Prabodh Govil

Others

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भूत का ज़ुनून-7

भूत का ज़ुनून-7

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वाशरूम में बैठे - बैठे भटनागर जी का दिमाग़ चक्कर खा रहा था। आख़िर ये सब क्या है? उन्हें रात में ज़ोरदार सपना आया और सपने में ही उन्होंने न जाने क्या- क्या देख डाला!

सपने में ही वो पत्नी को मॉल घुमाने ले गए, वहां मूवी भी देखी, खाना भी खाया। सुबह घर से तैयार होकर दफ़्तर के लिए निकले और उन्हें लगा कि वहां कोई भूत- प्रेत उन्हें तंग कर रहा है। भूत ने उन्हें उनकी पत्नी से बात करने के लिए उनके घर जाने की धमकी तक दे डाली। वो ऑफिस छोड़ कर वापस घर की ओर भागे और रास्ते में उनके साथ न जाने क्या- क्या हो गया! उनकी गाड़ी उठाली गई। उनका ऑफिस बैग, पर्स सब चला गया।लेकिन थैंक गॉड, ये सब ख़्वाब निकला। न उनकी गाड़ी कहीं गई है और न बटुआ और ब्रीफकेस ही। सब कुछ अपनी जगह सलामत है।

लेकिन...

लेकिन गुत्थी अभी सुलझी नहीं है। आख़िर पत्नी को ये सब कैसे पता चला कि उन्होंने सपने में क्या- क्या देखा, क्या- क्या किया, ख़ुद उनके साथ क्या- क्या हुआ?यानी भूत- प्रेत का कोई न कोई चक्कर तो ज़रूर है। उनका सपना तक उनकी पत्नी से छिपा नहीं है। वह एक- एक रुपए का हिसाब जानती है। कैसे? आख़िर ये सब बातें वो कैसे जानती है? अवश्य ही उस पर कोई साया तो है।

भटनागर जी ने सोचा, एक काम किया जा सकता है। वो अभी ऑफ़िस जाते समय रास्ते में देखें कि क्या सचमुच कोई चंपा रबड़ी भंडार है? क्या वहां सचमुच कल उन्होंने रबड़ी खरीदी थी?वो पता करेंगे कि असलियत क्या है? क्या सचमुच वहां से उनकी कार चोरी हुई। यदि ऐसा कोई भंडार सच में हुआ तो हो सकता है कि वहां उन्हें इस पूरी बात का कोई न कोई 'क्लू' मिल जाए।

एक बात तो पक्की है कि अगर सचमुच ऐसी कोई जगह वहां हुई तो वह दुकानदार लड़के और दुकान के मालिक को तो ज़रूर ही पहचान लेंगे। कितनी देर तक तो वो वहां खड़े रह कर उन्हें देखते रहे थे। वो तो रिक्शा वाले और टैक्सी वाले युवक को भी पहचान सकते हैं, अगर वो उनके सामने आ जाएं तो!

लेकिन तभी भटनागर जी फ़िर डर से थर - थर कांपने लगे। उन्हें अकस्मात याद आ गई वो भिखारन बूढ़ी औरत! जिसने उनकी जूठी रबड़ी खा ली थी।

वो कौन थी?

ज़रूर इसी में कोई राज है।

घर लौटने पर उन्हें घर में ताला भी बंद मिला था। यानी पत्नी घर में नहीं थी। बस, हो न हो, इसी में कोई पेंच है। पत्नी और उस बूढ़ी औरत में ही कोई न कोई राज छिपा है।भटनागर जी की हिम्मत कुछ लौटी और अब वो शेव कर चुकने के बाद शॉवर के नीचे बदन मल- मल कर नहाने लगे।वो बाहर निकल कर अभी कपड़े पहन ही रहे थे कि दरवाज़े की घंटी बजी।

रसोई में उनका टिफिन पैक करती पत्नी ने सोचा कि पति अभी वाशरूम में ही हैं तो वो दरवाज़ा खोलने के लिए लपकी।दरवाज़ा खुलते ही उनकी बांछै खिल गईं। वहीं से चिल्ला कर बोलीं- "ज़रा देखो जी, कौन आया है! "

भटनागर जी बैड रूम से निकल बाहर दरवाज़े की ओर बढ़े। बेटा तब तक अपनी मम्मी के पांव छू चुका था और अब उनके चरण स्पर्श करने आ रहा था। उसके कंधे पर लटका बैग मम्मी ने लेकर रख दिया था।

"बेटा तू? तूने खबर भी नहीं दी। मैं तुझे लेने स्टेशन आ जाता।" भटनागर जी ने हॉस्टल से घर आए बेटे को देख कर कहा।

"अरे पापा, आपकी तो कोई ज़रूरी मीटिंग थी न आज! इसी से मैंने फ़ोन नहीं किया। मैंने सोचा मैं कैब से आ जाऊंगा।"

"ओह हां... मीटिंग।" भटनागर जी को याद आया और वो जल्दी- जल्दी नाश्ता करने लगे जो पत्नी ने पहले ही मेज़ पर लगा दिया था।



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