छलकते आंसू
छलकते आंसू
इस उम्र में भी उस बूढ़ी औरत का साहस इतना की अकेले ही अपने आप को संभाले रखा था, यह बात उस बुढ़ी मां की है जो लगभग ७०की उम्र में भी अपना जीवन अकेले काट रही थी, हालांकि उस का सारा परिवार सही सलामत रह रहा था पर मां जी को अाजादी से रहने की आदत थी, गांव की होने के कारण वो शहर की वस्ती में रहना तनिक भी पसंद नहीं करती थी जब की उसके बेटे व बहुएं शहर में जिंदगी वसर कर रहे थे,
मां जी को लाख कहने पर भी वो उसे शहर नहीं ला सके थे
उसके लिए उसका सारा गांव ही सब कुछ था, और गांव में बहुत सुखी जीवन व्यतीत कर रही थी,
एक हाथ में लाठी पकड़े हुए मौहल्ले में इधर उधर घूमती व खुश रहती थी,
एक दिन अचानक ही एक कार उसके घर के आगे खड़ी कर दी गई और कुछ लोग मां जी के घर चले गए पता चला की मां का बेटा व उसका परिबार मां को मिलने आया था, मां बहुत खुश थी कभी बेटे को चूमती कभी दुल्हन को और कभी पौते पौती को दुलारती,
आज सारा दिन मां जी किसी को नहीं दिखाई दी थी सभी गली में यही चर्चा कर रहे थे की आज मां जी तो दिखाई तक नहीं दी, बहुत पूछताछ करने पर पता चला की मां का बेटा आया हुआ है, सभी बारी बारी मां को मिलने जाने लगे मां भी सभी को वैठने के लिए कहती लेकिन सभी महमानों को नमस्ते कर के चले जाते क्योंकी मां के बेटे को गांब से गए हुए लगभग चालिस बर्ष हो चुके थे लोग उससे बातचीत करने से शर्माते थे जबकि मां जी से खुलकर बात कर लेते थे,
लेकिन उस दिन मां जी को बात करने की फुर्सत नहीं थी इसलिए सभी जल्दी ही मां से मिलकर अपने घर चले जाते,
दुसरे दिन सुवह आचानक ही सभी ने मां जी को तैयार हुए देखा की मां जी कार के पास वैग लेकर खड़ी थी,
मां बहुत परेशान दिख रही थी शायद बेटे ने मां जी को शहर जाने के लिए मजबूर कर दिया था, लेकिन मां जी का मन जाने को नहीं था लेकिन बेटे के सामने कुछ कह नहीं पा रही थी, कभी किसी को बुलाती कभी किसी को सभी को कह रही थी मेरे घर का ख्याल रखना में चार पांच दिन के बाद वापिस आ रही हूं,
इतनी देर में मां जी को आवाज आई मां जी जल्दी वैठो, देर हो रही है साहब ने डयूटी पर जाना है,
मां की बहु रानी की आवाज थी, गांब के लोगों का झुंड मां के पास खड़ा था मानो कोई नयी लड़की को विदा कर रहा था,
मां ने सभी को हाथ से हिलाते हुए कहा मैं जल्दी ही आकर सब से बात करूंगी, मां की आंखों में प्यार की ममता थी, मां की आंखों में आंसू साफ झलक रहे थे, कार मे वैठने से पहले मां जी ने सभी को आशीर्वाद दिया, व कार में वैठ गई, और दूर तक शीशे में से झांक कर गांब वालों को निखार रही थी की मानो उसे कोई किसी परदेश में ले जा रहा हो,
गांब वाले भी सभी सहमे हुए भावूक हो चुके थे, की तरूंत ही कार उनकी आंखों से औझल हो गई,
लगभग दस दिन हो चूके थे सभी मौहल्ले वाले भी बहुत महसूस कर रहे थे क्योंकी मां जी उन्हें तरह तरह की कहानीयां सुनाती थी और सारा दिन रौनक लगी रहती थी अब तो मौहल्ले मैं उदासी सी छाई रहती थी,
उधर मां भी बहुत परेशान थी रोज अन्दर ही अन्दर वैठ कर तंग आ चुकी थी यही चाहती कोई मुझे मेरे गांब छोड़ आए,
शहर में सब कुछ था हर तरह का ऐशो आराम पर मां जी का मन तनिक भी नहीं लग रहा था वो ऐशो आराम को गुलामी समझ रही थी,
एक दिन बहाना बनाकर वेटे को गांव जाने के लिए कहा की मेरा कोई जरूरी समान घर में पड़ा है
उसी बहाने वो गांव में आई थी किन्तु सभी को यही कह रही थी की कोई मेरे बेटे को मुझे यहीं छोड़ने के लिए मना ले लेकिन सभी वेवस हो गए जब बेटे ने यह कह कर मना कर दिया की अब मां जी की उम्र अकेले रहने की नहीं है,
फिर क्या था मां के लाख कहने पर भी बेटा नहीं माना,
मां फूट फूट कर रोने लगी कभी अपने आंगन को निखारती कभी घर को कभी मौहल्ले वालों की तरफ प्यार से देखती मां की आंखों में आंसूऔं की बरसात छलक ०रही थी मानों कह रही थी की कोई तो मुझे रोक लो शायद उसके दिल में गांब वालों का लगाव अपने बेटे से भी ज्यादा लग रहा था, आखिरकार मां जी फिर कार में वैठ गई वो दृश्य अभी मेरे मन को घायल कर देता है जो प्यार मैंने बुजुर्ग के दिल में अपने गांव के प्रती देखा था,
वो सिर्फ बेटे की मां नहीं थी वो पूरे गांव की मां जी थी जो कभी लौट कर गांव मे फिर से नहीं आई।