Laxmi Yadav

Tragedy

2  

Laxmi Yadav

Tragedy

बोझ

बोझ

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पूरा गाँव आज बहुत खुश है और प्रतिक्षा कर रहा है डॉक्टर की टीम का। गाँव मे नया अस्पताल बना है ' संजीवनी '। उसी अस्पताल के लिए शहर से डा आ रहे है। डॉक्टर किरण तो विदेश से आ रहे है। सभी लोगों को डॉक्टर किरण के बारे में बहुत उत्सुकता थी। स्वागत करने सबसे आगे थे हार लिए गाँव के नवयुवक डा नकुल। लेकिन गाँव वाले तब आश्चर्य चकित हो गए जब उन्होंने पच्चीस साल की तरुनी डॉक्टर किरण को देखा। खैर, औरतें बहुत खुश थी। वे डॉक्टर किरण का बहुत सम्मान करती थी। डॉक्टर नकुल ने गौर किया फुर्सत के क्षणों मे किरण पुराने बरगद के पेड़ के चबूतरे पर अकेले घंटों बैठी रहती। एक दिन असाध्य रोग से पीड़ित राम प्रसाद को उनके बेटे अस्पताल में छोड़कर चले गए। ठीक होने पर भी बोझ कहकर ले जाने को तैयार ही नहीं हुए। किरण ने उनकी रहने की व्यवस्था सरकारी आवास में ही करवा दी। खुद ही देखभाल करती थी। एक दिन नकुल ने दराज में एक तस्वीर देखी। जिसमे राम प्रसाद जी अपने दोनों बेटों के साथ थे पर उसमे एक लड़की भी थी। उस लड़की के बारे मे पूछने पर डॉक्टर किरण निस्तेज भाव से बोली वो लड़की मैं हूँ। उस वक़्त मैं पिता के लिए बोझ थी इसलिए चंद पैसों के लालच में मुझे बेच दिया था। बचपन की धुँधली यादों मे सिर्फ बरगद का पेड़ ही नज़र आता था...। पर तक़दीर देखो जिन बेटों को बुढ़ापे का सहारा समझ रहे थे उन्हीं बेटों ने उन्हे आज बोझ समझकर घर से निकाल दिया। 



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