छगन साहेब पर्सनल कारपोरेशन

छगन साहेब पर्सनल कारपोरेशन

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जब CSPC ज्वाइन किया तो टाटा ट्रस्ट के साथ जुड़ने जैसा था, यहाँ पहुँचते ही यह टाटा ट्रस्ट की यात्रा कोस्टल सलिनिटी प्रिवेंशन सेल में ले आई और जल्द ही CSPC छगन साहेब पर्सनल कारपोरेशन होने का आभास हुआ.


छगन भाई कार्य के प्रति अति सक्रिय रहे, सुबह 8 बजे से भी पहले वो काम शुरू करते और देर रात तक कार्य करते रहते। फिर भी काम ज्यूँ का त्यूॅं बना रहता – अजीब कार्य योजना थी जिसमे बिना ब्रेक के अविराम कार्य सतत जारी रहा।


छगन भाई LA का तो ख्याल रखते –अति ख्याल रखते मतलब एक दो उदाहरण से समझाने की कोशिश करता हूँ – एक LA को लीव लेनी थी, छगन भाई के पास फ़ोन आया, छगन भाई ने उसके पिता जी से बात करके ही उसे लीव दी। एक LA को ब्लॉक स्तरीय विज्ञान प्रदर्शनी में ले गया तो छगन भाई को बात अखर गई की उनके बिना पूछे कैसे ले जाया गया, इस LA को आइन्दा उनसे बिना पूछे कहीं नहीं ले जा सकते, नहीं तो मेरे खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की जायगी, लिखित चेतावनी दे दी जायगी। वो LA का ध्यान रखते हुए ना जाने कब मेनेजर से पिता बन जाते थे, क्लस्टर मेनेजर तो उन्हें CSPC ने बनाया पर क्लस्टर पिता वो खुद ही बन गए।


छगन साहेब अधिकतर जिम्मेदारियां खुद के पास ही रखते थे, वो एक दबंग नेता की भांति थे जो किसी भी प्रकार से अपने अधिकार क्षेत्र को बांटना नहीं चाहते थे। सुपरवाइजर ने LA को निर्देश देना चाहा तो छगन भाई ने सख्त तौर पर स्पष्ट किया की इसके माटे वो खुद है। सुपरवाइजर को ज्यादा होशियार बनने की जरूरत नहीं है। होना क्या था सुपरवाइजर ने कोई भी इनोवेटिव फैसले लेने से किनारा कर लिया और सभी कार्य छगन साहेब के दिशा –निर्देश में निष्पादित किये जाने लगे.


कुछ LA के छगन साहेब के साथ संबंध औरो से ज्यादा ही मुखर थे, इसका उन्हें अनायास लाभ भी मिलता रहा जैसे उन्हें कलरव केंद्र से जल्दी जाना हो, अचानक अवकाश लेना हो, लेसन प्लान न बना हो इत्यादि उन्हें सुपरवाइजर भी कुछ नहीं कह सकता था क्यूंकि उन्होंने छगन भाई से पहले ही बात की हुई होती थी। यूं तो व्हाट्स एप ग्रुप बना हुआ था जिसमे सभी LA को पूर्व सूचना देनी होती थी। लीव को approve करने के सिवा छगन भाई के पास कोई और विकल्प भी नहीं होता था। हाँ वो जरूर इसको LWP में बदल देते थे।


एक LA ने पूछा भी था की LWP माटे लीव विथ पे या कुछ और छगन भाई ने लीव without पे का तुरंत स्पष्टीकरण कर दिया था। इस आयोजन में मुझे समस्या ये है की सुपरवाइजर या प्रोग्राम ऑफिसर LA के साथ कुछ अकादमिक योजना बनाई हो तो LA छगन भाई से सीधे लीव ले सकते थे। सामान्यत: छगन भाई ग्रुप में इसको जाहिर भी करते पर फिर भी ये प्रक्रिया बॉटम टू अप रहती तो ज्यादा प्रभावी होती. ऐसे ही कई कार्यों में अधिकारों का विकेन्द्रीयकरण होना शायद ज्यादा अच्छे परिणाम देता.


टीम को भी छगन भाई की आदत हो गई थी। जब छगन भाई किसी को बोलते तो टीम अधिक सक्रियता से काम करती। एक – दो उदाहरण इस बात को संबलन देंगे, सुपरवाइजर को तो छगन साहेब के कहने की ही जरूरत होती, चाहे रिसोर्स सेन्टर में tlm निर्माण कार्य या फिर एंड लाइन डाटा एंट्री। किस LA को ऑफिस बुलाना है किसे नहीं इसमें छगन भाई की अतिरिक्त सहमति की जरूरत होती – उनके अनुसार क्लस्टर मेनेजर की जवाबदेही में ये जरूरी तत्व है पर मेरे अनुसार उनकी जवाबदेही के लिए और भी बहुत से काम थे।


CSPC को जब नया ज्वाइन किया ही था तो वलसाड जाने का अवसर मिला। विज्ञान में समझ को पुख्ता करने के लिए, वहां कुछ किताबें अच्छी जान पड़ी। एरिया मेनेजर से भी बात हो गई, व्हाट्सएप भी की गई किताबों की लिस्ट, मेल भी कर दी गई थी, कुल ९०० रुपए के आस पास की किताबें थी, पर मीठापुर आने पर काफी गर्मी उन किताबों को बर्दाश्त करनी पड़ी।


Wash इन के एक प्रोग्राम के दौरान गौरांग भाई और मैं धिनकी, वारछु की तरफ गए हुए थे। एक दिन में तीन प्रोग्राम कर दिए गए, छगन साहेब के हिसाब से दस मिनट जल्दी प्रोग्राम कर दिया गया था। इसका स्पष्टीकरण देना मुश्किल हो गया की जिस काम को करने में छगन भाई को एक घंटा लगता है उसे ५० मिनिट में कैसे पूरा कर लिया गया।

छगन भाई ट्रेनिंग के दौरान तो समय के अति पाबंद हो जाते थे। 5 बजे का आयोजन हो तो 5 बजकर एक मिनिट होने पर छगन साहेब LA को ट्रेनिंग छोड़कर जाने की अनुमति दे देते थे। सेशन के प्रवाह व सुगमकर्ता की इस विषय में कोई भूमिका नहीं होती थी। एक बार पारुल बेन एक सेशन ले रही थी, 5 से थोड़ा ज्यादा समय हो गया था। tabha जो सफाई की जिम्मेदारी निभाता है, आ गया। सेशन चालू था पर छगन भाई का फरमान जारी हो चुका था 5 मिनिट में ऑफिस खाली करो।


छगन भाई को अक्सर ये भी वहम हो जाता की हमारे मुख्य व्हाट्सएप ग्रुप के अलावा और भी ग्रुप सक्रिय हैं और वहां गुटबाजी जोरों पर है। एक बार कोलकाता ट्रेनिंग के दौरान एक ग्रुप बनाया गया था विजिट के दौरान सरल संवाद के लिए। विजिट के दौरान आया-गया हो गया ये ग्रुप। न्यू इयर पर सभी ग्रुप में मेसेज भेजते हुए इस ग्रुप में भी नव – वर्ष सन्देश चला गया। फिर क्या था, उनका शक माकूल हो गया, पर ऐसा कुछ था ही नहीं तो होता क्या ?


बोध एक्सपोज़र विजिट के दौरान ऐसा कुछ हुआ की कुछ LA ने छगन भाई को अप्रिय-अशोभनीय शब्द कह दिए। इन शब्दों से छगन भाई को अत्यधिक पीड़ा पहुंची। छगन भाई उन LA के खिलाफ कार्यवाही करने वाले थे। पर कार्यवाही में समय निकल गया और हेड ऑफिस से हुई नजर अन्दाज्गी से सर्जिकल स्ट्राइक होते – होते रह गई।


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