V. Aaradhyaa

Classics Inspirational

4.5  

V. Aaradhyaa

Classics Inspirational

चटकी हुई चूड़ियाँ

चटकी हुई चूड़ियाँ

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"बहू ! तीज तो सुहागिनों का त्यौहार होता है। अभी तुम्हारे बाबुजी तुम्हें लिवाने क्यों आए हैं !"अंतरा की सास की भृकुटी तन सी गई।पर अंतरा के पिताजी यह कहकर अपनी बेटी को लिवा लाए कि," समधन जी ! मैं रक्षाबंधन के त्यौहार के लिए अंतरा को लिवाने आया हूं। काफी दिन हो गए। घर में सब बिटिया से मिलना चाहते हैं !"

अब पिता आगे बढ़कर कह रहे थे और बेटी की विदागरी कराने भी आए थे। सो मना करने का तो सवाल ही नहीं था।

लिहाजा.... बेमन से ही सही पर अंतरा के सुसराल वालों ने उसे मायके जाने की अनुमति दे दी।हालांकि अभी तीज पर अंतरा की दोनों

ननदें आईं हुईं थीं। ऐसे में मुफ्त की कामवाली अंतरा का मायके जाना सबको बहुत अखर गया था।

मायके में भी अंतरा का मिलाजुला स्वागत ही हुआ था।

जहां बड़ी भाभी नमिता ने दिल खोलकर उसका स्वागत किया था। वहीं छोटी भाभी सुरभी, जो अंतरा की लगभग

हमउम्र थी, अंतरा को देखकर उसके चहरे पर एक शिकन सी आ गई थी। जिसे वह कोशिश करके भी छुपा नहीं पाई थी।

अमित के जाने के बाद यह दूसरी बार था जब अंतरा का मायके आना हुआ था।

पिछली बार जब अंतरा मायके आई थी तब उसे बिना हार शृंगार के देखकर मां का कलेजा जैसे मूंह को आ रहा था। अंतरा को कितना शौक था सजने संवरने का पर इस वैधव्य ने जैसे उसके चेहरे की मुस्कान छीन ली थी।दो दिन तो सब उदास से थे। अंतरा से भी थोड़ी कटी कटी रही थी उसकी छोटी भाभी। तीज आनेवाली थी सो अंतरा की दोनों भाभियां रचबसकर साज शृंगार करनेवाली थीं। पर वैधव्य की चादर लपेटे अंतरा के आ जाने से दोनों की खुशियां जैसे छुप सी गई थी। अंतरा को बुरा ना लगे इसलिए दोनों मेहंदी लगवाने से लेकर चूड़ी वगैरह खरीदने और पहनने का कार्यक्रम गुप्त सा रख रहीं थीं। छुप छुपाकर ही हो रहा था सब।बड़ी भाभी नमिता की शादी को तो आठ साल हो चुके थे और उसका एक पांच साल का बेटा भी था।

छोटी भाभी सुरभी की शादी को यह दूसरा साल था। उसके मन में कई उमंगे थी। उसका मायका लोकल था। सो उसकी मां अर्चना जी को लगा कि उनकी बेटी सजेगी संवरेगी तो उसकी विधवा ननद को बुरा लगेगा। इसलिए उसने बीना जी से फोन पर अनुमति मांगी कि,"इस बार चूंकि आपकी बेटी अंतरा आई हुई है तो उसे थोड़ा बुरा न लगे, इसलिए सुरभी को तीज के लिए मायके भेज दें। वह इसबार तीज यहीं मायके में मना लेगी। उसके बाद फिर ससुराल चली जायेगी। सुरभी भी खुश हो जायेगी और अंतरा को भी बुरा नहीं लगेगा !"

तभी तो समधन की बात सुनकर बीना जी ने कुछ नहीं कहा। सिर्फ इतना कि,"बहन जी, मैं आपको शाम में फोन करके बताती हूं !"उसके बाद बीना जी ने दोनों बहुओं और अंतरा को बुलाया ओर कहा,

"बड़ी बहू, छोटी बहू और अंतरा, तुम तीनों जल्दी तैयार हो जाओ। तीज की खरीदारी करने बाजार जाना है !"सास की बात सुनकर दोनों बहुएं चौक गई कि कहीं उन्होंने गलत तो नहीं सुन लिया? उन्होंने अंतरा का नाम लिया था अंतरा भला तीज कैसे मना सकती है? वह तो विधवा है।

बहरहाल....अंतरा ने ही शंका का समाधान करने के लिए पूछा,

"मम्मी ! क्या मैं भी चलूं ? मैं भला जा कर क्या करूंगी ?"

"हां बेटा ! तुम भी चल रही हो। तीज में अभी दो दिन है। परसों ही तो है। अभी बहुत सारी तैयारी करनी है। चलो सब फटाफट तैयार हो जाओ !"

कुछ समझे कुछ ना समझे की स्थिति में दोनों बहुएं और अंतरा तैयार तो हो गए। पर एक सवाल अब भी जेहन में था कि उन्होंने अंतरा को तैयार होने क्यों कहा था?

तब तक बीना जी भी तैयार होकर आ गई। और उन्हें कहने लगी,

"देखो, मैंने अंतरा को भी हमारे साथ आने के लिए इसलिए कहा कि तीज में झूला झूलना, मेहंदी लगाना, सिंगार करना ....यह सब तो लड़कियां शादी के पहले भी करती हैं। करती हैं कि नहीं ?"जी...मां जी !"दोनों बहुएं एकसाथ बोलीं।

"पर मां ! उससे क्या ?"अंतरा अभी भी असमंजस की स्थिति में ही थी।"सुनो बेटा ! मेरी बात अभी पूरी नहीं हुई।

"हां ... तो विवाहित स्त्रियां सिन्दूर लगाती हैं जो शादी के बाद ही लगाया जाता है जो सुहाग चिन्ह पति के नहीं रहने पर नहीं लगाया जाता है, वह यही सिन्दूर है। लेकिन जो चीजें जो श्रृंगार और जो छोटी छोटी खुशियाँ लड़कियों को शादी के पहले हासिल थी, वह भी क्यों छीन ली जाए? "

अब तक अंतरा मां की मंशा भलीभांति समझ चुकी थी।साथ ही सुरभी को भी जानकर थोड़ी राहत मिली कि अब सब सुहागिनें मिलकर तीज पर साज श्रृंगार करेंगी तो अंतरा भी सिर्फ वैधव्य का जामा पहनकर नहीं रहेगी।

"यह तो आपने बहुत अच्छा सोचा मां जी !"बड़ी भाभी नमिता अंतरा पर हमेशा बहन जैसा लाड़ लड़ाती आई थी। सो वह बोल पड़ी। और अंतरा भी उनकी आंखों में खुद के लिए स्नेह का सागर लहराता हुआ देखकर उनके पास जाकर उनका हाथ पकड़कर खड़ी हो गई तो भाभी ने भी उसे प्यार से गले लगाकर उसका माथा चूम लिया।

"मुझे याद है...हमारी अंतरा शादी के पहले कितनी खुशी से तीज मनाती थी। झूले पर झूलती थी मेहंदी लगाती थी।

वह सब तो वह अब भी कर ही सकती है। यह बहुत अच्छा रहेगा ! "

अब तक अंतरा भाभी के स्नेह से अभिभूत हो गई थी। सो किलककर बोली,"भाभी ! चूड़ियां तो मैं भी पहन सकती हूं। मुझे बहुत पसन्द है चूड़ियां !"

अब नमिता, सुरभी और अंतरा तीनों में बाज़ार जाने का चाव बढ़ गया था। तीनों समझ चुके थे कि बीना जी उन तीनों को बाजार क्यों ले जा रही हैं। एक तरफ जहां नमिता और सुरभी अपनी सास बीना जी की सोच की तारीफ कर रही थी, वहीं दूसरी ओर अंतरा अपनी मां के प्रेम और बिल्कुल खुले विचारों से अभिभूत हुई जा रही थी।

वैसे अभी उसके पति को मरे हुए डेढ़ ही साल हुए थे और इस बीच में अंतरा सौ बार मर चुकी थी।

अमित के जाने के बाद सुसराल वालों को अब अंतरा बहुत खटकने लगी थी। यह तो अच्छा हुआ कि अंतरा के बाबुजी इस बार तीज पर उसे अपने पास ले आए थे। क्योंकि तीज के बाद ही रक्षाबंधन का त्यौहार था और रक्षाबंधन के नाम पर अंतरा मायके आई थी। और यहां आकर जो उसने देखा तो वह समझ गई कि बाबुजी उसे रक्षाबंधन से इतने पहले क्यों ले आए थे ? दरअसल बीना जी और अविनाश जी ने पहले ही सोच रखा था कि...... इस बार अंतरा के जीवन में कुछ खुशियों के रंग भरने हैं। अमित के नहीं रहने पर वैसे ही वह अधूरी हो गई है। और हार सिंगार भी उतर जाने से उसके चेहरे की चमक के साथ-साथ जिंदगी से भी सारे रंग चले गए हैं।

साथ ही उन्होंने यह भी निश्चय किया था कि अब वह अंतरा को सुसराल में सिर्फ मुफ्त की नौकरानी बनाने नहीं भेजेंगे बल्कि अब अंतरा के भविष्य के बारे में विचार करेंगे।

दोनों बेटे तो अपनी छोटी बहन को बहुत प्यार करते ही थे सो उन्हें कोई ऐतराज नहीं होता। बड़ी बहू नमिता तो शादी के बाद पूरे छः साल तक अंतरा के साथ हिलमिलकर बहनों की तरह रही थी। सो वह भी इस निर्णय के विरोध में मूंह नहीं लटकाएगी, उन्हें यकीन था।

हां... छोटी बहू सुरभी ज़रूर थोड़ी तुनकमिजाज थी। पर अंतरा का स्वभाव इतना अच्छा था कि कुछ दिनों में उसके साथ भी अच्छा तारतम्य बैठ ही जाता।

इसलिए बीना जी बड़ी ही समझदारी से एक एक कदम बढ़ा रही थीं।अपनी बेटी के भविष्य को सुधारने की आज वह पहली पहल कर रही थीं, अंतरा को तीज सेलिब्रेशन में शामिल करके।उस दिन बाजार में तीनों ने खूब सुंदर सुंदर मेहंदी लगवाए। और जिस तरह उछल उछल कर अंतरा कभी दुपट्टा खरीद रही थी और कभी अपने लिए कुछ आभूषण ले रही थी। उसे देखकर बीना जी का कलेजा बिल्कुल ठंडा हो रहा था। उनका जी जुड़ा गया था। दोनों बहुएं भी अब बिल्कुल ऑकवर्ड नहीं फील कर रही थी। उन्हें लग रहा था अगर वह दोनों तैयार होंगी और अंतरा उदास रहेगी तब घर का माहौल बहुत गमगीन हो जाएगा। लेकिन आज बीना जी के विचारों और उनकी सोच जो बहुत ही खुलापन लिए हुए था जो किसी स्त्री के मान सम्मान व अस्तित्व को पुख्ता आयाम देने के लिए काफी था।बीना जी ने न सिर्फ़ अपनी बेटी के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया था बल्कि सोसाइटी की ऐसी कई अन्य महिलाओं को भी एक रौशनी की किरण दिखाई थी।

पहले तो उन्होंने आगे बढ़कर अंतरा को तीज और बाकी त्यौहार मनाने के लिए मानसिक रूप से तैयार किया और कहा कि, "जो श्रृंगार वह शादी के पहले करती थी वह वैधव्य के बाद भी कर सकती है। और चूड़ियां तो लगभग हर लड़की को पहनना बहुत पसंद है। चूड़ियां तो वह जब चाहे तब पहन सकती है और जितनी चाहे उतनी पहन सकती है ! "

इस बार तीज पर अंतरा खनखनाती चूड़ियों वाले हाथ और मेहंदी वाले हाथ देखती और फिर अपना चेहरा देखती और खुश होती और सोचती कि मैं अभी भी पहन सकती हूं चूड़ियां, अभी भी कर सकती हूं श्रृंगार। कम से कम शादी के पहले जितना करती थी उतना तो मैं अब भी कर सकती हूं।अब बीना जी और अविनाश जी भी बहुत खुश थे। अंतरा को खुश देख दोनों भाई महेश और सुरेश को भी बहुत अच्छा लग रहा था। उनकी मां की सही सोच की वजह से अंतरा के जीवन में आज खुशियों के रंग बिखरे पड़े हैं। और उन खुशियों के अनगिनत रंगों को को चुनते हुए वह सोचती है,चूड़ियां और बाकी सिंगार तो लड़की सारी जिंदगी पहन सकती है। वहीं क्यों लड़की सारे सिंगार कर सकती है।और अपनी मर्जी से खुशी से उसे करने देना चाहिए। एक तो वैधव्य का पहाड़ सा दुख ऊपर से यह श्रींगारविहीन रूप।

अंतरा के हाथों की खनखन चूड़ियां आज अंतरा को बहुत खुशी दे रही थी और इस वजह से उसके चेहरे की चमक भी दूनी होती जा रही थी उसकी खुशी से घर में आज सब खुश थे।

अब जब भी अंतरा के शृंगार करने पर कोई टोकता तो वह यही कहती,

"चूड़ियां तो कुंवारी लड़की भी पहनती है। फिर एक विधवा की चूड़ियाँ चटकने के बाद फिर क्यों नहीं कलाई पर चढ़ाई जाती हैँ?और....

पति के जाने पर वह क्यों ना पहने चूड़ियां...?

 हां... पति के जाने पर सिन्दूर लगाने का कोई औचित्य नहीं रह जाता। वरना वह सारे शृंगार कर सकती है। उसका श्रृंगार पर हक है और हमेशा रहेगा ! "

उसके बाद अंतरा ने अपनी जिंदगी का एक नया शगल बना लिया कि वह हमेशा अपने आप को और अपने स्त्रीत्व को सजाकर रखेगी। आगे जाकर उसने नौकरी भी की। कालांतर में उसकी दूसरी शादी भी हुई। लेकिन उसका श्रृंगार हमेशा उसके साथ बना रहा।


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