा तो सुबह के साढ़े चार बज रहे थे। एक बार को सोचा कि उठकर देख लूं। फिर आलस के मारे उठने का मन ही नही हुआ। सुबह जब सात बजे उठा तो सब जैसे बदला बदला लग रहा था।
दादी ने सबको बैठक में बुलाया और सबको एक गिलास थमा दिया। जिज्ञासावश पूछा, दादी ये क्या है? तुरन्त दादी की कड़कती आवाज सुनाई दी। पी ले बबुआ। मां, बाबूजी, दीदी सभी गिलास पकड़े थे और सबको दादी पीने को कह रही थी। मां, बाबूजी ने तो चुपचाप पी लिया पर दीदी और मैं ही नखरे कर रहे थे। बाबूजी ने इशारा किया तो दीदी और मैंने चुपके से पी लिया।
पीने के बाद दादी खुशी से मेरे पास आकर बैठी और सर पर हाथ फेरते हुये बोली। बिटुआ, इसे काढ़ा कहते हैं। अब रोज दो बार दिन में सबको पीना पड़ेगा। आज सुबह ही बनाया है। याद है ना कल मोदी जी ने टीवी पर क्या बोला है, कोरोना जैसी कोई बीमारी आई है, सबको ध्यान रखना है। लॉक डाउन लगा दिया है। घर से बाहर कोई नही जाएगा। बस अब संयम रखो, नियमो का पालन करो।
मैंने पूछ ही लिया कि दादी काढ़े में मिलाया क्या है? क्या सुबह सुबह आपही रसोईघर में खटर पटर कर रही थी? दादी मुस्कुराते बोली, बदमाश मैं अपने बच्चों के लिए ही काढ़ा बना रही थी। इसमे प्राकृतिक चीजे मिली है जो हर घर की रसोई में होती हैं। ज्यादा मेहनत नही करनी पड़ी।
नाश्ते में फिर दादी दूध लेकर आई तो देखा दूध का रंग पीला था। बिना पूछे दादी ही बोली, बबुआ इसमें हल्दी मिलाई है। हल्दी शरीर की प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाती है। सबने मन मार कर बिना कहे दूध पी ही लिया।
आज कॉलेज तो जाना नही था तो सोचा मस्ती करेंगे। पर देखा कि दादी बोतल में कुछ भर रही है। माँ भी दादी का हाथ बंटाने में व्यस्त थी। दीदी को आवाज देकर बोली, अरी बिटिया इन में एक एक बोतल सभी स्नानघर और बाहर वाशबेसिन के पास रख दे। बस इसी से बार बार हाथ धोने हैं। इसमे फिटकरी और रीठा है। अब पूरे घर को खाने से पहले, खाने के बाद और बीच में जब मन करे हाथ धोते रहना है। स्वच्छता का बराबर ध्यान रखना है।
दिन में दादी सिलाई मशीन लेकर बैठ गई। देखा बचे कपड़ो और कतरनों से कुछ सिल रही है। मां रसोईघर में व्यस्त थी। दीदी साथ में बैठी थी और दादी की सहायता कर रही थी। मैं अपने कमरे में मोबाइल में व्यस्त था।
शाम को जब सब चाय के लिए बैठे तो दादी ने दिन भर की सिलाई का परिश्रम हमारे हाथों में थमा दिया। बोली पहनो इसे, अपने नाक और मुंह ढको। दीदी ने तो खुशी खुशी पहन लिया और बोली भईया, इसे मास्क कहते हैं मैंने दादी ने मिलकर सिले हैं। भईया, एक बार पहनो तो। मन मारकर पहन ही लिया। मास्क बड़े सुंदर बने थे क्योंकि इसमें दादी का प्यार और हुनर छिपा था।
अब रोज दो बार काढ़ा पीओ, दो बार हल्दी का दूध, बाहर जाने पर मास्क लगाओ। जैसे ही कोई घर से बाहर निकलता, दादी की आवाज आती, बहू देख तो मास्क लगा कर ही जा रहा है ना। बाहर से आते ही कपड़े बदलो, हाथ पैर धोवो, फिर बाकी काम करो।
इस मार्च में टीकाकरण की शुरुआत होते ही एक दिन दादी मुझे बुलाई। बोली बेटा, क्या मेरा एक काम करेगा? सुना है मोबाइल में टीका लगवाने के लिए कुछ फॉर्म भरना पड़ता है। बबुआ, जरा भर तो दे। मैं बोला कि आपका भरूँ। वो बोली निगोड़े अपने माँ बाबूजी का भी तो भर मेरे साथ। मेरे तीनों का समय लेने पर दादी को बताया तो बड़ी खुश थी और आशीष दिए जा रही थी। इस तरह दादी और मां बाबूजी ने कोवैक्सीन के इंजेक्शन लगवाए।
एक दिन सुबह सुबह फिर कमरे में आके पूछी। आज क्या तारीख है? एक मई दादी। तुरन्त बोली चल उठ और अपना और अपनी दीदी का इंजेक्शन वाला फॉर्म भर। इस तरह दादी की सजगता के कारण मेरी और दीदी के भी पहले टीके लग ही गये।
आज एक साल हो गया। पर मेरी दादी का नियम नही टूटा काढ़ा व हल्दी दूध पिलवाने का। सोचता हूँ कि मैं कितना भाग्यशाली हूँ जिसके पास मेरी दादी के नुस्खे हैं, उनके जीवन का अनुभव है। आज दादी के नुस्खे ही तो विश्व में प्रचलित हो रहे हैं। मेरा सम्मान अपनी दादी के लिए और बढ़ जाता है। स्वतः ही ईश्वर से दादी की दीर्घायु की कामना में हाथ जुड़ जाते हैं। मन कह उठता है, दादी तुम ग्रेट हो।