चैट स्टोरी
चैट स्टोरी
"आप सच बोले थे "
हैलो
हाय
कैसी हो ?
बिल्कुल वैसी ?
कैसी ?
जैसा आपने सोचा था ?
कैसा सोचा था ?
आपको बेहतर पता होगा ?
नहीं मालूम मुझे, बताओ ना कैसी हो ?
ठीक हूं, मज़े में हूं आनंदित हूं।
सच ?
हां, बिल्कुल सच।
सुबह से उठकर लग जाती हूं पति की तिमारदारी और सास ससुर जी की सेवादारी में। दोपहर में बनाती हूं आम का अचार, छूंदा और पके आम का अमावट। संध्या बेला में दीपक जलाकर शुरू कर देती हूं चाय नाश्ता और फिर खाना बनाना।
और उसके बाद ?
उसके बाद, थक हार कर चूर चूर हो जाती हूं बिस्तर पर जाते ही लुढ़क जाती हूं फिर होश नहीं रहता मुझे।
कुछ पढ़ती लिखती नहीं हो ? तुम्हें तो बिना कुछ पढ़ें लिखे नींद नहीं आती थी ?
हां, पहले मैं कुछ और थी और अभी मैं एक बहू, एक पत्नी, एक भाभी, एक चाची और एक मामी हूं।
तो ? तो क्या हुआ ? इन तमाम किरदारों से पहले तुम एक इंसान थी। एक जीती-जागती इंसान जिसके भीतर तेज़ ऊर्जा का प्रवाह था। जो अदम्य साहस और प्रखर बुद्धि रखती थी। पठन पाठन और लेखन में पारंगत थी।
जी हां, सही कहा आपने "थी" अब मैं बदल गई हूं। चूल्हा चौका, घर बार, परिवार समाज, बाल बच्चे यही मेरी दुनिया है।
तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।
मतलब ?
मतलब तुम ऐसे तो नहीं बदल सकती हो ? तुम्हारे कुछ सपने थे ? कुछ इच्छाएं और आकांक्षाएं थी ?
हां थी, लेकिन अब नहीं रही। कैलेंडर नहीं देखते ? हर रोज तारीखें बदल जाती हैं।
हूं ......
चलो ठीक है फिर बातें होंगी बाय
ओके बाय।
3 साल बाद
सुप्रभात
गुड मॉर्निंग, कैसी हो ?
बिल्कुल आपकी जैसी। मस्त, बिंदास और खुशहाल।
ऐसा क्या मिल गया है तुम्हें ?
हां, सही समझा मुझे कुछ मिला है एक जैकपॉट मिला है और बदल गई है मेरी जिंदगी। खुश हूं बेहद खुश हूं।
बताओ भी आखिर क्या मिल गया तुम्हें ?
मुझे "मैं" मिल गई ?
ये क्या बकवास है ?
अगर यह बकवास है तो मैं स्टाप करती हूं। कुछ नहीं लिखूंगी अब
अरे अरे नकचढ़ी बिल्ली रूको तो, बताओ मुझे ?
हां सचमुच मुझे किसी ने मुझसे मिलाया है और फिर मैंने अपने आपको साबित करने की ठानी है और इसमें मुझे आपकी जरूरत पड़ने वाली है। हेल्प मी प्लीज़
ओके।
हैलो।
बोलो।
देखिए मुझे प्रशस्ति-पत्र मिला है। मैंने शुरू कर दिया पढ़ना लिखना और प्रकाशित भी होने लगी मेरी रचनाएं।
बहुत बहुत बधाई हो। ये हुई न बात। लिखते रहो अपनी रचनात्मकता को पोषित करो और उन्नति करो।
जानना नहीं चाहेंगे कि यह कैसे मुमकिन हुआ ? कौन है वो जिसने मुझे मुझसे मिलाया है ?
किसने ?
आप ही हैं वो।
मैं ? मैं कैसे ? समझा नहीं ?
छोड़िए जाने दीजिए। बस इस बात से खुश रहिए कि मुझे मिल गई वह "प्रेरणा " जो मेरे भीतर की प्रतिभाओं को उजागर करने के लिए प्रेरित करती है।
अच्छा तो ऐसा बोलो ना कि तुम्हें प्रेरणा मिली है। तुमने झूठ क्यों कहा कि "वो आप हैं।" मैं तो मैं हूं एक पुरुष ना की कोई महिला प्रेरणा।
हा हा हा। आप भी न हद है, समझते नहीं हैं। प्रेरणा मतलब प्रेरणा "मोटिवेशन " किसी का नाम नहीं बता रही हूं। आपकी बातों से प्रेरित होकर रोज रात को सोने से पहले पंद्रह मिनट खुद के लिए वक्त निकालने लगी हूं और खुद से पूछती हूं कि आखिर मुझे कैसा जीवन चाहिए ? और लिखती हूं ....। इस तरह मैं फिर से जीने लगी हूं और मुझे लगता है अधिक प्रसन्नचित्त रहने लगी हूं, थैंक्यू
तुम यूं ही सदा हंसते मुस्कुराते और गुनगुनाते रहो। आज मुझे बहुत राहत महसूस हो रही है। अपनी सभी जिम्मेदारियों के साथ खुद पर भी ध्यान रखो बस और कुछ नहीं चाहिए मुझे तुमसे। हमेशा अपने परिवार के साथ सुखी, सम्पन्न और समृद्ध बने रहो, मैं भी सुकून से रहूंगा। तुम्हारी फिक्र नहीं होगी अब मुझे।
अच्छा ... तो क्या आप मुझे छोड़ देंगे ?
पकड़ा ही कब था जो छोड़ दूंगा ?
मतलब अब आपको मेरी चिंता नहीं होगी ? मेरी याद नहीं आएगी ?
नहीं, बिल्कुल नहीं क्योंकि जानता हूं तुम्हारी फिक्र करने वाला एक जिम्मेदार और भरोसेमंद इंसान है और वह तुमसे बेहद प्यार भी करता है। इसलिए अब तुम्हारी चिंता नहीं होगी कभी। तुम खुश हो यह मैंने देखा और महसूस किया है। बेमतलब नाटक फैलाने की जरूरत नहीं है। मुझे अब कोई फोन या मैसेज मत करना। मेरे लिए अगर थोड़ी सी भी परवाह है तो अपने पति और परिवार के प्रति सम्पूर्ण रूप से समर्पित हो जाओ। ना मुझे कभी याद करना ना ही कभी कोई मैसेज या कॉल करना। आज तुम्हें ब्लाक कर रहा हूं।
नहीं, नहीं, नहीं प्लीज़ ऐसा मत कीजिएगा
बंद करो नाटक। और मेरी कितनी परवाह है यह साबित करो भुलाकर मुझे अपने घर के आंगन में तुलसी को सींचो।
ओके, मैं नाराज़ नहीं होऊंगी। आपने जो फैसला लिया है इसमें निश्चित रूप से मेरी ही भलाई की बात होगी लेकिन मुझे अभी दुःख हो रहा है .......
एक दिन तुम्हें जरूर एहसास होगा कि यह फैसला हम सभी के हित में सही फैसला था।
एक दिन मैं आऊंगा तुम्हारे घर जब तुम अपनी तमाम जिम्मेदारियों का निर्वाह कर चुकी होगी और अपने सफल जीवन की कहानियां सुना रही होगी अपने नाती-पोतों को। पीछे से आकर बैठ जाऊंगा और तुम अपने चश्मे को बार बार साफ करके देखने की कोशिश करोगी और फिर भी नहीं यकीन होगा तब अखरोट की छड़ी से ठक ठक करते हुए मेरे करीब आओगी और एक जोरदार ठहाका लगाकर बोलोगी "आप सच बोले थे " "आप तो सचमुच आएं हैं।"
