Kunda Shamkuwar

Abstract

4.5  

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बिटवीन द लाइन्स

बिटवीन द लाइन्स

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आज मेरे इंजीनियरिंग कॉलेज की पुरानी दोस्त मिली। हम करीब करीब तीन दशकों के बाद मिल रहे थे। उसको लेकर मेरे मन मे एक अलग तरह की उत्सुकता थी। कॉलेज और हॉस्टल के दिनों वाली हमारी दुनिया आज की दुनिया से मुख़्तलिफ़ जो थी।

बेहद मुख़्तलिफ़ दुनिया....

यूँ कह दे कि आज की हमारी व्यस्त दुनिया मे उन गोल्डन दिनों की यादें ताज़ा होने वाली थी....

हाँ, गोल्डन डेज!!!

कॉलेज के दिनों वाली हमारी दुनिया बेहद बेफ़िक्री वाली और बेपरवाह थी.....उसके साथ साथ कॉलेज और हॉस्टल की दुनिया की वे सारी निराली बातें... घर की यादों के अलावा रूम पार्टनर के साथ ढेर सारी एडजस्टमेंट्स वाले किस्से ....

वह उन बाकी सारी लड़कियों से अलग हुआ करती थी। जिस वक़्त लड़कियाँ फैशन, रोमांस और टीवी की बातों से इतर कोई बात नही करती थी उस वक़्त वह ग़रीबी और समाज में व्याप्त विषमता के बारें में बोलती थी। मुझे उस समय उसकी वह सारी बातें अमेजिंग लगती थी। 

काफी दूर से उसका आना हुआ। उसकी बातों से और उसके मैसेज से मुझे महसूस हो रहा था कि वह भी मुझसे मिलने के लिए उत्सुक थी। इससे मुझे अच्छा ही लगा। 

मैं आज यह सब देखकर दंग रह गयी कि वह अपनी मर्जी के मुताबिक कभी ट्रेकिंग के लिए जाया करती है तो कभी किसी अच्छी किताब का ट्रांसलेशन भी कर लेती है!!!

उस वक़्त कॉलेज की वह डायनॅमिक लगने वाली लड़की आज मुझे उतनी ही डायनॅमिक है और कन्विनसिंगली अपनी बातें रखनेवाली लड़की लगती है।

और मैं? 

मैं अपनी नौकरी मे ही मशगूल थी।

हम मिले और न जाने हमने कितनी बातें की थी जो शायद हम कॉलेज के दिनों में  कह नही पाते या यूँ कहे कि उस वक़्त उन बातों की हमे समझ नही थी...

लेकिन आज?  

आज उम्र के पाँचवे दशक में लाइफ में मैच्युरिटी आने के बाद काफ़ी उन चीजों की समझ आ गयी है। बातों बातों में बातों के अलावा बीच का साइलेंस भी अब समझ आने लगा है। बहुत बार हम अब बिटवीन द लाइन्स भी पढ़ने लगते है.... 

वह आयी और न जाने उन सारी भूली बिसरी कॉलेज लाइफ और हॉस्टल की यादों का जैसे पिटारा ही खोल गयी...


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