बक्शी का स्वांग ( ढोंग )
बक्शी का स्वांग ( ढोंग )
गांजा भांग धतूरा पीके, टल्ली हो गये बक्शी।
स्वांग रचाये पंडा बनके, बाँधे जन को रस्सी।।
एक नैनपुर गाँव में बक्शी नामक पंडा रहता था। गाँव के लोग अनपढ़ भोले - भाले थे सो बक्शी अपने स्वांग ( ढोंग ) के दम से गाँव के सीधे - साधे लोगों को गुमराह करके अपना उल्लू सीधा किया करता था दिन - रात गॉजे - भॉग व धतूरे के नशे में बक्शी टल्ली रहता था गाँव के नानादाऊ नामक व्यक्ति को मिरगी का रोग था बक्शी ने कहा इसे माई की फटकार है इसके नाम से बकरा की बलि चढ़ाओ तो यह कुछ समय बाद ठीक हो जायेगा ऐसे ही अन्य लोगों को बाधा भूत बता बताकर उनसे पशु बली व अपने नशे की सामग्री का इन्तजाम करवा लेता था।
खूब मॉस की पार्टियों उड़ाता खूब नशा करता ऐसे उसका धन्धा खूब चल रहा था। एक दिन गाँव का पढ़ा - लिखा व्यक्ति जो शहर से गाँव आया था उसका नाम जिगनेश था उसने बक्शी की मानीटरिंग देखरेख शुरू की तो उसने बक्शी का भांडा - फोड करने की सोची। जिगनेश गाँव के लोगों को बक्शी के ढोंग से अवगत कराने लगा लोग जिगनेश की बातों में आकर पशुबलि देना बन्द करने लगे जब बक्शी को जिगनेश की बातों का चला तो उसने जिगनेश को श्राप देकर धमकाया और कहा यदि तू हमारे बीच में आया तो में तुझे अपनी श्राप से बर्बाद तबाह कर दूँगा।
गाँव के लोगों से भी कहा जो जिगनेश की बातों में लगेगा उनके घर भूतों का ताण्डव शुरू हो जायेगा। सभी ग्रामवासी व जिगनेश बक्शी की गीदड़ भपकी से नहीं डरे व उल्टा उसका हुक्का पानी ( दाना - पानी ) बंद कर दिया कुछ ही दिनों में बक्शी अपना डेरा समेट कर नौ दो ग्यारह हो गया।