बुरा मत मानना
बुरा मत मानना
एक बार की बात है। घटना सच्ची है। एक प्रसिद्ध दार्शनिक थे। वे विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र के प्रोफ़ेसर थे। उन्होंने काफी पुस्तकें भी लिखी थीं हर समय पढ़ने लिखने में लगे रहते थे। घर गृहस्थी की देखभाल पत्नी करती थीं।
उनकी पुत्री की शादी हो चुकी थी। एक बार नये नये दामाद मिलने आए, पत्नी ने आवभगत की,फिर वे प्रोफ़ेसर साहब अर्थात् अपने ससुर जी से मिलने गए । प्रोफ़ेसर साहब अपने अध्ययन कक्ष में अध्ययन में लीन थे,दामाद जी ने जाकर उन्हें नमस्ते की और कुर्सी पर बैठ गये। पर प्रोफ़ेसर साहब ने उन्हें पहचाना नहीं और पूछने लगे- "आप कौन हैं , कैसे आना हुआ?"
दामाद जी सकपकाये, अपना परिचय दिया, थोड़ी बात कर उठ गये और अन्दर जाकर सासु जी से शिकायत की- ससुर जी ने मुझे पहचाना ही नहीं !
पत्नी क्या बोलतीं ! जाकर अपने पति से कहा-"आपने अपने दामाद जी को पहिचाना कैसे नहीं, वे बुरा मान गये, जाकर उनसे अच्छे से बात कीजिये। "
प्रोफ़ेसर साहब उठे , दामाद जी से जाकर क्षमा प्रार्थना की. बोले- "क्षमा कीजिये, पहचानने में भूल हो गई थी। "
फिर आगे बोले- "अब अगली बार जब आप मिलने आएँ और मैं नहीं पहिचानूं तो बुरा मत मानियेगा। हो सकता है कि मैं फिर भूल जाऊँ और आपको नहीं पहिचान पाऊँ।" दामाद जी क्या बोलते उनसे कुछ कहते नहीं बना । उनका शिकायत करना बेकार गया। उनका दर्शन शास्त्र के प्रोफ़ेसर से पाला पड़ा था।