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Pradeep Kumar Panda

Drama Tragedy Action

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Pradeep Kumar Panda

Drama Tragedy Action

चावल दाना

चावल दाना

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एक भिखारी एक दिन सुबह अपने घर के बाहर निकला। त्यौहार का दिन है। आज गाँव में बहुत भिक्षा मिलने की संभावना है। वो अपनी झोली में थोड़े से चावल दाने डाल कर, बाहर आया। चावल के दाने उसने डाल लिये हैं अपनी झोली में, क्योंकि झोली अगर भरी दिखाई पड़े तो देने वाले को आसानी होती है, उसे लगता है कि किसी और ने भी दिया है। सूरज निकलने के क़रीब है। रास्ता सोया है। अभी लोग जाग ही रहे हैं। 


 मार्ग पर आते ही सामने से राजा का रथ आता हुआ नजर आता है। सोचता है आज राजा से अच्छी भीख मिल जायेगी, राजा का रथ उसके पास आकर रूक जाता है। उसने सोचा, “धन्य हैं मेरा भाग्य ! आज तक कभी राजा से भिक्षा नहीं माँग पाया, क्योंकि द्वारपाल बाहर से ही लौटा देते हैं। आज राजा स्वयं ही मेरे सामने आकर रूक गया है। 


   भिखारी ये सोच ही रहा होता है अचानक राजा उसके सामने एक याचक की भाँति खड़ा होकर उससे भिक्षा देने की मांग करने लगता है। राजा कहता है कि आज देश पर बहुत बड़ा संकट आया हुआ है, ज्योतिषियों ने कहा है इस संकट से उबरने के लिए यदि मैं अपना सब कुछ त्याग कर एक याचक की भाँति भिक्षा ग्रहण करके लाऊँगा तभी इसका उपाय संभव है। तुम आज मुझे पहले आदमी मिले हो इसलिए मैं तुमसे भिक्षा मांग रहा हूँ। यदि तुमने मना कर दिया तो देश का संकट टल नहीं पायेगा इसलिए तुम मुझे भिक्षा में कुछ भी दे दो।


 भिखारी तो सारा जीवन माँगता ही आया था कभी देने के लिए उसका हाथ उठा ही नहीं था। सोच में पड़ गया की ये आज कैसा समय आ गया है, एक भिखारी से भिक्षा माँगी जा रही है, और मना भी नहीं कर सकता। बड़ी मुश्किल से एक चावल का दाना निकाल कर उसने राजा को दिया। राजा वही एक चावल का दाना ले खुश होकर आगे भिक्षा लेने चला गया। सबने उस राजा को बढ़-बढ़कर भिक्षा दी। परन्तु भिखारी को चावल के दाने के जाने का भी गम सताने लगा।


 जैसे-तैसे शाम को वह घर आया। भिखारी की पत्नी ने भिखारी की झोली पलटी तो उसमें उसे भीख के अन्दर एक सोने का चावल का दाना भी नजर आया। भिखारी की पत्नी ने उसे जब उस सोने के दाने के बारे में बताया तो वो भिखारी छाती पीट के रोने लगा। जब उसकी पत्नी ने रोने का कारण पूछा तो उसने सारी बात उसे बताई। उसकी पत्नी ने कहा, “तुम्हें पता नहीं, कि जो दान हम देते हैं, वही हमारे लिए स्वर्ण है। जो हम इकट्ठा कर लेते हैं, वो सदा के लिए मिट्टी का हो जाता है।"


 उस दिन से उस भिखारी ने भिक्षा माँगनी छोड़ दी, और मेहनत करके अपना तथा परिवार का भरण-पोषण करने लगा। जिसने सदा दूसरों के आगे हाथ फैलाकर भीख माँगी थी अब खुले हाथ से दान-पुण्य करने लगा। धीरे-धीरे उसके दिन भी बदलने लगे। जो लोग सदा उससे दूरी बनाया करते थे अब उसके समीप आने लगे। वो एक भिखारी की जगह दानी के नाम से जाना जाने लगा।


जिस इंसान की प्रवृति देने की होती है, उसे कभी किसी चीज की कमी नहीं होती और जो हमेशा लेने की नियत रखता है उसका कभी पूरा नहीं पड़ता..!!



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