चक्कर
चक्कर
मोर पंखों से झाड़ा लगाकर इब्राहीम भाई ने कहा, ‘कल आओ तो साथ में एक पीतल की परात और लोहे की एक पत्ती ले कर आना।’
दूसरे दिन हम लोग उनके पास गए। इब्राहीम भाई कस्बे में अकेले शख्स थे जो झाड़-फूंक से पीलिया ठीक कर देते थे। दुआ सलाम के बाद, परात और लोहे की पत्ती उनके सामने रख दी। बच्चे को जमीन पर बैठाकर झाड़ा लगाने लगे। वे जिस भाषा में बुदबुदा रहे थे, वह हमारी समझ से बाहर थी। मोर पंखों से बने झाड़े को बच्चे के सिर से फिराते हुए पांवों तक ले आते। यही क्रम कोई चार पांच मिनट चला।
बच्चे के सामने परात खिसकाकर खुद भी जमीन पर बैठ गए। बेगम से उन्होंने एक लोटा पानी लाने को कहा। बेगम पीतल के लोटे में पानी लेकर हाजिर हुई। पहले लोहे की पत्ती को सिर से पैर तक छुआकर परात में रख दिया। फिर लोटे को सिर, छाती, हाथ, पैर से स्पर्श कराते हुए थोड़ा पानी परात में डाला ऐसा उन्होंने कोई सात बार करके लोटे को खाली कर दिया। पानी हल्का पीला नजर आने लगा। ‘इंशाअल्ला कुछ तो पीलिया उतर गया। अब ये परात बच्चे के सिरहाने रात भर रख देना। सारा पीलिया उतर जायेगा।’ अगले दिन हम परात और बच्चे को लेकर उनके यहाँ पहुंचे। उन्होंने झाड़ा लगाया और फिर परात को जरा सा हिलाया पूरा पानी पीला हो चुका था ‘सारा पीलिया उतर चुका है। अब परहेज की कोई जरूरत नहीं।’
‘आँख और नाख़ून अभी भी पीले दिखाई दे रहे हैं।’
‘एक-दो दिन दिखेंगे फिर पीलापन ख़तम हो जायेगा।’ उन्होंने तसल्ली दी।
हम लोग डॉक्टर के पास गए। उन्होंने जाँच करवाई तो पीलिया अभी भी बना हुआ था। उन्होंने सलाह दी बैड रेस्ट करें, ग्लूकोज रोज चढ़ाएँ, गन्ने का रस पिलाए और दवाई लेते रहें। और खाने में तेल घी की एक बूंद नहीं जानी चाहिए। पांच–सात दिन में ठीक हो जायेगा। हमने इब्राहीम भाई वाली सारी बात बताई, वे हँसे और बोले ‘लोहे की पत्ती रात भर पानी में पड़ी रहने से उसमें जंग लग गया था और जंग पानी में घुलने से पीला नजर आने लगा। आप भी किसके चक्कर में फंस गए।’