Akanksha Gupta (Vedantika)

Horror Fantasy Thriller

4.2  

Akanksha Gupta (Vedantika)

Horror Fantasy Thriller

चंद्रिका एक पहेली भाग-10

चंद्रिका एक पहेली भाग-10

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580


पिछले भाग में आपने पढ़ा- अपने चेहरे पर लगे खून को साफ करने के लिए जब चंद्रिका स्नानगृह में जाती है तो वहाँ पर उसे अपनी ही एक शैतानी परछाई दिखाई देती हैं जो उसे शशांक के प्रेम के लिए शेखर की हत्या करने के लिए उकसाती है जिससे चंद्रिका को गुस्सा आ जाता है और वह उस परछाई को छूने के लिए जैसे ही शीशे पर हाथ लगाती हैं, वैसे ही वो शीशा टूटकर बिखर जाता हैं और ठीक वैसा ही त्रिपाला के कमरे भी होता हैं जिसे देखकर त्रिपाला चिंतित हो जाती है। उधर चंद्रिका की हालत से परेशान शेखर उसे सब कुछ सच बताने का फैसला करता है लेकिन घूंघट वाली औरत उसे ऐसा करने से रोक देती है। उधर चंद्रिका को अपने कमरे मे अपना ही जला हुआ शरीर दिखाई देता हैं। अब आगे-

चंद्रिका अपने ही जले हुए शरीर को देखकर डर जाती हैं। उसकी धड़कनें बढ़ जाती है, साँसे तेज हो जाती है, आवाज गले में ही अटक जाती हैं। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वो अपने ही जले हुए शरीर को देख रही थी। वो शरीर धीरे-धीरे चलता हुआ उसकी ओर मुस्कुराते हुए आ रहा था। उसने वही कपड़े पहन रखे थे जो चंद्रिका ने अपने गृहप्रवेश के समय पहने हुए थे। उसका आधा चेहरा जला हुआ था और आधे चेहरे पर लाल सिंदूर का लेप लगा हुआ था। उसके बाल बिखरे हुए थे और दाहिने हाथ से खून बह रहा था।

जैसे-जैसे वो जला हुआ शरीर चंद्रिका की ओर बढ़ रहा था, वैसे-वैसे चंद्रिका पीछे की ओर जा रही थी। उसने डरते-डरते उस जले हुए शरीर से पूछा- “कौन हो तुम और क्या चाहती हो?”

चंद्रिका का ऐसा सवाल सुनकर वो शरीर इतनी जोर से हँसी कि उस हँसी की आवाज पूरे कमरे में गूंज उठी। उसकी हँसी सुनकर चंद्रिका की दिल की धड़कन लगभग बंद हो गई। फिर धीरे-धीरे उसकी हँसी बंद हुई तो चंद्रिका के दिल की धड़कनें भी सामान्य हो चली थी। उसने चंद्रिका की ओर मुस्कुराते हुए देखा और कहा- “क्या वास्तव में तुम मुझे नही जानती?”

“नहीं, मैं तुम्हें नहीं जानती। मैं तो आज तुम्हें पहली बार देख रही हूँ। कौन हो तुम और कमरे में कैसे आई?” चंद्रिका ने पूछा तो उस अधजले शरीर ने आईने की तरफ़ इशारा करते हुए कहा- “मैं?... मैं वो हूँ और वहीं से आई हूँ।” चंद्रिका ने पीछे मुड़कर देखा तो उसे आईने में अपना रूप धीरे-धीरे बदलता हुआ नजर आया। उसका शरीर भी ठीक उसी तरह जलने लगा। उसके कपड़े भी धीरे-धीरे बदल गए। उसने आधे चेहरे पर भी धीरे-धीरे सिंदूर फैलने लगा था और उसका भी आधा चेहरा जला हुआ था। उसके दाहिने हाथ से भी खून बह रहा था। अब चंद्रिका पूरी तरह से उस अधजली लाश में बदल चुकी थी।

खुद को आईने में इस तरह से देख कर चंद्रिका को यकीन नहीं हुआ। उसने पीछे मुड़कर देखा तो वो अधजली लाश गायब हो गई थी। उसने वापस आईने में खुद को देखा। उसने जब आईने को छुआ तब उसकी आँखों के सामने कुछ धुंधली सी यादें तस्वीरों के रूप मे घूमने लगी।

अब उसकी आँखें क्रोध से लाल हो गई। उसका शरीर क्रोध से काँप उठा। वो जोर से चिल्लाते हुए बेहोश हो गई।

इससे पहले कि चंद्रिका जमीन पर गिरती, उसे शेखर ने अपनी बाहों में थाम लिया। शेखर की आँखों में आँसू थे जो उसकी पलकों पर आकर ठहर गए थे। उसने चंद्रिका को उठाकर पलँग पर लिटाया और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- “मुझे माफ़ कर दो चंद्रिका परंतु तुम्हारे लिए इस सत्य का ज्ञान अब आवश्यक हो गया था कि तुम एक शरीर नहीं बल्कि एक.......।” और इससे पहले कि शेखर आगे कुछ बोल पाता, आईने में उस अधजली लाश का रूप बदल गया और उसने चंद्रिका का रूप ले लिया। फिर उसने शेखर से कहा- “ठहर जाओ शेखर, इतनी अधीरता उचित नहीं होगी तुम्हारी चंद्रिका के लिए। शेखर ने उसे देखते हुए कहा- “ये बात तुम कह रही हो। तुम तो सत्य जानती हो फिर भी इसकी सहायता नहीं कर रही। कैसे देख सकती हो तुम इसे इस अवस्था मे?”

शेखर की बात सुनकर आईने की परछाई वाली चंद्रिका ने कहा- “इसे इस अवस्था मे देख पाना हमारे लिए भी सरल नहीं है शेखर। हम सभी चंद्रिका का एक हिस्सा है और वो हमारा। हम सभी ने अपने बंधनों में रहकर उसकी सहायता करने का प्रयास किया किंतु हमारे प्रयास पर्याप्त नहीं हुए। हम सभी अपने प्रयास अनवरत जारी रखेंगे लेकिन अब महाकाल के उस मंदिर में निवास करती हुई वे पवित्र सिद्धि प्राप्त योगिनी ही तुम्हारी चंद्रिका की सहायता कर सकती है।” इतना कहकर वो परछाई आईने से गायब हो गई।


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