Anuradha Negi

Drama Horror

4.5  

Anuradha Negi

Drama Horror

बस यादें और बातें

बस यादें और बातें

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हमारे जीवन में कई तरह के इंसान मिलते हैं जिन्हें हम भलीभांति जानते हैं और उनके साथ बिताए हर क्षण को हमेशा साथ महसूस करते हैं। पता नहीं क्यों मन विचलित हो जाता है जब कोई इंसान दुनिया छोड़ कर चला जाता है क्यों मन में एक अजीब सी उदासी है या खामोशी। जो कहना तो बहुत कुछ चाहती है किंतु कहने में असहज सा महसूस करते हैं और चाहकर भी मन के अंदर हो रहे हलचल को बाहर नहीं निकल सकते हैं। जहां तक मैं जानती हूं कई बार मेरे साथ ऐसा हुआ है की दुनिया छोड़कर जाते हुए इंसान को सोचने लग जाती हूं और ना जाने क्या क्या सोच कर इतनी गहराई में चली जाती हूं कि मुझे दुनिया शून्य सी नजर आने लगती है। और ऐसा लगता है कि हम वर्तमान में जो कर रहे हैं क्या कर रहे हैं किसके लिए कर रहे हैं कब तक करेंगे और क्या हल होगा इसका?? पता नहीं ज्यादा लिख भी पाऊंगी या नहीं , पर मैं एक इंसान के बारे में आपको बताने जा रहा हूं जो आज १० मार्च २०२२ को इस दुनिया को अलविदा कह कर चला गया है।

 मैं कल यानी ९ मार्च को स्कूल से घर लौटी थी कि घर जा कर सुनने में आया घर के नीचे वाला मकान जहां एक दादा-दादी रहते थे। और हमसे काफी घुले मिले थे उन दादी को आज कुछ ज्यादा तकलीफ होने लगी है लगी है जो लगभग 35 से 40 वर्ष पहले से बीमार थी कुछ साल पहले तक वह हल्के काम कर लिया करती थी जैसे कि खुद 2 लोगों के लिए खाना बनाना घर का काम या कभी घास काटने जैसे काम को लेकर बाहर घूम आना। किंतु वह आखिरी 5 साल से बिल्कुल ही असमर्थ हो गई थी शारीरिक और मानसिक रूप से कि वह कुछ कर सके, बड़े बेटे और उनका परिवार ही उनकी देखरेख करता था। उनके कपड़े धोने उनके लिए खाना बनाना उनकी जरूरत की चीजों को पूरा करना । सब कुछ अच्छा था किंतु दादी की आदत हो गई गई थी कि वह अपने दुख के कारण दूसरों को कामयाब होते देख थोड़ा विचलित हो जाती थीं, इसी वजह से उनके पास जो भी बात करने , उनकी खबर पूछने या बैठने जाता तो वह ऐसा कुछ बोल देती थी जिससे सामने वाले इंसान के दिल को ठेस पहुंच जाती थी। इसलिए उनके पास बहुत कम लोग जाते थे और जाते भी थे तो कुछ पल बातें करते और बिना बैठे वहां से निकल जाते।

 मेरा भी वही कारण था कि मैं अंत समय में दादी से मिल नहीं पाई थी लेकिन उससे पहले जब भी दादी जी मेरा मिलना जुलना था तो वह मुझ पर बड़ा प्यार जताती और मुझसे नहलवा मांगती कभी अपना अपना सर धुलवा मांगती। उनके घर के पास ही पानी का नल था जो सार्वजनिक था और वहां मैं अक्सर हाथ मुंह धुलने और बाल धुलने जाया करती थी। दादी मुझसे कहती कि मैं उनके लिए भी शैंपू लेकर जाऊंं कभी दवा मंगाती अपने अंदर मेहमानों द्वारा या कोई अन्य आने-जाने व्यक्ति के द्वारा जो भी खाने की चीजें होती थी वह मेरे लिए संभाल कर रखती थी, और कभी-कभी मन होने पर मुझसे मम्मी को कहने के लिए कहती कि मेरा कुछ खाने का मन है बना देगी क्या?? और कहती थी कि कोई भी उन्हें पूछता नहीं एक मैं ही हूँ जो उनसे मिलती हूं उनसे बातें करती हूं।

 लेकिन धीरे-धीरे दादी हमारे साथ भी वही बातें और विचार दोहराने लगती जो वह अन्य के साथ करती थी धीरे-धीरे हमारा बोल बाला कम हो गया था और मेरा उन्हें मिलना भी। इसीलिए आज मुझे ऐसा लगा कि दादी तो चली गई सबके मुंह उनकी वह नकारात्मक बातें थी जो उन्होंने हर किसी इंसान के साथ की थी। किंतु मुझे फिर भी ऐसा लगा कि मुझे दादी से बात कर लेनी चाहिए थी रूठना नहीं चाहिए था और कम से कम में उनके अंत समय में उनके साथ होती या मैं जान पाती कि वह क्या महसूस कर रही हैं।

इंसान तो चला गया लेकिन रह गई तो बस बातें और यादें जो हमेशा जिंदा रहेंगे। इसलिए हमेशा इंसान को अपनी भाषा और बोल मीठे रखने चाहिए और एक अच्छा सामंजस्य बनाना चाहिए। ताकि इंसान अच्छा वक्त जब बिताए तो उन्हें याद करे न कि जाने केे बाद भी बुराई उनकी करे।

     


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