Akanksha Gupta

Drama Horror Thriller

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Akanksha Gupta

Drama Horror Thriller

चंद्रिका एक पहेली भाग -9

चंद्रिका एक पहेली भाग -9

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पिछले भाग में अब तक आपने पढ़ा- शेखर चंद्रिका से नंदिनी का नाम सुनकर घबरा कर कमरे से बाहर निकल जाता हैं। शेखर के रूखे व्यवहार से दुखी चंद्रिका कमरे से बाहर निकल कर शेखर को शशांक का खून करते हुए देखती हैं। अब आगे-

शेखर बरामदे में एक चौकी पर गुमसुम बैठा हुआ था। उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे। उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि उसने चंद्रिका के साथ इतना बुरा व्यवहार किया। उसकी वजह से चंद्रिका की आँखों में आंसू आ गए थे और वो चाहकर भी चंद्रिका को सहारा नहीं दे पा रहा था बल्कि उसकी राह मुश्किल बना रहा था।

उसकी इच्छा हो रही थीं कि वो चंद्रिका के पास जाए और उसे सारा सच बता दें। चंद्रिका को सच बताने के लिए जैसे ही शशांक चौकी पर से उठकर चंद्रिका के कमरे की ओर जाने लगता है, पीछे से एक आवाज उसे रोक लेती हैं- “तो तुमनें फैसला कर ही लिया है उसे सब बताने का।”

शेखर ने पीछे मुड़कर देखा तो वही औरत खड़ी हुई थी जो चंद्रिका की मदद करना चाहती थीं। उन्हें देखते ही शेखर के कदम रुक गए। उस औरत ने भले ही घूँघट डाल रखा था लेकिन उसे शेखर की आँखों में आँसू दिख रहे थे। इससे पहले कि वह औरत कुछ बोलती, शेखर ने थोड़ी तेज़ आवाज़ मे कहा- “हाँ मैं उसे सब बताने जा रहा हूँ क्योंकि मैं उसे इस तरह तकलीफ़ में नहीं देख सकता। आज उसे सबकुछ याद आकर रहेगा, आज वो अपना सत्य जानकर रहेगी।”

इतना कहकर शेखर वहाँ से जाने लगता हैं कि तभी पीछे से उस औरत का सवाल सुनकर रुक जाता हैं। उस औरत का सवाल था- “क्या तुम्हारे सच बताने से सबकुछ ठीक हो जायेगा? क्या चंद्रिका की मुश्किलें कम हो जायेगी? क्या वे ऐसा होने देंगे? क्या सबकुछ याद आने के बाद इस कहानी का अंत हो जाएगा?” इतना कहकर वे शेखर के पास आती हैं और कुछ देर शांत रहने के बाद फिर कहना शुरू करती हैं- “नहीं ऐसा कुछ नहीं होगा बल्कि यह कहानी फिर वही पहुंच जाएगी जहां से यह कहानी शुरू हुई थी। फिर से वहीं तकलीफ़, वहीं इंतज़ार।”

“तो मैं क्या करूँ उसके लिए? मुझसे उसकी तकलीफ़ देखी नहीं जा रही और अपने आँसुओ को मैं ज्यादा वक्त तक छुपा नहीं पाऊंगा। ऐसा लगता हैं कि हम दोनों के भाग्य में ईश्वर ने मात्र परीक्षा ही लिख दी हैं।”

शेखर वहीं पर बनी हुई दूसरी सीढ़ियों पर बैठ जाता हैं। वो औरत भी शेखर के पास जाकर बैठ जाती हैं और शेखर उनके घुटनों पर अपना सिर रख देता है और एक लंबी सिसकी भरते हुए कहा- “आप ही बताओ कि मैं क्या करूँ? आप तो सब कुछ देख रही हैं। क्या आपको दुख नही होता चंद्रिका की तकलीफ देखकर?” शेखर की आँखों के गिरते हुए आँसू उस औरत के आंचल पर पड़ते ही सूखते जा रहे थे।

उस औरत ने शेखर के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा- “मुझसे ज्यादा तकलीफ और किसको होगी, तुम ही बताओ? तुम्हें क्या लगता है, क्या मेरी इच्छा नहीं होती उसे उसका सत्य बताकर उसकी सहायता कर सकूं लेकिन मैं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सकती क्योंकि उसने अपने वचन में मुझे बांध जो दिया है और जब तक वो अपनी इच्छा से मुझे इस वचन से मुक्त नहीं कर देती मैं उसकी कोई सहायता नहीं कर सकती।”

शेखर का मन कुछ शांत हो चुका था। उसने अपनी गीली आँखें पोछी और उस औरत की गोद में से सिर उठाते हुए कहा- “परंतु कोई ना कोई मार्ग तो अवश्य ही होगा उसकी सहायता के लिए अन्यथा वे सभी अपने इस षडयंत्र में सफल हो जाएंगे।” शेखर की आवाज में चिंता झलक रही थी।

“नहीं, इस बार ऐसा कुछ नहीं होगा। इस बार महादेव की कृपा से चंद्रिका स्वयं ही हमारी सहायता कर रही हैं और वह यह बात स्वयं नहीं जानती। उसने मुझपर विश्वास करना आरंभ किया है, जिसका अर्थ यह है कि उसकी स्मृतियां भी शीघ्र ही लौट आएंगी।” उस औरत के इतना कहते ही शेखर के चेहरे पर एक आत्मविश्वास दिखाई देने लगा।

उधर अपने चेहरे पर खून के छींटे देखकर चंद्रिका बहुत डर गई थी। वह जल्दी से उठकर स्नानघर की ओर भागी। वहां पर घुसते ही उसने सबसे पहले आईने में देखा तो उसे अपना चेहरा खून से लथपथ दिखाई दिया। उसने जल्दी से अपना चेहरा धोया और फिर से आईने में देखा। इस बार उसे आईने में अपनी ही एक परछाई दिखाई देने लगी जो उसे देखकर मुस्कुरा रही थीं। उस परछाई के चेहरे पर एक शैतानी चमक आ गई। उसने चंद्रिका की तरफ जोर से हँसते हुए देखा और कहा- “शेखर ने तुम्हारे शशांक को तुम्हारे सामने ही मार डाला और तुम कुछ नहीं कर पाई। क्या यही है शशांक के लिए प्यार? क्या तुम्हारे मन में अपने प्यार के लिए न्याय करने की इच्छा नहीं है? क्या तुम में इतना भी साहस नहीं है कि तुम अपने प्रेम का न्याय कर सको? जिस प्रकार शेखर ने शशांक को मृत्यु दी, उसी प्रकार क्या तुम्हें शेखर को….."

इससे पहले कि वो परछाई आगे कुछ और बोल पाती, चंद्रिका ने चिल्लाते हुए कहा- “शेखर ऐसा कुछ नहीं कर सकता, समझी तुम। तुम जो कोई भी हो मैं तुम्हारे बहकावें में नहीं आने वाली। मैं जानती हूँ कि यहाँ जो कुछ भी हो रहा हैं, वो ज़रूर किसी का रचा गया षड्यंत्र हैं जिसे मैं क़भी सफल नहीं होने दूँगी।” इतना कहकर चंद्रिका ने जैसे ही उस परछाई को छूने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, वो परछाई गायब हो गई और आईना अपनेआप ही टूटकर बिखर जाता हैं। यह देखकर उसे एक पल के लिए डर लगा लेकिन अगले ही पल उसने अपने अंदर एक अदभुत शक्ति का अनुभव हुआ। उसके चेहरे पर एक आत्मविश्वास से भरी मुस्कान तैर गई।

उधर जब स्नानघर में चंद्रिका के छूने पर आईना टूट कर बिखर रहा था तब उसी हवेली के किसी दूसरे कमरे में रखा हुआ एक बड़ा सा आईना भी टूट कर बिखर रहा था। इस बिखरते हुए आईने को देखकर किसी के हाथ कंपकपा रहे थे। उसके दिल की धड़कनें बढ़ी हुई थीं। उसकी तेज़ चलती हुई साँसों को सुनकर अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि उसकी कोई योजना विफल हो गई थीं। चंद्रिका के विरुद्ध इस योजना की सूत्रधार और कोई नहीं बल्कि त्रिपाला थीं।

“यह क्या हो रहा हैं त्रिपाला? यह आईना इस तरह टूट कर क्यों बिखर रहा हैं? क्या तुम्हारा भ्रमजाल टूट गया? क्या हमारा वर्षों का परिश्रम व्यर्थ हो गया है? क्या हमें फिर से प्रतीक्षा करनी होगी?” दर्शना एक ही साँस में इतने सवाल पूछती गई कि त्रिपाला को उसे तेज़ आवाज में चुप करवाना पड़ा।

“शांत हो जाओ दर्शना। मेरे होते हुए ऐसा कुछ नहीं होगा। यह तो मात्र एक छोटा सा परीक्षण था जिसके विफल होने का यह अर्थ नहीं कि हम अपनी योजना हार चुके है।“ त्रिपाला ने कहा तो दर्शना ने टूटे हुए आईने की ओर देखते हुए कहा- “इसे देखो त्रिपाला और बताओ मुझे कि क्या वास्तव में हमारी योजना संकट में नहीं हैं? चंद्रिका का बढ़ता हुआ आत्मविश्वास क्या हमें हमारे लक्ष्य से दूर नहीं ले जा रहा है?”

दर्शना के इस सवाल पर त्रिपाला कुछ देर तक चुप रहने के बाद बोलना शुरू करती हैं- “यह उसका बढ़ता हुआ आत्मविश्वास नहीं बल्कि हमारी योजना में व्यवधान डालने का षड्यंत्र हैं और यह षड्यंत्र कोई और नहीं बल्कि सुमित्रा कर रही हैं।"

सुमित्रा का नाम सुनकर दर्शना को जैसे झटका लगा हो। उसके मुंह से एक शब्द तक नहीं निकला। उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसने कुछ देर तक चुप रहने के बाद उसने त्रिपाला से सख्त लहजे में पूछा- “यह सब कुछ उस पुजारन, उस सुमित्रा का षड्यंत्र? लेकिन वो चंद्रिका की सहायता कैसे कर सकती है जबकि चंद्रिका ने स्वयं ही उससे उसकी सहायता ना करने का वचन लिया था।”

त्रिपाला ने तब कुछ याद करते हुए कहा- “चंद्रिका ने उससे अपनी सहायता ना करने का वचन लिया था, प्रश्न ना पूछने का नहीं और तुम तो जानती हो दर्शना उसके प्रश्नों का उत्तर तो स्वयं ईश्वर के समक्ष एक अनुत्तरित प्रश्न बन जाता हैं।”

“तो क्या उसने शेखर को भी सच बता दिया होगा? उसे तो सच बता सकती है।” दर्शना ने त्रिपाला से पूछा तो त्रिपाला ने एक आत्मविश्वास के साथ कहा- “नही, उसने अभी तक ऐसा कुछ नहीं किया है क्योंकि अगर ऐसा कुछ हुआ होता तो शेखर हमारी बात कभी नही मानता। वो चंद्रिका को सपनें मे भी तकलीफ नहीं पहुंचा सकता। उसका प्रेम उसे कभी ऐसा करने देता। चंद्रिका के साथ उसका बुरा व्यवहार इस सत्य का प्रमाण है कि शेखर को उसने कुछ भी बताने की कोशिश नही की। शेखर को अपने बारे मे कुछ भी याद नहीं आया है।”

उधर चंद्रिका ने भले ही अपने उस डरावनी परछाई का सामना बड़ी हिम्मत से किया था लेकिन उसके मन में डर बना हुआ था। अब तक उसके साथ जो कुछ भी हुआ था इसके बाद उसे अपनी ही आँखों पर संदेह होने लगा था लेकिन वो कपड़ों पर लगी हुई मिट्टी और उसके चेहरे पर लगा यह खून इस बात का संकेत था कि अब तक उसके साथ जो कुछ भी हुआ था उसमें कुछ ना कुछ सच्चाई तो थी लेकिन सब कुछ एक सपनें की तरह कैसे हो सकता हैं जहां वो हर बार नींद से उठती रही थीं। इतना तो उसे समझ मे आ गया था कि यह उसके विरुद्ध रचा गया कोई तिलिस्मी षड्यंत्र है।

यह सब सोचते-सोचते चंद्रिका जैसे ही पीछे मुड़ी, उसे अपना ही जला हुआ शरीर दिखाई दिया जो उसे देखकर मुस्कुरा रहा था।

जारी................



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