हरि शंकर गोयल

Comedy

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हरि शंकर गोयल

Comedy

चार मूर्ख

चार मूर्ख

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आज सुबह सुबह श्रीमती जी बहुत खिली खिली सी लग रही थीं । बिल्कुल मौसम की तरह । जब मूसलाधार बरसात के बाद मौसम खिलता है तो बड़ा सुहावना लगता है । इसी तरह जब श्रीमती जी सुबह सुबह खिली खिली दिखती हैं तो मेनका, रंभा सी लगती हैं । हमने उनसे इस तरह खिलने का कारण पूछा तो कहने लगीं "अरे, आज किसी ने चार मूर्खों की एक कहानी भेजी थी । वही पढी थी और आनंद आ गया" । 


वैसे हमें मूर्खों में कोई दिलचस्पी नहीं है । मगर मूर्ख लोगों से आनंद भी आ सकता है , यह जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ । हम अपने कौतुहल को रोक नहीं सके और बरबस पूछ बैठे 

"प्रिये, एक बात तो बताओ । आपने हमसे विवाह किया था तब सात फेरों के समय आपने भी वचन लिया था कि अब सारे दुख और सुख दोनों के हैं । अकेले का कुछ नहीं है । फिर ये आनंद अकेले अकेले क्यों उठा रही हो ? आओ, हम दोनों मिलकर साथ उठायें" । 


मुस्कुराते हुए वे बोलीं "आप न बड़ी जल्दी पटा लेते हो । शादी से पहले न जाने कितनी लड़कियों को पटाया होगा आपने" ? 

"राम राम राम । प्रिये , ये पटाना बड़ा तुच्छ, असंस्कारी और अमर्यादित शब्द है जो आप जैसी सुशिक्षित, विदुषी और सभ्य महिला की जिव्ह्या पर शोभा नहीं देता है । आप कह सकती हैं कि हम "सम्मोहिनी विद्या" के प्रकांड पंडित हैं । वैसे एक बात बता देते हैं कि हमने इस विद्या का उपयोग केवल आप पर ही किया है अन्य किसी "सुंदरी" पर नहीं । पर यह विषय छेड़कर आप मूल बात से मेरा ध्यान क्यों भटका रही हो ? मूल विषय पर आ जाओ । आनंद के सागर में क्यों ना हम दोनों साथ गोते लगायें" ? 

"अरे हां , मैं तो भूल ही गई थी । चलो वो कहानी मैं आपको सुना देती हूं" । 


और वे कहानी सुनाने लगीं "एक बार बादशाह अकबर का दरबार लगा था । सभी दरबारी खुसुर-पुसुर कर रहे थे । बादशाह ने दरबारियों से कारण पूछा तो एक दरबारी जो बीरबल से जलता था , बीरबल की ओर देखकर बोला 'महाराज, आजकल दरबार में मूर्ख बहुत हो गये हैं । बस इसी बात पर हम लोग बात कर रहे थे' । अकबर सोच में पड़ गया कि वास्तव में मूर्ख लोग होते भी हैं या नहीं ? कुछ देर सोचकर अकबर ने बीरबल से कहा "बीरबल, जाओ, राज्य का दौरा करो और चार सबसे बड़े मूर्खों को लेकर आओ" । जो आज्ञा कह कर बीरबल चला गया " । 


"एक महीने तक बीरबल मौज उड़ाता रहा और एक महीने के बाद वह दो लोगों को लेकर अकबर के दरबार में आया तो अकबर आग बबूल हो गया । अकबर ने बीरबल से कड़क कर पूछा 

"तुम्हें चार मूर्खों को लाने का आदेश दिया था मगर तुम केवल दो ही लाये हो । क्या राज्याज्ञा भी भूल गये थे" ? 

"नहीं जहांपनाह ! राज्याज्ञा कैसे भूल सकता हूं मैं ? आपके आदेश का पालन किया है मैंने" 

"पर आदमी तो दो ही हैं" ? 

"हुजूर, दो नहीं चार हैं" 


दरबारी बड़े खुश हो रहे थे कि आज तो बीरबल की ऐसी तैसी होने वाली है । अकबर ने गुस्से से कहा 

"बीरबल, तुम भरे दरबार में झूठ बोल रहे हो । इसकी सजा जानते हो" ? 

"जानता हूं हुजूर, अवश्य जानता हूं । मूर्ख आदमी चार ही हैं और वे चारों इसी दरबार में उपस्थित हैं । मैं अभी दिखला देता हूं" । और इतना कहकर बीरबल ने एक आदमी की ओर इशारा करके कहा 

"जहांपनाह , यह पहला मूर्ख है । यह घोड़े पर बैठकर जा रहा था और इसने अपने सिर पर एक गठ्ठर भी लाद रखा था । जब इससे पूछा कि सिर पर गठ्ठर क्यों लाद रखा है तो इसने कहा कि घोड़े पर गठ्ठर रखने से घोड़ा बोझ से दब जायेगा । तो यह पहला मूर्ख हुआ" 


अकबर बड़ा खुश हुआ और पूछा "दूसरे मूर्ख के गुणों का बखान करो" 

बीरबल कहने लगा "महाराज, यह है दूसरा मूर्ख। यह पूरे मौहल्ले में मिठाई बांट रहा था । पूछने पर इसने बताया कि इसकी बीवी ने दूसरा पति चुन लिया है और वह उसके साथ विवाह करने जा रही है और उसे भी विवाह में आमंत्रित किया है । इसी खुशी में यह मिठाई बांट रहा था । इससे बड़ा मूर्ख और कौन होगा जहांपनाह" ? 


बीरबल की बात सुनकर अकबर बहुत जोर से हंसा । फिर कहने लगा "बाकी दो कहां हैं" ? 

"गुस्ताखी माफ करें हुजूर । तीसरा मूर्ख मैं हूं जो राज्य के इतने महत्वपूर्ण कामों को छोड़कर मूर्खों की तलाश में एक महीने भटका । मुझसे बड़ा मूर्ख और कौन होगा" ? 


अकबर सोच में पड़ गया और बोला "और चौथा" ? 

"हुजूर, जान की सलामती का वचन दो तो बताऊं" ? 

"ठीक है , वचन दिया । अब बताओ" । 

"हुजूर, राज्य में मूर्खों की तलाश कौन करवाता है ? एक मूर्ख ही ऐसा काम करेगा ? इस तरह चौथे मूर्ख आप हैं जहांपनाह" । 


अकबर बहुत देर तक हंसा और बीरबल की बुद्धिमानी पर खुश हो गया "। इस तरह श्रीमती जी ने कहानी समाप्त की और कहा "आज के जमाने में ऐसे मूर्ख कहां मिलते हैं" ? 


अब हंसने की बारी मेरी थी । मैंने कहा "आज के जमाने में तो मूर्खों का मेला लग रहा है । एक ढूढो हजार मिलेंगे" । 

"नहीं, मुझे नहीं ढ़ूढने हजार मूर्ख । आप तो चार ही बतला दो" । 


मैंने कहा "देवी जी, पहले मूर्ख तो वे लोग हैं जो अपने ही धर्म, अपने ही देवी देवताओं , अपनी ही संस्कृति का मजाक उड़वाने के लिए तथाकथित कॉमेडी शो में जाते हैं या पी के जैसी मूवी को अपने ही पैसे खर्च कर देखने जाते हैं और अपना मजाक उड़वाते हैं । दूसरे तरह के मूर्ख वे हैं जो "कट्टर ईमानदारी" के झांसों में आकर झूठे , बेईमान, धूर्त, मक्कार, महाभ्रष्ट नेताओं को अपना कीमती वोट दे आते हैं और पूरे पांच साल ठगाते रहते हैं" । 


श्रीमती जी हमारी बातों से बड़ी खुश हुईं और कहने लगीं "तीसरा कौन" ? 

जवाब देना खतरनाक था पर देना तो था ही "तीसरी मूर्ख आप हैं देवी जी । आज के जमाने में भी आप मूर्खों को खोज रही हैं और चौथा मूर्ख मैं जो एक मूर्ख के कहने पर मैं मूर्खता की कहानी कह रहा हूं । वैसे देखा जाये तो पांचवा मूर्ख भी है इस कहानी में" 

"पांचवां ? वो कौन है" ? 

"वो, जो इस कहानी को पढ़कर मुस्कुरा रहा है" । और हम दोनों ठहाके लगाकर हंस पड़े । 



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