Kameshwari Karri

Abstract

4.4  

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दादा और दादी का सच्चा प्यार

दादा और दादी का सच्चा प्यार

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सुगता की शादी आकाश के साथ तय हो गई थी । फ़रवरी में शादी की तिथि भी तय कर दिया गया था । दादी की चहेती पोती थी । इसलिए दादी हमेशा उसे अपने आँखों के सामने ही रखती थी । अब तो दो महीनों में चली जाएगी इसलिए दादी ने सबको वार्निंग दे दी कि सुगता कोई भी काम नहीं करेगी । मेरे साथ ही ज़्यादा वक़्त बिताएगी । सब हँसने लगे दादी आप भी सुगता के साथ दहेज में चले जाओ । यह सुनते ही वे ग़ुस्से से सबकी तरफ़ देखती थी । ऐसा कहीं होता है क्या? जैसे होता तो शायद वे चली भी जातीं । 

एक दिन जब दादी सुगता से बातें कर रही थी उन्होंने आँखों में आँसू भरकर कहा "बेटा अब ससुराल ही तेरे लिए सब कुछ है जाते ही अपनी मनमानी करने की न सोचना पहले सब का दिल जीतना फिर अपने आप ही सब तेरे आगे पीछे घूमेंगे प्यार से रहेगी तो सबका प्यार तुझे मिलेगा वैसे मुझे फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है । तुझे बहुत ही अच्छे संस्कार मिले हैं ।" सुगता ने कहा "—दादी वह सब छोड़िये और आप अपने बारे में बताइए न ?मैंने कभी आपके और दादा जी के बारे में कुछ पूछा ही नहीं था । आज तो आपको बताना ही पड़ेगा कि आप दादा जी से कैसे मिलीं कब मिलीं आप दोनों की शादी कैसे हुई ?यह सब !!" दादी हँसने लगी जब वे अपने बिना दाँत वाले पोपले मुँह से हँसती हैं तो बच्चे के समान लगती हैं । दादी हँसो नहीं बताओ न .... क्या करेगी सुनकर बेटा यह तो बहुत साल पहले की बातें हैं ... पर सुगता नहीं मानी !!मुझे तो सुनना ही है कहकर ज़िद करने लगी । दादी ने कहा "ठीक है सुन !! पर एक शर्त किसी से कहना नहीं ठीक है न । सुगता ने कहा ठीक है दादी जल्दी शुरू करो मैं तो उतावली हो रही हूँ!!!"

दादी ने कहा सुन "मेरे पिता जी गाँव के बहुत बड़े ज़मींदार थे । खेती बाडी थी । बहुत पैसे वाले थे । उसी जमाने में मेरा दूसरा भाई फ़ौज में काम करता था । घर में नौकर चाकर सब थे । बहुत ही संपन्न परिवार था । 

मैं अपने भाई बहनों में सबसे छोटी थी । मेरे पिताजी जब मैं छोटी थी तब ही गुजर गए थे इसलिए सब मुझे बहुत प्यार करते थे । बड़ा भाई पिता की तरह ही मेरी देखभाल करता था । मैं नौ साल की हो गई । एक दिन माँ ने बड़े भाई से कहा -रामू अपनी दोनों बहनों का विवाह तो तूने छह साल में ही कर दिया था । कादंबरी के बारे में क्यों नहीं सोच रहा है । छोटी है छोटी है कहकर कब तक उसे बिन ब्याहे घर में रखेगा? 

रामू ने कहा -"माँ मैं भी देख रहा हूँ ,पता नहीं सब दूसरी शादी वाले ही मिल रहे हैं । छोटी सी बच्ची को दूसरी शादी वाले को देकर भेज नहीं सकते हैं न !!इसलिए सोच रहा हूँ ।वैसे मैंने सबको बताकर रख दिया है ।"

माँ ने कहा —"पास के गाँव में मेला लगा है कादंबरी वहाँ जाना चाहती है ।इसलिए ले जाने के लिए सोच रही हूँ ।तेरी बुआ के ससुराल वाले वहीं रहते हैं ।उनके घर में ही रात को रहेंगे । उन्हें भी बता देती हूँ !कोई अच्छा नेक लड़का है तो हमें बताए ।"

रामू ने कहा—"ठीक है माँ मैं कल आप लोगों के लिए जाने का इंतज़ाम कर देता हूँ ।"

दूसरे दिन मैं और मेरी माँ मेला देखने गए । वहाँ जिनके घर गए थे ,उनके घर में भी एक लडका था ।जिसका नाम नीलकंठेश्वर था । उस जमाने में उसने बी .ए किया था । मेरी माँ को वह लड़का बहुत पसंद आ गया । उस लडके की विधवा बुआ उनके घर में ही रहती थी क्योंकि उसकी माँ नहीं थी । उस रात हम लोग उनके ही घर रुके थे । उसकी बुआ को भी मेरी माँ और मैं पसंद आ गए थे । ख़ैर मुझे तो यह सब कुछ मालूम नहीं था हम वापस आ गए । उस दिन घर में सब लोग खाना खाकर आराम से बातें करते हुए बैठे थे । रामू भैया ने माँ से पूछा आप वहाँ सबको बताऊँगी अच्छे रिश्तों के लिए कह रही थी न बताया । माँ ने कहा - हाँ मैंने बताया तो था पर तेरी बुआ के रिश्तेदार के घर के बेटे को मैंने देखा है पढ़ा लिखा है दिखने में भी बहुत सुंदर है । उसका नाम नीलकंठेश्वर है उसकी बुआ को भी कादंबरी पसंद आई है बात चलाकर देखो । रामू ने ठीक है माँ मैं उनके बारे में पता लगाता हूँ । कुछ दिनों बाद फिर घर के लोगों की बैठक बैठी । भाई ने कहा इसके लिए अच्छे रिश्ते ही नहीं मिल रहे । मैं माँ की गोद में सोकर उनकी बातें सुन रही थी मैंने कहा — नीलकंठेश्वर के साथ मेरी शादी करा दो न मुझे वह बहुत पसंद आया है । सब ज़ोर से हँसने लगे । उस समय इतनी समझ भी नहीं थी कि कैसी बातें करनी हैं । बस घर वालों की तकलीफ़ देख कर कह दिया । भाई ने कहा —उनके पास ज़्यादा पैसे नहीं है ।उसकी तो अभी नौकरी भी नहीं है तो मैंने कहा आपके पास है न आप दे दो या नौकरी दिला दो । परिवार वालों ने भी सोच समझ कर मेरी शादी नीलकंठेश्वर से करा दी । कादंबरी अभी छोटी थी तो ससुराल भेजकर फिर वापस घर बुलाया गया । कादंबरी के भाई नीलकंठेश्वर को स्कूल की नौकरी दिलाना चाहते थे परंतु उसे वह नौकरी पसंद नहीं थी ।उसे मालूम था कि उसकी पढ़ाई से उसे बहुत अच्छी नौकरी मिल सकती है । उसके एक दोस्त ने जो उसका क्लास मेट था बताया कि कलकत्ता में अच्छी सी नौकरी है । जो तुम्हें मिल सकती है । इसलिए जल्दी से आ जाओ । नीलकंठेश्वर को मालूम था कि कादंबरी के भाई उसे छत्तरपुर से बाहर नहीं जाने देंगे । उस समय कलकत्ता माने अभी के अमेरिका जैसा था । नीलकंठेश्वर ने जाने का निश्चय कर लिया और मुझसे से मिलने मेरे घर आया । उस समय मैं बगीचे में बैठी थी । मेरे पीछे खड़े होकर उन्होंने धीरे से पुकारा कादंबरी !!मेरा नाम सुनते ही मैं पीछे पलटी नीलकंठेश्वर को देख मैं शरमा गई और डर भी लगा कि कोई देख न ले । उन्होंने कहा मैं सब देख कर आया हूँ ,घर में कोई नहीं है । फिर कहा सुनो मैं कलकत्ता जा रहा हूँ ।मुझे वहाँ नौकरी मिल रही है , जैसे ही मैं घर ले लूँगा !!तुम्हें आकर ले जाऊँगा ,यह मेरा वादा है । जब मैं कल से नहीं दिखूँगा तो तुम्हारे भाई और मेरे घर वाले कुएँ ,नदी ,नाले सब जगह मुझे ढूँढने की कोशिश करेंगे पर तुम अपना मुँह नहीं खोलना कुछ नहीं बताना । उनका रोना धोना भी चलेगा । कोई बात नहीं मैं आ जाऊँगा मुझ पर भरोसा करो परंतु अगर किसी से कुछ कहा या उन्हें हिंट भी दिया तो मैं तुम्हें कभी भी नहीं ले जाऊँगा कहकर चला गए । नीलकंठेश्वर ने जैसे कहा वैसे ही घर के सारे लोग सब जगह ढूँढने लगे । मुझे हँसी आ रही थी ,पर उनकी बात मुझे याद आते ही दुखी होने का नाटक करती थी । मेरी बहनें भी दुखी होकर कहती थी कि घर में सबसे छोटी है और देखो उसकी ज़िंदगी कैसी हो गई है । मैं कविता लिखती थी । मन के विचारों को चुपचाप काग़ज़ पर लिखती रहती थी । 

पुराना जमाना था पति नहीं है ?कहाँ गया पता नहीं है ?ऐसे में अगर मैं अच्छे से कपड़े पहनकर कंघी भी करती थी तो भी माँ या भाई कहते थे बेटा तैयार मत हो सब हँसेंगे । एक साल बाद नीलकंठेश्वर वापस आ गए । उन्हें देखते ही सब हैरान तो थे ही साथ ही प्रश्नों की बौछार करने लगे ।कहाँ थे इतने दिन ,बताकर क्यों नहीं गए ? नीलकंठेश्वर ने सब को शांत कराया और बताया कि अभी उसे कलकत्ता में नौकरी मिल गई है । बारह रुपये महीने में मिलेंगे । मैंने घर भी देख लिया है । कादंबरी को लेने आया हूँ उसे लेकर परसों चला जाऊँगा क्योंकि मुझे ज़्यादा छुट्टी नहीं मिलेगी । 

घर में सबकी बैठक हुई । सबको डर था कि कलकत्ता ले जाकर बेटी के साथ कैसा व्यवहार करेगा मालूम नहीं । उस पर विश्वास करके बेटी को उसके साथ कैसे भेज दें । फिर सबने मिलकर यह तय किया कि मेरे साथ मेरे सबसे छोटे भाई को भी भेज दें । सबने चैन की साँस ली और मैं , नीलकंठेश्वर और बटुक भैया तीनों कलकत्ते के लिए चल पडे । उन्होंने हँसते हुए कहा भी था तुम्हारा भाई बॉडीगार्ड बनकर आ रहा है । 

कलकत्ता में मैंने अपनी गृहस्थी शुरू की थी । हम महीने में कम से कम तीन सिनेमा तो देख ही लेते थे । आराम की ज़िंदगी जी रहे थे । वहाँ मैंने बहुत कुछ सीखा फिर तुम्हारे पिता होने वाले थे इसलिए मुझे वापस भाई के साथ आना पड़ा । तुम्हारे पिताजी जब एक साल के हो गए तो तुम्हारे दादा जी का तबादला शहडोल हो गया वहीं हम लोग सालों रहे । मेरे चार लड़के और चार लड़कियाँ हुईं । मेरी माँ मेरे साथ ही रहती थी क्योंकि मेरे ससुराल से कोई भी नहीं थे । तेरे दादा जी मेल गार्ड थे ।उन्होंने पैसा नहीं कमाया पर नाम ख़ूब कमाया था । उनकी नौकरी में यह एक रिकॉर्ड था कि मेल कभी देर से नहीं जाती थी और न देर से आती थी ।इसलिए लोग उन्हें देखते ही जयहिंद गार्ड कहते थे । इतने सालों में हमारे बीच कभी भी ऊँची आवाज़ में बात भी नहीं होती थी । बच्चे बड़े हुए सबकी शादियाँ कराकर हम दोनों कभी बड़े बेटे या छोटों के घर जाकर रहते थे । इसी बीच तेरे दादा जी को लकवा हो गया । कुछ साल ऐसे ही बिस्तर पर थे मैं ही उनकी देख भाल करती थी फिर एक दिन वे मुझे छोड़कर चले गए । तब से आज तक मैं अकेले ही अपनी ज़िंदगी जी रही हूँ । बड़ी बहू बहुत अच्छी है । वही मेरी देख भाल कर रही है । बस अब इंतज़ार है कि कब मुझे मुक्ति मिलेगी । यही है मेरी कहानी । "

सुगता ने माहौल को हल्का करने के लिए कहा !!"वाहहहहह दादी आपने तो लवमेरेज किया है !! "दादी ने हँसते हुए कहा चल हट बदमाश और अपने फोफले मुँह से ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी । मैं सोच रही थी कैसा सच्चा था उनका प्यार बिना लड़े झगड़े उन्होंने इतने साल एक दूसरे के साथ बिताए । उनके कदमों पर झुककर मैंने उनका आशीर्वाद लिया । 



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