दाढ़ी के साथ मेरे प्रयोग
दाढ़ी के साथ मेरे प्रयोग
जब किस्मत साथ नहीं दे तो पत्नी भी छूने नहीं देती है। क्या करें ? कुछ समझ नहीं आ रहा है। एक तो ये गोदी मीडिया मुझे चैन लेने नहीं देता और उस पर लोग भी मुझे तंग करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते हैं। हर चुनावों में मुझे हरा देते हैं। लोग कहते हैं कि बीवी सबसे बड़ी समस्या है इसलिए मैंने अभी तक शादी ही नहीं की। पर इससे यह मत समझ लेना कि मैं अभी तक कुंवारा हूं ?
महान लोगों ने कहा है कि यह जिन्दगी अनमोल है और इस जीवन में सब तरह के अनुभव लेने चाहिए। तो मैंने महान साधु संतों की बात मानते हुए सब तरह के अनुभव ले लिये। वैसे भी आजकल लड़कियां भी आधुनिक हो गई हैं। वे भी शादी ब्याह का झंझट मोल लेना नहीं चाहती हैं और अनुभव भी पूरा लेना चाहती हैं इसलिए वे भी सब जगह सुलभ हैं। अगर कभी कभार यहां समस्या आ भी जाये तो फिर सिंगापुर या दूसरे देश तो हैं ही ना ? साल में दो चार यात्राऐं तो फिक्स ही हैं। वैसे एक बात बताऊं ? बिना बताये यात्रा करने का एक अलग ही आनंद है। जनता कयास लगाती रहती है कि मैं विपश्यना करने गया हूं। मेरी पी आर टीम बताती है कि मैं बॉडी मसाज कराने गया हूं पर ये तो मेरा निजी स्टॉफ ही जानता है कि मैं रंगरेलियां मनाने विदेश जाता हूं। लोग इतने वेल्ले बैठे हैं कि उन्हें मुझ पर ही बात करनी है , उनके पास और कोई काम नहीं है। अरे भैया, अपने काम से काम रखो और मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो। मैं चाहे ये करूं मैं चाहे वो करूं, मेरी मर्जी।
ये मम्मियां भी बहुत खूसट होती हैं। हमेशा अपने बच्चों के पीछे पड़ी रहती हैं। बचपन में जब मैं छोटा था तब कटोरी हाथ में लेकर मेरे पीछे पीछे भागती थी "बेटा कुछ खा ले, बेटा थोड़ा सा खा ले।" पता नहीं कितना खिलाना चाहती हैं ये। अरे, जब भूख होगी तब खुद ब खुद खा लूंगा ना ! पर नहीं , जब देखो तब पीछे पड़ी रहती हैं। जब थोड़ा बड़े हो जाओ तब "बेटा पढ़ ले" की रट लगाये रहती हैं। साथ में उलाहना भी देती रहती हैं कि फलां के इतने नंबर आये हैं, तेरे इतने से क्यों आये" ? अब उन्हें कौन समझाये कि हम "खानदानी" हैं। नंबर चाहे कितने ही क्यों न आयें , राज तो हमें ही करना है। पर नही, वे नहीं मानती हैं। जवान हो जाओ तो शादी की रट लगा देती हैं। क्यों करें शादी ? एक से ही पल्ला क्यों बांधें ? जब बाजार में 56 भोग उपलब्ध हों तो "दाल रोटी" क्यों खायें ? पर ये मानती ही नहीं हैं।
अब आप ही देखो , एक पी आर टीम मेरे पीछे लगा दी है मम्मा ने। कहती है कि अब वो जमाना गया जब हमारे "खानदान" का नाम चलता था। अब तो पब्लिसिटी का जमाना है। "जो दिखेगा वही बिकेगा" इस फार्मूले पर काम करती है दुनिया इसलिए चाहे काम धेले का मत करो मगर ऐसा दिखाओ कि कितना काम करते हो ? चाहे रात के अंधेरे में दुश्मन देशों के साथ गुपचुप समझौता करके देश गिरवी रख दो पर जनता के सामने यह बताओ कि मुझसे बड़ा देशभक्त और कोई नहीं है। इसलिए ये पी आर टीम और ईको सिस्टम मेरे पीछे लगा दिये हैं।
पी आर टीम भी कमाल की है। कहती है कि तुम्हारे नाम में "वह" लगा है जो तुम्हारा नहीं है, बल्कि उसे तुमने चुरा लिया है और इस देश की जनता "उसे" पूजती है। मेरे आज तक ये समझ नहीं आया कि लोग "उसे" क्यों पूजते हैं ? जो आदमी अपने अगल बगल में दो दो नंगी औरतों के साथ खुद नंगा सोता था वह महान कैसे हो सकता है ? पर, इस देश में उसके लिए ऐसी ऐसी गाथाऐं गढ़ी गई कि उसे महान घोषित कर दिया। अब ये पी आर टीम कह रही है कि यदि महान बनना है तो उस "संत" की तरह काम करना होगा।
पी आर टीम ने पहला काम बताया कि उस "संत" को "औरतों" से विशेष लगाव था। अपने इर्द-गिर्द औरतें ही रखता था वह। अत: मुझे भी ऐसा ही करना होगा महान बनने के लिए। इस सुझाव ने मेरी बांछें खिला दीं। अंधे को क्या चाहिए, दो आंखें ? मुझे तो दो आंखों के अलावा भी बहुत कुछ मिल रहा था। मैंने तुरंत हामी भर दी। हमारी पी आर टीम भी बड़ी शानदार है। उसने इसके लिए एक से बढकर एक महिला की व्यवस्था कर दी। खूबसूरत हीरोइनों की तो लाइन ही लगवा दी। प्रसिद्ध खिलाड़ी , उद्योगपति, पत्रकार, कलाकार, विद्यार्थी, नौकरीपेशा वगैरह सब तरह की महिलाओं का जुगाड़ कर दिया। अपने पौ बारह हो गये।
पी आर टीम ने आगे कहा कि मुझे एक यात्रा करनी होगी वो भी "लंगोट" पहनकर। पी आर टीम को बताना चाहता हूं कि अब जमाना बदल चुका है। अब तो आर एस एस भी "नेकर" से "पेंट" पर आ गया है तो अब "लंगोट युग" में लौटना ठीक नहीं है। इसलिए मैंने एक टी शर्ट में यात्रा करना मंजूर कर लिया। भरी सर्दी में एक टी शर्ट में यात्रा करना कितना मुश्किल काम है ? पर ये संभव हो सका इन खूबसूरत हसीनाओं के कारण। अरे भैया , जब आग उगलता हुआ हुस्न आपके साथ चल रहा हो तो सर्दी लग सकती है क्या ? हुस्न की गर्मी से बर्फीली हवाऐं भी पिघल जाती हैं। फिर मैंने तो खुद इन हसीनाओं के हाथ पकड़े थे , किसी के कंधे पर भी हाथ रखा था। अब ज्यादा मत पूछना कि और क्या क्या पकड़ा था या कहां कहां हाथ रखा था ? जब उन्हें ही आपत्ति नहीं है तो आप कौन होते हैं आपत्ति करने वाले" ?
पी आर टीम ने एक बात पते की बताई। उसने कहा कि "महात्मा" बनने के लिए कोई एक महान काम करना होता है और फिर उस पर एक किताब भी लिखनी होती है जैसे कि "मेरे सत्य के साथ प्रयोग" लिखी गई थी। यह सुनकर मेरा कलेजा बैठ गया। ना तो मुझे लिखना आता है और ना पढ़ना। काम कभी किया नहीं तो अब कैसे करूंगा। मगर पी आर टीम बहुत बुद्धिमान है। उसने कहा "एक काम ऐसा है जिसमें ना तो लिखने की जरूरत है और न ही पढ़ने की। और तो और उसमें कुछ भी नहीं करना पड़ता है , सब स्वतः होता है।"
हम उनका इशारा समझ गये और हमने अपनी दाढ़ी रखना शुरु कर दिया। कुछ नहीं करना पड़ा हमें इसके लिए। बल्कि एक टीम इसकी देखभाल के लिए मम्मी ने लगा दी। यह टीम मेरी दाढ़ी की ऐसी बढ़िया देखभाल करती थी जैसी तो उसने अपने बच्चों की भी नहीं की होगी। कभी फ्रेंच कट तो कभी पूरी। कभी मौलानाओं जैसी तो कभी मार्क्स जैसी। दाढ़ी में सफेद बाल बहुतायत में थे इसलिए मुझे लगा कि अब लड़कियां मेरे से कतराने लगेंगी। मगर क्या हुआ कि अब लड़कियों के अलावा मैच्योर महिलाएं भी मेरे साथ फोटो खिंचवाने लगीं। सच में, दाढ़ी में गजब का चुम्बक लगा होता है। यह सबको खींचती है। किशोरी, युवती और मैच्योर लेडी, सब मेरी दाढ़ी की फैन हैं। दाढ़ी के साथ नये नये प्रयोग बहुत अच्छे लग रहे हैं। अब इन प्रयोगों पर एक पुस्तक लिखने की इच्छा हो रही है। हो सकता है कि एक दिन मैं कोई किताब ही लिख मारूं। पुरस्कार तो उसे मिल ही जायेगा, आखिर इतने चेले चपाटों को हमने बहुत सारे पुरस्कार जो दिलवाये थे। अब वे लोग मुझे दिलवायेंगे। क्यों हैं ना ?"
श्री हरि