Ram Binod Kumar 'Sanatan Bharat'

Abstract Romance Inspirational

4  

Ram Binod Kumar 'Sanatan Bharat'

Abstract Romance Inspirational

भूल और अहसास

भूल और अहसास

13 mins
269


मैं अभी आधे घंटे पहले ही ऑफिस पहुंचा था । अस्पताल से कॉल आते ही मैंने चौधरी सर को मैसेज कर मांसी के पास जाने के लिए ऑफिस से निकला। । मैं वहां जल्दी पहुंचना चाहता था। आज मेरी मांसी को अस्पताल से छुट्टी मिलनी थी। मेरा और मांसी का अब हम दोनों के सिवा एक -दूसरे का इस दुनिया में और कोई नहीं है।

जैसे ही अस्पताल पहुंचा कैश काउंटर पर अनपेड ड्यूज जमा कराने के बाद मैं मांसी के वार्ड में पहुंचा। सिस्टर से मिलने के बाद उन्होंने बताया कि, मैं एक बार डॉक्टर निशा से मिल लूं। मैं सिस्टर से डॉक्टर के ऑफिस का लोकेशन पूछ कर आगे बढ़ा।

मुझे ढूंढने में कोई विशेष परेशानी नहीं हुई, वार्ड के आउटडोर के पास ही न्यूरो सर्जन डॉक्टर निशा का बोर्ड लगा था। मैं एक पल ऑफिस डोर के वन साइडेड ट्रांसपेरेंट ग्लास से अपनी आंखें सटाकर देखने की कोशिश की डॉक्टर अंदर है या नहीं ।

फिर मैं डोर को पूल कर अंदर प्रवेश किया। डॉक्टर अपने कामों में व्यस्त थीं। चेहरा पूरी तरह से ना देख पाने के बाद भी मुझे उनका व्यक्तित्व जाना पहचाना सा लगा।

 " गुड मॉर्निंग डॉक्टर ! मैं मयंक ! अपनी माता जी को ले जाने .........।

 डॉक्टर निशा नजर उठाईं। जब हम दोनों ने एक दूसरे को देखा तो मुझे झटका सा लगा। वह कुछ भी बोल ना सकी।

 कुछ पल पल खामोशी ने हम दोनों को घेर लिया। मुझे भी निशा को यहां देख कर आश्चर्य हो रहा था। हम दोनों ऐसे मिलेंगे यह हमने सोचा नहीं था।

एक दूसरे को इतने करीब से जानने वाले हम दोनों अजनबी की तरह एक दूसरे को देख रहे थे।

निशा एकटक मुझे देखे जा रही थी। मेरी नजर उसके चेहरे से हट नहीं रही थी। उनके चश्मा पहने होने के बाद भी मैं साफ महसूस कर रहा था, उसकी और मेरी नजरें एक दूसरे पर टिकी थी।

हमारे संबंधों की सारी यादें ताजी हो गई। जिसे मैंने अपने दिल के किसी कोने में बंद करके रखा था।

" हेलो मयंक ! कैसे हो ?"

निशा ने चुप्पी तोड़ा।

"आ..आ... म .. मैं ठीक हूं निशा ! त.. त.. तुम कैसी हो ?

होठों पर मुस्कान लाने की कोशिश करने के बावजूद भी उसके आंखों के कोने से मोतियों जैसे आंसू लुढ़क पड़े।

अपने को सहज करते हुए निशा ने मुस्कराने की कोशिश करने के साथ मुझसे कहा।

 " यह सूट तुम पर काफी जच रहा है ।"

कुछ पल तक मैं चुप रहा, फिर मैंने प्रत्युत्तर दिया। " यह तुमने चश्मा कब से पहनना शुरू कर दिया ?"

 इसी तरह कुछ पलों तक हम दोनों एक दूसरे की आंखों में देखते हुए मुस्कुराने की कोशिश करने लगे।

"मैं यहां अपनी मांसी को ले जाने आया हूं।"

 " अच्छा ! मैं भी चार दिन की की छुट्टी पर थी, कल से ही रेगुलर ड्यूटी आ रही हूं। शांति जी में मुझे भी अपनी मां नजर आतीं हैं। यहां वह पेशेंट नहीं,हम लोगों के लिए डॉक्टर भी हैं। सबके चेहरे देखकर पढ़ लेतीं हैं। मुझे एक नजर देख कर ही उन्होंने मेरी व्यक्तिगत जीवन की कई सवाल पूछ लिया। इतनी अपनापन और प्यार दिया कि मैं भी उनके साथ घुलने -मिलने के साथ-साथ खुल भी गई।

मैंने अपने जीवन के अनकहे पल जिसे कभी किसी से भी साझा नहीं किया। शांति जी को बताने से अपने को रोक ना सकी।

 उनके पैर के फोड़े के ऑपरेशन का परिणाम संतोषजनक है । कभी लगे हुए चोट की वजह से ऐसा हुआ था। अब वह पूरी तरह से ठीक हो जाएंगी।"

 मैंने इन पांच वर्षों में हर दिन- रात रो कर और तुझे याद कर के ही गुजारा है।

मैंने अपनी महत्वाकांक्षा में तुम्हारी और अपने घरवालों की नहीं सुनी, जिसका अफसोस मुझे आज तक भी है।

जब मुझे जाना था उस वक्त मुझमें तुम्हारा सामना करने की हिम्मत नहीं थी।

उस बात के लिए मुझे इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी मैंने सोचा नहीं था।

" चलो निशा मुझे खुशी मिली, फाइनली तुम्हें एम डी डॉक्टर की डिग्री लेने का सपना पूरा हुआ। परंतु इसके लिए हम दोनों ने सब कुछ खो दिया।"

 " तुमने कहां कुछ खोया है मयंक ?

तुमने तो अपना घर पर बसा लिया । अब मैं यही प्रार्थना करती हूं , कि मेरी सहेली तुम्हारी दुनिया को आवाद करें।"

"अरे रेनू तो मुझे निगल गई।

मेरा सारा जीवन चौपट कर दिया। पल में हमारा सब कुछ लुट लिया । पता नहीं उसने मुझसे किस जन्म का बदला लिया ?"

"उसका बदला तुमसे नहीं मुझसे ही था मयंक ! हम दोनों की दोस्ती से पहले एक बार मेरा उससे झगड़ा हुआ था तो उसमें हमें बर्बाद कर देने की बात कही थी।

 परंतु मैं यह सोचती रही कि हम दोनों अब अच्छे मित्र बन गए हैं "

हमने और तुम्हारे घर वालें तुम्हें US भेजने के पक्ष में नहीं थे। इसीलिए मेरी- तुम्हारी मंगनी भी की गई थी। पर तुम अपनी जिद पर अटल थी । तुम्हें आगे शिक्षा लेनी है। हम सब यही चाहते थे की एमबीबीएस के बाद ही, तुम नौकरी ढूंढो और प्रैक्टिस शुरू करो। परन्तु कुदरत को कुछ और ही मंजूर था।"

 उस समय शाम तुम्हारी US की फ्लाइट थी। रेनू मेरे पास तुम्हारी मंगनी की अंगूठी लेकर आई। बोली " निशा ने मंगनी तोड़ दिया है। वह मुझसे तुम्हारी अंगूठी तुम्हें वापस भेजी है। बोली ,अब मेरा इंतजार मत करना, अब मेरा आगे का कोई ठिकाना नहीं। संभव है मैं वही सेटल हो जाऊं।"

 "मयंक ! तुम्हें मुझे विश्वास करना चाहिए। मैंने ऐसा कुछ नहीं किया था ।मैंने अपनी अंगूठी उतारकर टेबल पर रखी थी। उस दिन मेरे जाने से पहले रेनू भी हमारे घर आई थी। उसके बाद हमने कई घंटे तक अपनी अंगूठी ढूंढी, लेकिन उसका कहीं पता नहीं चला।

 यह सुनकर कि तुमने मुझे छोड़ दिया है। मैं बिल्कुल जड़ हो गया था। मेरे मुंह से कुछ भी आवाज नहीं निकल रहा था। रेनू मेरे कंधे को पकड़कर झकझोर कर मुझे हिलाया। और जोर से बोली -"वह तुम्हें छोड़कर जा चुकी है। तुम अपने - आप को संभालो मयंक ! " मैंने अपने हाथों से अपने दोनों कानों को बंद कर लिया। मैं अब और कुछ सुनना नहीं चाहता था।

मैं एक दम टूट गया था। पूरी रात रोता और तुम्हें याद करता रहा था।

 दूसरे दिन शाम को जब मैं गम से चूर अपने कमरे में था, तब वह मेरे पास आई । उसने मुझे गले लगाया। मुझे अपने बाहों में भर लिया।

 मैं नहीं समझ पाया कि मुझे क्या हो गया था ? न तो रेनू ही समझ या खुद को रोक पाई थी। हम दोनों ने उस शाम अपनी मर्यादाएं तोड़ दिया। तुम्हारे साथ कि दोस्ती और प्रेम को भी भूल गया था।

 अब मैंने अपना सब कुछ खो दिया था । आगे मैं तुम्हें कुछ भी बताने के काबिल नहीं रहा।

"क्या ?" वह मेरी बात को सुनकर स्तब्ध रह गई।

हमने दाम्पत्य जीवन-सूत्र में बंध जाना ही उचित समझा।

 लेकिन शीघ्र ही हम दोनों को महसूस हुआ ।कि हम दोनों एक- दूसरे के लिए नहीं बने थे। हमारी शादी की नींव हीन भावना की वजह से पड़ी थी, न कि प्रेम की वजह से जो दो वर्ष तक भी कायम न रह सकी थी।

पर अब हम दोनों का एक साथ रहना नहीं होता है। रेनू ने मुझसे तलाक ले लिया है।

निशा मेरी तरफ अपलक देख रही थी

मैंने बोला-" क्या तुम्हें कोई अपना जीवन साथी मिल गया ?"

उसने मुझे अपनी खाली अनामिका उंगली को दिखाते हुए बोली "नहीं !अभी तक तो कोई मिला नहीं !"

 "और क्या तुम दोबारा अपना घर बसाना चाहोगे ? " निशा ने मुझसे सवाल किया ।

 हां !

" कौन है वह ?"

मैं वही अंगूठी पुनः तुम्हारे हाथों में पहनाना चाहता हूं।इतना सुनते ही निशा के आंखों में आंसू आ गए

 वह भावुक हो गई। और उठकर मेरे गले लग गई। मुझे कसकर अपने बाहों में पकड़ लिया। हम दोनों ही रो रहे थे। आखिर पांच वर्ष बाद हम दोनों एक हो गए हैं। मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था।

यह हमारे लिए सुखद पल था। अब हम पीछे की बातों को याद करना या मुड़कर देखना नहीं चाहते थे।

अब हमारे प्रेम को कभी कोई भी ताकत पीछे नहीं खींच सकती थी।

 जुदाई नाम का शब्द हमने अपने जीवन से अस्त कर दिया था।

 एक छोटी सी भूल कर इतनी बड़ी सजा जो हम दोनों ने पाई हमारे लिए कम न था। एक अनुपम एहसास के साथ हम दोनों एक दूसरे से अलग नहीं होना चाह रहे थे।

हमने " भूल और एहसास" भाग 1 में डॉक्टर निशा का US से लौटने ,और मयंक का रेनू से तलाक होने के बाद दोनों का मिलन हॉस्पिटल में जाना था। अब दोनों ने एक साथ जीवन गुजारने का फैसला लिया है।

पांच वर्ष बाद दोनों का मिलना एक सुखद अहसास से कम नहीं था। अब दोनों ने किसी की मर्जी और शुभ मुहूर्त का इंतजार नहीं किया। "नो मंगनी पट ब्याह " कर लिया।

 मयंक अपनी मांसी और निशा के साथ बहुत खुश था। निशा की भी खुशी का ठिकाना नहीं था। दोनों हर पल एक दूसरे से जुड़े रहते थे। ऐसा सालों तक चलता रहा।

 पर अब मयंक अपना प्यार और संसार बढ़ाना चाहता था। मगर निशा अभी ऐसी स्थिति में नहीं थी। और कुछ वर्ष इंतजार करना चाहती थी।

 इस बात को लेकर दोनों में थोड़ा मतभेद हो गया। लाख समझाने के बावजूद भी डॉ निशा ने निरोधक का प्रयोग बंद नहीं किया। मयंक को अच्छा नहीं लगता था। वह सोचता निशा उसका महत्व नहीं देती है।

 अब उसे यह सब निशा द्वारा खुद को इग्नोर करने जैसा लगता था।

वह दुखी और खोया- खोया रहने लगा। शायद इन वर्षों में दोनों साथ-साथ रहने के बावजूद भी एक -दूसरे को समझना- समझाना और उनकी कदर करना नहीं सीखे पाए थे। अन्यथा इस तरह यह समस्या जटिल और विकट ना हो पाती।

इसी बीच मयंक को निशा के जिंदगी में डॉ रमेश कि अहसास ने और ही घायल कर दिया। जब दोनों साथ होते तुम मयंक को तीसरे की उपस्थिति चुभने लगती थी। बार-बार निशा के पास उसका मैसेज और कभी-कभी तो उसके फोन कॉलस भी आता था। मयंक को यह सब अच्छा नहीं लगता था ।जब मयंक को बर्दाश्त से बाहर हो गया तो ,आखिर एक बार उसने निशा से पूछ ही लिया।

 " निशा यह रमेश कौन है ? क्या पहले से ही हमारी परेशानियां कम थी? जो तुमने एक नया बखेड़ा पालना शुरू कर दिया । वह जो भी है, उसे स्पष्ट मना कर दो । वह तुम्हें संपर्क ना करें। इतना तो मुझे पता है । वह ना तो तुम्हारा सीनियर है, नहीं सहकर्मी ही। फिर आखिर क्यों बार-बार हमारी जिंदगी में दखल दे रहा है ?

" मयंक तुम भी बच्चों जैसी बातें करते हो। अब तुम्हें तो फुर्सत है नहीं मेरी खबर लेने की। न जाने मैंने कौन सी इतनी बुरी बात कह दी, जो तुम मुझसे ही कट गए। तुम खुद के बारे में सोचो तुम कितने बदल गए हो ?"

 "मेरे बदलाव का कारण तुम हो। जब तुम मेरे बातों को समझती और मानती ही नहीं, तो मुझे तुम्हारा बेचारा पति बनना पड़ता है। अब मैं कोई तुम्हारा बॉस तो हूं नहीं, कि तुम मेरी बातों को समझोगी।"

मयंक तुम छोटी बात का बतंगड़ बना देते हो। मैंने बस इतना ही कहा बच्चे के लिए हम कुछ दिन और इंतजार कर लेते हैं। अभी हमारी जॉब को एक वर्ष हुआ है, बच्चे की झंझट में मैं वहां से ब्रेकअप नहीं लेना चाहती हूं। क्योंकि मुझे अभी अपनी तरक्की का अवसर नजर आ रहा है। अगर मैं अपने बच्चे के जन्म के कारण मैटरनिटी लीव पर चली जाऊंगी, फिर शायद ही मैं तरक्की कर पाऊं ।

तरक्की ! तरक्की! ! तरक्की!!!

यह बार-बार हमारी जिंदगी में तरक्की बाधक कयों बन जाती है ? एक बार तरक्की के पीछे भागने का नतीजा तुमने देखा है ना ?अब फिर मुझे तुम्हारी तरक्की से डर लगने लगा है। हम जितने में हैं उतने में खुश हैं।"

" बात कमी की नहीं है । बात पद - प्रतिष्ठान और मान - सम्मान की है।"

‌ ‌ "चलो मैं तुमसे बहस नहीं करना चाहता । यह सब तो तुम्हारी बात है ।पर बीच में आ रमेश कहां से आ जाता है ? क्या तुम्हारी तरक्की का राज रमेश के पास भी छूपा है।"

 " मयंक तुम रमेश को क्यों नहीं भूलते हो ? रमेश जैसा भी है हमारा शुभचिंतक ही है। बीच में रमेश को क्यों लाते हो ?"

"निशा तुम मेरी बात को घुमा रही हो ? ना तो मैं उसे याद करता हूं ।और ना ही मैं बीच में लाता हूं। यह दोनों ही काम तुम्हारे द्वारा किया जा रहा है। तुम ही उसे पल -पल याद करती हो, और तुम ही हमारी जिंदगी के बीच में लाती हो।"

मयंक ! तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं करते हमारी दुनिया केवल एक साल पहले ही शुरू नहीं होती है ‌। एक वर्ष के पहले भी हमारा कोई जीवन था। तुम क्या कहना चाहते हो ? मैं अपने दोस्तों के आगे अपना मुंह बंद कर लूं।"

" मैंने तुम्हें मुंह बंद करने और तुम्हारी दोस्ती का गला घोटने के लिए नहीं बोला है। परंतु हमारी परेशानियां तो....."

 "हमारी परेशानी बढ़ाने में तुम ही हो मयंक। तुमने रेनू के साथ दो साल बिताए। मेरे प्यार और जज्बातों का गला घोट दिया था । मुझे कोई मलाल नहीं, परंतु मैं जरा किसी से दो बातें कर लेती हूं, तो तुझे बर्दाश्त नहीं होता। आखिर तुम यह क्यों नहीं सोचते कि जब तुम ने मुझे छोड़ दिया था । तो मेरे जीवन में भी क्या कुछ हुआ होगा ?"

"क्या क्या हुआ ? तुम्हारे जीवन में बताओगे ? तब ना जानूंगा ? मैं कोई भगवान थोड़े न हूं, जो तुम्हें बिना मुंह खोले सब तुम्हारे मन की बातें जान जाऊं ?"

मयंक ! मैंने तुमसे कभी कुछ भी नहीं छुपाया। जरूरत पड़ने पर हमने हर वह चीज तुम्हें बताई, जो मुझे बताना चाहिए। अब मैं तुम्हें वैसे भी कुछ बातें नहीं बताना चाहती, जिसे जानकर तुम्हे दु:ख हो।"

"अब दूसरा दु:ख और क्या होगा ? यही जो तुम दुख रोज दे रही है , यह क्या कम है ?

 " ठीक है बाबा ! माफ करो! मैं अगर और कुछ कह दूंगी, तो बात बहुत बड़ी हो जाएगी। मुझे कोई सफाई पेश नहीं करनी है।"

 "सफाई तो तुम्हें देनी होगी निशा तुम इस तरह मुझे घुमा नहीं सकते हो। तुम्हें बताना होगा आखिर रमेश तुम्हारा कौन है? बीते दिनों में उसका और तुम्हारा क्या रिश्ता था ?"

 "पति-पत्नी का रिश्ता विश्वास पर टिका होता है। तुम्हें कभी इस तरह किसी के कल मैं नहीं झांकना चाहिए । मेरे और रमेश के बीच में ऐसा कुछ नहीं था। जिसे तुम्हें बताने में मुझे संकोच करना पड़े। मैं तुम्हारे जितना कमजोर नहीं जो थोड़े से सहारा देने और गले लगाने पर ही अपना होशो - हवास खो बैठूं। शायद कुदरत ने यही शक्ति देकर हम नारियों को पुरुषों से अलग करती है।"

" बहुत खूब। अब तो मुझे नीचा दिखाने की कोशिश कर रही हो, कि तुम सती -सावित्री बनी रही और मैं रेनू के कंधे से फिसल गया था। " पकड़ा गया जो चोर है, जो बच गया वह सयाना है।" तुम्हारे बारे में भी कौन जानता है तुमने क्या - क्या गुल खिलाए हैं ? और फिर डॉक्टर लोग मरे हुए को तो छोड़ते नहीं , जिंदा इंसानों की भावनाओं का क्या महत्व देंगे ?"

"बस मयंक ! बर्दाश्त से बाहर हो गई। आगे एक शब्द नहीं बोलना। तुमने मेरे प्रोफेशन तक को लांछन लगाया। तुझे अब मैं क्या? मेरा काम भी पसंद नहीं है!"

"हां !हां!! मैं इस तरह जीना नहीं चाहता हूं। मुझे सिर्फ नाम का तुम्हारे पति बनना मंजूर नहीं।"

इसी तरह मयंक निशा की अनबन दिन- दिन बढ़ती रही , एक दिन ऐसा आया जब निशा मयंक को फोन पर खबर कर, अपने मायके से हॉस्पिटल आने -जाने लगी। अब दोनों एक- दूसरे की खबर लेने की भी जरुरत नहीं समझने लगे।

 दोनों का रिश्ता चरमरा कर अंतिम पड़ाव में पहुंचने को था ।तभी एक दिन रमेश अपनी पत्नी के साथ मयंक से मिलने आया। रमेश ने मयंक को बताया,

" निशा के साथ उसकी बातें केवल मयंक को लेकर ही होती थी। निशा बताती थी ,कि मयंक और उसमें फैमिली प्लानिंग समस्या को लेकर अनबन चल रहा है। वह अभी बच्चा नहीं चाहती है परंतु मयंक इस बात के लिए उससे नाराज होता है।"

 इस तरह रमेश और उसकी पत्नी की पहल से ,और मयंक को उनकी बातों पर विश्वास से ,पुण: निशा और मयंक एक हुए।

हमें आपस में किसी से छोटी-छोटी बातों के लिए बहस नहीं करनी चाहिए। क्योंकि हमारे घर में बुजुर्ग कहते हैं बात ही ऐसी चीज है जिसे " छिलने पर चिकना होने की बजायरूखड़ा होता जाता है।" छोटी-छोटी बातों पर तकरार से बचें। एक दूसरे पर विश्वास ही रिश्तो की नींव है।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract