भैया मुझे मेरा हिस्सा चाहिये
भैया मुझे मेरा हिस्सा चाहिये
"भैया मुझे मेरा हिस्सा चाहिये आप यूं अकेले मां पापा की प्रॉपर्टी नहीं बेच सकते।
रागनी ने अपने बड़े भैया राजीव से कहा तो वो गुस्से में भुनभुनाते हुए बोला.......
"ये क्या बात हुई रागनी बड़ी दीदी ने तो नहीं मांगा अपना कोई हिस्सा तो तुम क्यों मांग रही हो फिर पापा को जितना देना था उतना दे दिया तुम लोगों की शादी में अब इस समाज के नियमों के हिसाब से मां पापा के जाने के बाद ये सारी जायदाद मेरी है। मैं इसे बेचूं या कुछ भी करूं।
"ऐसे कैसे भाई पापा ने मेरी और दीदी की शादी ऐसी जगह की है जहां दहेज मांगा ही नहीं गया था ।हम से ज्यादा तो आपकी शादी में मां पापा ने खर्चा किया था क्योंकि जितने गहने जेवर उन्होंने भाभी को दिये उतने तो उन्होंने हम दोनों को मिलाकर भी नहीं दिये। आपकी तो पढ़ाई में भी हमसे कई गुना ज्यादा खर्चा हुआ है। अब अगर दीदी को नहीं चाहिये कुछ तो उन्हें मत दो पर मुझे मेरा हिस्सा चाहिये बस। वैसे भी अब कानूनन बेटा बेटी दोनों बराबर है तो अगर आप ऐसे नहीं देंगे तो मैं कोर्ट का दरवाजा खटखटाऊंगी।
रागनी ने साफ शब्दों में कहा तो राजीव परेशान सा होकर बोला ......
"ठीक है तुम्हें हिस्सा ही चाहिये तो ले लो पर किसी एक जगह से जैसे खेत खलियान घर तीनों का मिलाकर जितना तुम्हारा हिस्सा है उतनी जमीन खेत से ले लो बस और हमारा पीछा छोड़ो।
"ऐसे कैसे भाई मुझे हर जगह से अपना एक टुकड़ा चाहिये चाहे वो घर हो खेत हो या खलियान! और अगर आप एक जगह से देना ही चाहते हो तो ये पूरा घर हमको दे दो।
रागनी ने हठ करते हुए कहा तो राजीव थोड़ा खीजते हुए बोला....
"हर जगह से तुम्हें एक हिस्सा कैसे दे सकते है? इकलौता बेटा होने की वजह पापा जी ने घर ऐसा कहां बनवाया है कि उसमें हिस्से कर सकें अगर घर का एक हिस्सा तुम्हें दिया तो वो घर बिकेगा ही नहीं। और पूरा घर तुम्हें दिया तो तुमको तुम्हारे हिस्से से ज्यादा मिलेगा ।
"तो मैं हर जगह से अपना एक हिस्सा ले लूंगी।
कहते हुए रागनी अड़ गई तो हारकर राजीव घर का ऊपरी हिस्सा किराये पर देकर और नीचे तीन चाबियों वाला ताला लगाकर एक एक चाबी अपनी दोनों बहनों को देकर वापिस विदेश चला गया क्योंकि वो अपने परिवार के साथ वहीं तो रहता था।
राजीव के माता पिता ने अपनी बेटियों से ज्यादा राजीव को पढ़ाया था क्योंकि वो उनकी इकलौती पुत्र संतान थी संतान तो दो और थी रंजना और रागनी पर समाज में फैली मान्यता के अनुसार स्वर्ग की सीढ़ी तो पुत्र से ही मिलनी थी तो उसे तो सबसे ज्यादा मिलना ही था। रागनी और रंजना दोनों पढ़ने में बहुत होशियार थी पर उनके पिता ने उनकी पढ़ाई छुड़वा घर बिठा दिया ओर राजीव को विदेश पढ़ने भेज दिया। राजीव का विदेश में ऐसा मन लगा कि पढ़ाई के बाद वहीं नौकरी और शादी करके वहीं बस गया।
पहले तो राजीव कुछ सालों तक हर तीन साल में एक बार आता रहता था पर फिर वहां काम और परिवार बढ़ने से उसका आना ना के बराबर ही हो गया था। जब मां बीमार हुई तो वो राजीव को देखने के लिए तरसती रहीं पर राजीव वहां से आ ही नहीं पाया था। फिर एक दिन उन्होंने राजीव के लिए तरसती आंखें बंद कर ली तब भी राजीव किसी प्रॉब्लम की वजह से नहीं आ पाया था।
और अभी आया भी तो जब पापा की हार्ट अटैक से मौत हो गई। वो आनन फानन में तीन दिन की यात्रा कर यहां पहुंचा था। आखिर अब उसे पापा को अग्नि देने का परम कर्तव्य जो पूरा करना था या यूं कहो कि उनके जाने के बाद वो खुद को इस सारी प्रॉपर्टी का अकेला वारिस समझ कर आया था क्योंकि इस छोटे से शहर में वसीयत का कोई नियम नहीं था यहां तो बेटा का ही अपनी पिता की संपत्ति पर अधिकार होता है। फिर चाहे उसने बेटे के कर्तव्य पूरे किये हो या नहीं। पर यहां रागनी ने बीच में अपना हिस्सा मांग सब खराब कर दिया था।
रागनी ने अपने भाई से हिस्सा मांग तो लिया पर वो अपनी ही बहन और भाई की नजरों में दुश्मन बन गई थी। बहन को जहां लगता कि उसकी वजह से उनका भाई उनसे गुस्सा हो गया है। वहीं भाई के लिए वो गले की ऐसी हड्डी बन गई थी जो न निगली जा रही थी न थूकी जा रही थी।
कुछ एक दो साल बाद तीनों को उनके चाचा के बेटे के ब्याह का निमंत्रण आया जिसमें राजीव भी इस उम्मीद में आया कि शायद अब कोई बात बन जाए और वो सारी जायदाद बेच पाये। चाचा जी ने मन न होते हुए भी उस शादी में रागनी को बुलाया क्योंकि एक तो राजीव ने कहा था उसे बुलाने को, दूसरा रागनी और उसके पति का सभी चचेरे भाइयों के साथ बहुत अच्छा व्यवहार था ,तीसरा छोटे शहरों में कोई भी पुरानी रिश्तेदारी यूं ही नहीं तोड़ी जाती।
पर शादी में रागनी से सभी रिश्तेदार ऐसा व्यवहार कर रहे थे जैसे उसने अपना हिस्सा मांगकर कोई गुनाह कर दिया हो। उसकी बुआ तो उसे सुनाते हुऐ यहां तक बोलीं.....
"देखो तो इस लड़की की आंखों में जरा भी शर्म नहीं है अपने किए पर मुझे तो शर्म आती है कि एक ऐसी लालची लड़की मेरी भतीजी है जिसने अपने भाई से हिस्सा मांग अपने भाई को ही पराया कर दिया।
अब पानी रागनी के सर से ऊपर हो गया था इसलिये रागनी अपनी बुआ और बाकी रिश्तेदारों से थोड़ा गुस्से में बोली.....
"आप लोग मुझे यूं शर्मसार करना बंद करो" क्योंकि मैंने अपना हक मांग कर कोई गलत काम नहीं किया है। हर लड़की की पूरी जिन्दगी बस एक ही चाह रहती है कि उसका मायका कभी न छूटे तो अगर मेरी भी यही चाह है तो आप सभी को इतना बुरा क्यों लग रहा है?
बुआ भैया को मैने पराया नहीं किया है विदेश में बसकर ये खुद ही पराये हो गये है इनके परायेपन के बारे में मैं क्या ही कहूं इन्हें तो अपनी मां से भी कोई लगाव नहीं था वो बेचारी तो मरते दम तक इनके आने की आस में दरवाजा ताकती रहीं। पापा भी सालों से इन्हें देखने को तरस ही रहे थे तो इन्हें हम बहनों से क्या ही मतलब रहेगा? फिर बताओ हम बहनों का जब मन होगा अपने बचपन को एक बार फिर जीने का या अपने मायके आने का तो हम किस देहरी पर आयेंगे?
बुआ आप ही बताओ आपकी इतनी उम्र हो गई है क्या आप कभी मायके आने का लालच छोड़ पाती है? आपके तो दो भाई है तो एक इस दुनिया से चले गये तो दूसरे आपको बुलाएंगे। पर हमें यहां कौन बुलाएगा क्योंकि मेरा भाई तो सब बेच बाच कर विदेश चले जायेंगे और कुटुंब वालों को जब कुछ मिलेगा नहीं तो वो भला हम लोगों को बुलाने की जिम्मेदारी क्यों उठायेंगे?
बस इसीलिए मैंने भईया से अपना हक मांगा है ताकि जब भी मेरा और दीदी का मन हो हम दोनों अपने मायके आकर अपनी जड़ों को सींच सकें क्योंकि बिना जड़ों के तो कोई भी पेड़ हरा भरा नहीं रह सकता तो हम बेटियां कैसे खुश रह पाएंगी?
और आपलोग मुझे लालची क्यों बोल रहें हैं? मैंने कौन सी भाई से बेईमानी करके सारी प्रॉपर्टी छीन ली। मैंने तो उन्हें ऑप्शन भी दिया था कि सिर्फ घर मुझे दे दे बाकी सारे खेत खलियान बेच दे पर भाई ने ऐसा नहीं किया क्योंकि इन्हें सब कुछ बेच कर पूरा पैसा लेना है तो आप लोग इन्हें लालची क्यों नहीं कह रहें हैं?
रागनी के सवाल और भावनाएं सुनकर चारों तरफ आंसुओं के साथ एक चुप्पी छा गई क्योंकि किसी के पास कोई जवाब नहीं था। तभी रागनी की बड़ी बहन रंजना ने रोते हुए उसे गले से लगा लिया और बोलीं........
" छोटी तुम हमारे लिए इतना अच्छा सोच रही थी और हम तुम्हें ही दोष दे रहे थे हमने तो कभी ऐसे सोचा ही नहीं था कि इसके बाद हमारा मायका हमेशा के लिऐ छूट जायेगा। सोचते भी कैसे हमारा दिमाग तो सदियों पहले कि उसी सड़ी गली सोच में उलझा है कि शादी के बाद मायके का जो भी है वो सिर्फ भाई का है उसे वो रखे या बेचें उससे हमें कोई मतलब नहीं। पर आज अपनी सोच से तुमने मेरी आंखें खोल दी अब तो राजीव से मैं भी अपना हिस्सा मांगूंगी।
फिर रंजना राजीव की तरफ देखते हुए बोली....
"बोलो राजू (राजीव) दोगे न हम दोनों बहनों को हमारा मायका "
अपनी दोनों बहनों को रोता देखकर आज राजीव भी रो पड़ा और दोनों बहनों के हाथ आपने हाथ में लेकर बोला....
"मुझे माफ कर दो रागनी विदेश में जाकर मेरे विचार भी वैसे ही हो गये मैं मां पापा से मिलने आना चाहता था पर मैंने हमेशा काम और पैसों को रिश्तों से ज्यादा अहमियत दी इसलिये कभी मिलने का समय ही नहीं निकाल पाया। और सबसे छोटी होते हुए भी तुमने जिस तरह से सोचा वैसा तो मैंने कभी सोचा ही नहीं। याद तो मुझे भी बहुत आती है अपने देश अपनी मिट्टी अपने घर की अभी तक तो जब भी आता था तो आराम से घर आ जाता था। घर बेचने के बाद अपने देश आकर कहां जाऊंगा ये बात मेरे दिमाग में आई ही नहीं।
पर अब जब हमें हमारी गलती पता चल गई है तो इसे मैं अभी सुधारूंगा और हम अपना घर कभी नहीं बेचेंगे। ताकि हम जब भी यहां आये अपने मां पापा अपनी बचपन की यादों के साथ अपने घर के आंगन में कुछ समय बिता सकें। खेत खलिहान बेचेंगे तो उन पैसों के भी तीन हिस्से करेंगे....
"नहीं हमें और कहीं भी कोई हिस्सा नहीं चाहिये "
राजीव की पैसों के तीन हिस्से करने की बात सुनते ही दोनों बहनें एक साथ बोल उठी। जिसे सुनकर और उन तीनों का प्यार देखकर वहां खड़े सभी लोगों के भींगी पलकों के साथ चेहरे पर इक मुस्कान तैर गई। और कहीं न कहीं इक सोच भी आई उनके अन्दर कि बिना पूरी बात जाने उन्हें कभी भी किसी के लिए कोई राय नहीं बनाना चाहिये। क्या पता जो बात गलत लग रही हो वो बात इतनी सही हो कि पता लगने पर किसी से कुछ कहते ही न बने।