चारों धाम
चारों धाम
सब बैठे थे घर पे मैं भी सोफे पर अपनी शाल ओढ़े बैठा था। घर में बात हो रही थी कि बगल वाले मिश्रा जी चारों धाम कर आये। पापा मम्मी सब सर्दी से परेशान थे। मैं भी घर से निकला थोड़ा बाहर जाके घूम कर आता हूँ। बाहर आया तो देखा सड़क के किनारे कुछ ग़रीब बच्चे बुझी हुई आग से अपनी सर्दी दूर कर रहे थे।
तभी मिश्रा जी आये और बच्चों को डांट कर भगा दिया। मुझे बहुत बुरा लगा मैं उनके पास गया और कहा," मिश्रा जी जब आप उन बेचारे बच्चों को कुछ दे नहीं सकते तब कम से कम उन्हें उसी बुझी आग से ठंड मिटा लेने दीजिए।"
मिश्रा जी मुझ पर भड़क गए और बोलने लगे इतनी चिंता है तो तुम अपने घर से लाके रजाई दे दो।
मैंने अपना शाल उतार कर उस 7 साल की ठिठुरती बच्ची को दे दिया। वो खुशी से नाचने लगी।
ये सब देख कर मिश्रा जी बोले बाप की कमाई है इसलिए इतना रौब है जिस दिन खुद कमाओगे पता चलेगा।
मैंने उनकी बात पे ध्यान नहीं दिया और घर पे मुस्कुराते हुए चला आया। मैंने माँ को सारी बात बताई तब माँ ने कहा "अब मुझे चारों धाम नहीं जाना तुमने सारा पुण्य मुझे यहाँ दिला दिया। यही मेरा असली धाम हैं।"