हरि शंकर गोयल

Romance

4  

हरि शंकर गोयल

Romance

बिन फेरे हम तेरे

बिन फेरे हम तेरे

10 mins
392



शादी की चहल पहल में सब लोग व्यस्त थे । प्रिया भी शादी में और मेहमानों की तरह ही आई थी । इस साल उसका एम ए का अंतिम वर्ष था । जिस तरह सभी लड़के लड़कियां शादी समारोह में आपस में चुहलबाज़ी करते हैं , इस शादी में भी कर रहे थे । शिवा सभी लड़कियों के बीच "कन्हैया" बना हुआ था । सभी लड़कियां उसे घेरे बैठी हुई थीं । शिवा था भी तेज तर्रार । जैसा देखने में स्मार्ट वैसा ही दिमाग से भी स्मार्ट । खूब हंसी-मजाक चल रहा था उन सबमें । 

शिवा की निगाहें बार बार प्रिया की ओर उठती लेकिन सागर की लहरों की तरह किनारे से लौट आती थीं । प्रिया की सहेली और शिवा की बहन रमा ने इस नजारे को ताड़ लिया और शिवा के कान में कहा "क्यों बालू में से तेल निकालने का प्रयास कर रहे हो भैया ? वह पूरी 'नकचढी' है । किसी को घास ही नहीं डालती है । आप नाहक ही मेहनत कर रहे हो " 

शिवा चौंकते हुए बोला "क्या तू इसे जानती है" ? 

"अच्छी तरह । मेरी सहेली को मैं नहीं जानूंगी तो और कौन जानेगा ? अगर साफ शब्दों में कहूं तो एकदम 'खड़ूस' है यह" । प्रिया ने और स्पष्ट करते हुए कहा । 

"वो कैसे" ? 

 

"वो ऐसे मेरे भाई जान , कि हमारी कॉलेज में एक बहुत स्मार्ट से लड़के ने इसे एक बार लाइन मारी थी। उस लड़के पर कॉलेज की बहुत सारी लड़कियां फिदा थीं मगर उसने इसे लाइन मारी । और ये मेमसाब ऐसी निकलीं कि उस लड़के को एक दिन बीच सड़क पर खरी खोटी सुना कर आ गईं । वो बेचारा उस दिन के बाद से कॉलेज में ही दिखाई नहीं दिया" । 

"अच्छा तो ये बात है ? पर तू भी देख ले रमा कि अगर मैंने इस 'खड़ूस' को नहीं पटाया तो मेरा नाम भी शिवा नहीं" । 

"इस जनम में तो नहीं पटेगी ये । अगला जन्म लेना पड़ेगा, भैया" । 

"अच्छा ! तो लगी शर्त" ? 

"ठीक है , जैसी आपकी मर्जी । अगर लुटने का ही शौक है तो मैं क्या कर सकती हूं" ? 

इस सबसे बेखबर प्रिया शादी में शिरकत कर रही थी । शादी के बाद सब लोग अपने अपने घर चले गए । 

कुछ दिनों बाद प्रिया ने नोट किया कि एक लड़का उसके घर के चक्कर काट रहा है । कॉलेज जाते आते वक्त भी वह उसके सामने आता है । प्रिया को यह सब अजीब सा लग रहा था । लेकिन वह करे तो क्या करे ? बस, एक निगाह देखकर वह चला जाता था । ना कुछ कहता ना कुछ इशारा करता । बस, एक निगाह देखकर चुपचाप चला जाता था । इससे वह थोड़ी सी असहज हो गई थी । 

एक दिन वह कॉलेज से साइकिल से आ रही थी कि वह लड़का फिर से उसके सामने आ गया । वह बिफर पड़ी । "ऐ मिस्टर, तुम मेरा पीछा क्यों कर रहे हो" ? 

उस लड़के ने आगे पीछे देखकर चौंकते हुये कहा " क्या मैं " ?

"हां , तुम"

"मैडम मैं तो सामने से आ रहा हूं , आपके पीछे से नहीं । मैंने कभी आपका पीछा नहीं किया " । कुटिल मुस्कान के साथ उसने कहा । 

इतने में कुछ लोग इकट्ठा हो गए । जैसा कि लोगों की आदत होती है , ऐसा माहौल देखा नहीं और शुरू हो जाते हैं हाथ पांव चलाने के लिए । लोग उस लड़के पर अपने "हाथ साफ करने" लग गए । अच्छी खासी पिटाई और गालियां खाने के बाद भी वह लड़का बिल्कुल नहीं घबराया । बल्कि भीड़ से कहने लगा "भाइयों, आपने अपने हाथ भी झाड़ लिये और गला भी साफ कर लिया । पर कम से कम एक बार मेरी बात तो सुन लेते ? हत्या के आरोपी को भी अपनी बात कहने का हक दिया जाता है । फिर मैने तो कुछ किया भी नहीं । कम से कम एक अवसर तो मुझे मिलना ही चाहिए था ना" 

भीड़ ने कहा "चलो , अब कह दो । अब भी क्या हो गया है " ? 

वह लड़का शिवा ही था । कहने लगा "क्या आपमें से किसी ने मुझे इन मैडम को छेड़ते हुए देखा" ? 

सन्नाटा छा गया । कोई कुछ नहीं बोला । तब प्रिया ने कहा "तुम रोज मेरा पीछा करते हो" 

शिवा ने पूछा 

" मैं आपका पीछा नहीं करता । हां, यहाँ से गुजरता अवश्य हूँ । अच्छा , एक बात बताइये कि क्या मैंने तुम्हें कभी छेड़ा " ? 

"नहीं" 

"क्या कोई इशारा किया कभी" ? 

"नहीं" 

"क्या कभी सीटी बजाई" ? 

"नहीं" 

"क्या कभी कोई बद्तमीजी की" ? 

"नहीं" 

"भाइयों, अब आप ही बताइए कि मैंने इन्हें कब छेड़ा? और आप लोग बिना कुछ जाने ही मुझ पर पिल पड़े" । 

भीड़ धीरे धीरे छंटने लगी थी । प्रिया को भी लगा कि उससे गलती हो गई है ।

दिन बीतते रहे । शिवा प्रिया के घर के सामने से दिन में एक बार जरूर निकलता था । यह समय होता था सुबह लगभग नौ साढ़े नौ के बीच । 

एक दिन रमा आई हुई थी प्रिया के घर पर । नौ साढ़े नौ बजे का वक्त होगा । प्रिया बार बार खिड़की से बाहर देख रही थी । रमा ने पूछा "क्या किसी का इंतजार कर रही हो , प्रिया" ? 

जैसे चोरी करते पकड़े जाने पर चोर की हालत होती है वैसी ही हालत प्रिया की हो गई थी । कुछ कहते नहीं बना तो रमा पर ही चढ़ बैठी "तू मुझे जानती है कि मैं कितनी बड़ी 'खड़ूस' हूं , फिर भी ऐसा कह रही है" ? 

"हां, मैं देख रही हूं कि मेमसाब का सारा ध्यान खिड़की पर ही है । पर जिसका आप इंतजार कर रहीं हैं , वो आज नहीं आएंगे" । दबी मुस्कान के साथ रमा ने कहा 

"तुझे कैसे पता कि मैं किसका इंतज़ार कर रही हूं" ? 

"मुझे सब पता है मेमसाब । वो लड़का और कोई नहीं, मेरा बड़ा भाई शिवा ही है । आज वे बाहर गए हुए हैं "। 

प्रिया थोड़ी झेंपी । फिर कहने लगी "तेरे भैया रोज मेरे घर के सामने से क्यों निकलते हैं" ? 

"अरे , आजकल वे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और पढने के लिए एक कोचिंग सेंटर जाते हैं । तेरा घर रास्ते में पड़ता है । अब आंखें बंद कर तो नहीं चलना चाहिए न" ? आंखों में शैतानी भरते हुए रमा ने कहा । 

प्रिया ने कुछ नहीं कहा । रमा को अंदाज हो गया कि "इश्क की आग" जल चुकी है । धुंआ उठने लगा है । दर असल उसे शिवा ने जानबूझ कर ही भेजा था । वह कहीं गया नहीं था लेकिन उसने जान बूझकर ऐसा कहलाया जिससे प्रिया के दिल की हालत का पता चल सके । रमा सब जान गई । 

उसने घर आकर शिवा को बता दिया कि आग लग चुकी है और धीरे धीरे धुंआ उठ रहा है । शिवा जल्दबाजी में कोई काम नहीं करना चाहता था इसलिए वह प्रिया को "तपा" रहा था । 

एक दिन रमा प्रिया को अपने घर ले गई । वहां शिवा भी था मगर उसने ऐसा प्रदर्शित किया कि उसे प्रिया में कोई रुचि नहीं है । इससे प्रिया भड़क गई । उसने शिवा से साफ साफ पूछा "आप मुझे प्यार करते हैं या नहीं" ? 

"नहीं" 

प्रिया गुस्से से उबल पड़ी । "फिर यह सब नाटक करने की क्या आवश्यकता थी । रोज मेरे घर के सामने से जाना । मुझे एकटक देखना। कॉलेज जाते समय भी एक बार जरूर टकराना । बताइए , ऐसा मेरे साथ क्यों किया , आपने" ? 

अब शिवा ने सारा भेद खोल दिया और कहा "हम तो आपको उस दिन से चाहने लग गये प्रिया जी जिस दिन उस शादी में आपको पहली बार देखा था । रमा ने हमें बताया था कि तुम बहुत "खड़ूस" लड़की हो । बस उसी दिन हमने रमा से शर्त लगा ली कि हम भी तुम्हें पटा कर दिखाएंगे । क्यों रमा ? यही बात थी ना" ? 

"हां प्रिया , यही बात थी । और अब वाकई में भैया जीत गए हैं । अब बताइये मुझे क्या करना होगा भैया" ? । रमा ने मुस्कुराते हुए कहा । तीनों खूब जोर से हंसे । 

बस, उस दिन से इश्क मोहब्बत परवान चढ़ने लगी । अब तो "खतो किताबत" भी हो जाया करती थी दोनों में। बीच बीच में कहीं मिल भी लेते थे दोनों लेकिन दोनों ने ही भारतीय संस्कृति का पूरा ध्यान रखा और कभी भी अपनी सीमाएं नहीं लांघी । 

धीरे धीरे यह बात दोनों के घरवालों को पता चल गई । दोनों के घरवाले बहुत समझदार थे इसलिए दोनों की सगाई कर दी गई । चूंकि प्रिया की एक बड़ी बहन और थी इसलिए यह शर्त रखी गई कि पहले बड़ी बहन की शादी होगी उसके बाद प्रिया और शिवा की शादी होगी । 

दिन बड़ी तेजी से गुजर रहे थे । शिवा की मेहनत रंग लाई और उसका चयन तहसीलदार के पद पर हो गया था । प्रशिक्षण के उपरांत उसकी पहली पोस्टिंग हो चुकी थी । शिवा प्रिया को बहुत लकी मानता था । वह समझता था कि प्रिया के भाग्य से ही उसका चयन तहसीलदार के पद पर हुआ है । दोनों का इश्क पूजा में तब्दील हो चुका था । 

शिवा अपनी ड्यूटी का बहुत पाबंद था । नया जोश नया जुनून था उसके अंदर । देश के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना थी उसमें । उस इलाके में "बजरी माफिया" का बड़ा प्रभाव था । नेता , बड़े अधिकारी और पुलिस के गठजोड़ से वे फल फूल रहे थे । मगर शिवा ने "बजरी माफिया" की बैंड बजाकर रख दी थी । एक दिन प्रिया ने उसे कहा भी था कि बड़े गुंडे होते हैं ये बजरी माफिया वाले । कहीं कुछ ग़लत ना हो जाए, इसका ध्यान रखना । शिवा इस बात को हंसकर टाल गया । 

एक दिन प्रिया ने कहा " वो पहाड़ी पर शिव मंदिर है ना , उसके दर्शन करने चलते हैं " । 

शिवा ने कहा "ठीक है। तुम घर से चली जाना मैं ऑफिस से सीधा ही वहां पहुंच जाऊंगा" । 

प्रिया गुलाबी साड़ी पहनकर मंदिर पहुंची । गुलाबी रंग शिवा को बहुत पसंद था । प्रिया शिवा की पसंद नापसंद का पूरा खयाल रखती थी । यद्यपि उनका विवाह नहीं हुआ था लेकिन वे पति-पत्नी की तरह ही पेश आते थे मगर उन्होंने पवित्रता बरकरार रखी थी । 

प्रिया पांच मिनट पहले पहुंच गई थी। शिवा को वह पहाड़ी पर चढ़ते हुए देख रही थी । अचानक उसने देखा कि दो लोग एकाएक शिवा के सामने आ गए और शिवा पर दनादन गोलियां बरसा दीं । शिवा वहीं गिर पड़ा । प्रिया इस दृश्य को देखकर वहीं बेहोश हो गई। लोगों ने पुलिस को बुलवाया । पुलिस शिवा को लेकर अस्पताल गई जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया। 

प्रिया की दुनिया बसने से पहले ही उजड़ चुकी थी । जब उसे होश आया तब उसने अपने आपको शिवा की विधवा घोषित कर दिया और चूड़ियां तोड़ दी । सफेद साड़ी पहन कर वह आ गई। 

शिवा की समस्त रस्मों के लगभग तीन महीने बाद सब लोगों ने प्रिया को बहुत समझाया कि वह शादी के लिए रजामंदी दे दे मगर प्रिया ने साफ साफ कह दिया कि उसकी शादी तो शिवा के साथ मन ही मन में हो चुकी थी । सामाजिक रीति रिवाज के अनुसार फेरे नहीं हुए तो क्या हुआ ? बिन फेरे भी तो कोई किसी का हो सकता है ना ? उसका और शिवा का संबंध ऐसा ही है "बिन फेरे हम तेरे" वाला । शादी तो एक रस्म है जबकि असली शादी तो दो दिलों का मिलन है । शिवा और प्रिया के दिल तो बहुत पहले से ही मिल चुके थे । रस्मों रिवाज होना कोई जरूरी तो नहीं ? 

आज शिवा की बरसी को दस वर्ष हो चुके हैं । प्रिया शिवा की विधवा के रूप में ही रह रही है । दोनों के घरवाले उसे समझा समझा कर थक गए हैं लेकिन वह विवाह के लिए राजी ही नहीं होती है । पहाड़ सी जिंदगी काटना बहुत मुश्किल काम है लेकिन "महान" लोग काम भी "महान" ही करते हैं । प्रिया और शिवा के प्यार को सलाम । 



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Romance