छोटू
छोटू
उमर अपनी माँ के साथ बैठकर बड़ी ही तन्मयता से सारे दिन की घटनाओं को सुना रहा था जैसे आज ठंड भी हाड-मांस को गला देने वाली पड़ रही थी। हॉफ शर्ट और हॉफ पेंट में माँ भी बस एक जोड़ी कपड़ों पहने थी। आग का अलाव जला कर अपने नन्हे मेहनत कश बेटे की बातें बड़ी रुचि से सुन रही थी। वैसे तो उसका नाम उमर था, उसके अब्बू और अम्मी जब वो माँ की गोद में था तब ही पास के गांव से रोज़गार की तलाश में लखनऊ जैसे बड़े शहर में एक झुग्गी वाले एरिया में छोटी सी झोपड़ी किराये पर ले ली। दोनों मियाँ-बीवी अच्छे से गुज़र-बसर कर रहे थे, उमर के अब्बू सब्ज़ी का ठेला लगाते थे। मोहल्लों का चक्कर लगाकर सब्जियां बेचकर अच्छी ज़िन्दगी कट रही थी। इस ही बीच उनकी हंसती -खेलती ज़िन्दगी को बुरी नज़र लग गई एक दिन सब्जी का ठेला लेकर शहर के फॉश एरिया में सब्जी का ठेले को कोई तेज़ रफ्तार गाड़ी टक्कर मार कर चली गई।
उमर के अब्बू ने वहीं दम तोड़ दिया। भीड़ जमा हो गई तो उनकी झुग्गी के पास रहने वाले ने उसे पहचाना ये तो "इदरीस मियां है, उसने उसकी बीवी को खबर की बीवी और बच्चा बदहवास से भागे आए किसी ने बताया पुलिस हॉस्पिटल ले गई है, एक्सीडेंट का केस है वो दोनों हॉस्पिटल पहुंचे वहाँ डॉक्टर ने मृत घोषित कर दिया।
उन दोनों पर तो पहाड़ टूट पड़ा। रिश्तेदार सब आए पर जब कहते है न अच्छे में सब साथ होते हैं ऐसे मुश्किल वक़्त में कोई साथ नहीं देता, उमर की माँ के भाई, बहनें ससुराल वालों में सब अच्छे खाते -पीते लोग थे लेकिन सबने प उन दोनों को अपनी पेट की आग भुजाने के लिए कुछ तो करना था वो मासूम 10-11 साल का बच्चा काम की तलाश में दर-दर भटका...एक ढ़ाबे पर बर्तन धोनेऔर सफाई का काम मिला। 50 रोज़ पर मगर ढाबे वाले ने शर्त रख दी हफ्ते के हफ्ते पैसे मिलेंगे।
...इतनी छोटी उम्र में ज़िम्मेदारी कई तरह की आज़माईश लेती है, उमर वक़्त से पहले बड़ा हो गया।
धीरे-धीरे वो ढाबे के रंग में रच बस गया। ढाबे पर आने वाले लोग अक्सर उसे "छोटू" नाम से पुकारने लगते, कोई कहता चाय लगा दे, मालिक कहता "छोटू बर्तन समेट। आज उसे ढाबे पर काम करते हुए करीब दो महीने हो गए हैं।
हर हफ्ते पैसे मिलते तो घर जाते एक-एक पैसे का हिसाब जोड़ लेता, कई दिन से वो अपनी अम्मी के लिए पुराने कपड़ो की दुकान से एक स्वेटर लेना चाह रहा था, आजकल लखनऊ में ठं हाड़-मास गला देने वाली ठंड़ पड़ रही थी। कुछ हफ्तों के पैसे जुड़ गए थे सोचा आज स्वेटर ले लेता हूँ।
दुकान पर गया तो दुकान वाले ने 100 ₹ दाम बताये। उमर ने कहा भी मेरे पास तो भैया 50₹ हैं इतने में दे दो...
उमर घर पहुंचा बड़ा उदास था, माँ ने उसके लिए अलाव जला रखा था। छोटी -छोटी लकड़ियां जमा कर के माँ के चेहरे पर सब्र देखकर, उमर दिन भर की थकान और अपनी अम्मी के लिए स्वेटर न ले पाने का मलाल उसको बहुत परेशान कर रहा था।
"जल्द ही वो संभल गया। कहीं अम्मीं उसकी उदासी न देख लें, वो भी परेशान हो जाएंगी, झट से हाथ -मुँह धोकर अम्मीं के पास आकर बैठ गया और अपनी दिन भर क्या-क्या किया वो सब बातें सुनाने लगा, माँ भी तन्मयता से उसकी बातें सुन रही थी...।