Bhavna Thaker

Drama

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Bhavna Thaker

Drama

बेवफ़ा

बेवफ़ा

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आज मेरी ज़िंदगी में एक ऐसा दौर आया है जिसमें मैं अपने प्यार, अपने पति जो एक वक्त मेरा सब कुछ था उसे दिल से बद दुआ देते हर रोज़ कोस रही हूँ। नफ़रत करती हूँ इतनी हद तक कि उसका चेहरा याद आते ही थूक देती हूँ। 

जिसको पाने के लिए एक दिन दुआ मांगती थी, व्रत रखती थी, मंदिरों की दहलीज़ पर मन्नतों के धागे बाँधती थी और जिसके प्यार में अंधी होकर अपने देवदूत जैसे पापा का दिल दु:खा कर घर से भाग निकली थी। आज उसी इंसान से मैं बेपनाह नफ़रत करती हूँ। जिसकी वजह भी कोई मेरा अपना ही रहा है।

मैं और राज खुशी-खुशी ज़िंदगी बिता रहे थे, एक दूसरे के लिए पागल जो थे। मेरी खुशी राज के जीने का मकसद थी और राज मेरी खुशियों की वजह था लव मेरिज जो थी।

कालेज के ज़माने से शुरू करूँ तो मैं बहुत ही चुपचाप रहने वाली, पढ़ाकू टाइप की रिज़र्व नेचर की लड़की थी। अपने काम से काम रखने वाली। सारे लड़के-लड़कियां एक दूसरे के ब्वॉयफ्रेंड गर्ल फ्रेंड थे, मेरा कोई ब्लायफ्रेंड नहीं था। सब एक-दूसरे के साथ मस्ती करते, खेलते, पिकनिक जाते पर मैं खुद के भीतर सिमटी खुद की दोस्त थी। हाँ मेरी चचेरी बहन माला को मैं अपनी बेस्ट फ्रेंड कह सकती हूँ जिसके साथ मैं अपनी सारी फीलिंग्स शेयर करती थी। माला एम बी ए कर रही थी नासिक में, फोन पर हम दोनों बहनें घंटों बातें करती थी। एक दिन मैं कालेज की लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ रही थी तो अचानक राज ने आकर कहा, हाय मिस मुक्ति क्या हम दोस्त बन सकते है? मैं थोड़ी हड़बड़ा गई और जी, जी मैं, मैं कैसे करते शब्दों को हलक से बाहर निकाल ही नहीं पाई। राज ने कहा अरे घबराइये मत मैं इंसान ही हूँ कोई एलियन नहीं it's ok अगर आप मुझे दोस्त बनाना नहीं चाहती तो रहने देते है। मैंने कहा जी ऐसी कोई बात नहीं बस मेरा नेचर ही कुछ ऐसा है। पर राज ने मीठी-मीठी बातों से अपना बना लिया। फिर तो मैं और राज बहुत अच्छे दोस्त बन गए और दोस्ती कब प्यार में बदल गई पता ही नहीं चला। 

मैं राजमय हो गई, मेरी हर बात में राज ही राज था। पागलों की तरह हम दोनों एक दूसरे को चाहने लगे थे। पर मेरा परिवार थोड़ा पुराने खयालात वाला था, पापा की मैं जान थी पर पापा उसूलों के पक्के थे। और लव मेरिज के ख़िलाफ़ थे। मैंने कितनी मन्नतें मानी, दुआएं मांगी कि पापा राज से मेरी शादी करवाने के लिए राज़ी हो जाए पर पापा ने साफ़ मना कर दिया ये कह कर कि तेरी शादी होगी तो अपनी ही बिरादरी के लड़के से, और ना चाहते हुए भी मुझे राज से भागकर शादी करनी पड़ी। पापा का दिल दु:खाया, पर ये ना करती तो राज का साथ छूट जाता। राज से शादी मेरी ज़िंदगी का सपना और मकसद था। 

राज भी मुझसे बेपनाह प्यार करता था, हमारी छोटी सी दुनिया में हम दोनों मस्त थे। एक माला मेरे सुख-दु:ख की साथी थी। कभी-कभी राज भी माला से हाय हैलो कर लिया करता था और मजाक में कहता भी यार मुक्ति तुम्हारी बहन बहुत सुंदर है कभी बुलाओ भी हमारे घर, वैसे साली आधी घरवाली कहलाती है तो थोड़ा चांस मैं भी ले लूँ। मैं बनावटी गुस्सा करके बात उड़ा देती थी। मैं जानती थी राज मुझे बेहद चाहता था उसकी नीयत फ़िसलने का सवाल ही पैदा नहीं होता। राज एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर की पोस्ट पर था, हमारी ज़िंदगी खुशी-खुशी कट रही थी बिलकुल परफेक्ट। सुबह-सुबह राज मुझे चाय के कप के साथ जगाता, मैं अंगड़ाई लेते उठती वो मुझे बाँहों में भर लेता, मेरी जुल्फों से खेलता और मैं राज की पनाह में खुद को महफ़ूज़ महसूस करते पड़ी रहती। राज ऑफिस के लिए निकलता मैं अपना गाल आगे करती और वो अपनी चाहत की मोहर लगाता और मैं खिलखिला उठती। हर कोई देखने वाला हमें एक दूजे के लिए की उपमा देकर नवाजता। 

टच वुड कई बार मुझे मन में संशय होता कहीं मेरी खुशियों को किसीकी नज़र न लग जाए। पापा को कई बार मनाने के लिए फोन किए, पर मेरी आवाज़ सुनते ही फोन काट देते। जानती हूँ नाराज़ थे पर पापा एक बार देखते तो मानते की राज जैसा लड़का पूरी बिरादरी में दीया लेकर ढूँढते तो भी नहीं मिलता। बार-बार मेरा मन कहता काश पापा एक बार आकर मेरा सुख देख लें पर कभी मेरे अरमान पूरे नहीं हुए। 

शादी के दो साल बाद हमारी ज़िंदगी में एक ओर खुशी ने दस्तक दी, मेरी कोख में राज का बीज पनप रहा था, जी हाँ मैं माँ बनने वाली थी। और ये खबर सुनकर राज खुशी के मारे पागल हो गया था। और खुश खबर सुनते ही अभी से दोस्तों में मिठाई बाँट रहा था। मुझे सिने से लगाकर बोला मुक्ति तुम नहीं जानती तुमने मुझे कितना अनमोल उपहार दिया है। अब राज मुझे कोई काम नहीं करने देता था। बेड के नीचे पैर भी नहीं रखने देता था। पर फिर भी तीसरे महीने मुझे हल्की सी ब्लिडिंग हुई तो डाॅक्टर ने स्टिच लेकर टोटली बेड रेस्ट का फ़रमान जारी कर दिया। मैं और राज दोनों चिंता में पड़ गए। राज ने कहा कोई तो चाहिए तुम्हारी देखभाल के लिए, मेरे ऑफिस जाने के बाद कैसे मैनेज करोगी तुम। तभी मुझे याद आया माला की पढाई पूरी हो गई थी तो क्यूँ न माला को बुला लें, दोनों बहनें आराम से साथ रहेंगे और मेरी देखभाल भी हो जाएगी। राज को तो मानो लाटरी लग गई हो बोला यस-यस अब और कोई ऑप्शन नहीं आज ही माला को फोन करके बुला लेते है। 

मैंने चाचा-चाची और माला से बात की सबने खुशी-खुशी रज़ामंदी दे दी और माला दो दिन बाद आ भी गई। पर यूँ कहो दबे पाँव मेरे घर की बर्बादी आई थी। 

राज को इतना खुश मैंने पहले कभी नहीं देखा जितना माला के आने पर हुआ। माला चंचल और बिंदास थी, बोलने में मुखर और दिखने में अति सुंदर। no doubt माला और राज मेरा बहुत खयाल रखते थे। अब मेरा छट्ठा महीना चल रहा था, डाॅक्टर ने थोड़ा चलने फिरने की छूट दी पर हमारा बेडरूम उपर था तो राज ने ये कहकर मुझे नीचे के रूम में शिफ्ट करवा दिया की सीढियां चढ़ना जोखिम होगा। मुझे भी ठीक लगा मैं तबीयत की वजह से ज़्यादातर अपने रूम में ही पड़ी रहती थी। और मेरी इसी परिस्थिति का फ़ायदा उठाते राज और माला कब एक दूसरे के करीब आ गए मुझे पता ही नहीं चला। 

माला मुझसे ज़्यादा राज का ख़याल रखती थी। राज की हर छोटी-बड़ी जरूरत हंस-हंस कर पूरी करती। राज की पसंद का खाना बनाने से लेकर ऑफ़िस जाते वक्त दरवाज़े तक छोड़ने जाना, और राज के ऑफ़िस से आते ही गले मिलकर स्वागत करना। मैंने दो तीन बार दोनों को टोका भी पर राज ने मुझे सख़्ती से डांट कर ये कह कर चुप करा दिया की तुम्हें शर्म आनी चाहिए, एक तो माला हमारी हेल्प करने के लिए आई है और तुम ताने मार रही हो। पर अब तो पानी सर से उपर जा रहा था उन दोनों की छेड़-छाड़ और द्विअर्थी भाषा में बातें करना मेरे लिए असह्य था। 

आहिस्ता-आहिस्ता दोनों मेरे प्रति लापरवाह होने लगे थे। माला का बर्ताव मानो वो घर की मालकिन हो ऐसा होने लगा। मेरी आँखों के सामने बिंदास दोनों एक दूसरे पर प्यार जताते और मेरी आँखों के सामने ही माला को उठाकर राज उपर मेरे बैडरूम में ले जाने लगा। और उन दोनों की गुफ़्तगु और ठहाकों से मेरे सिने में उबलता हुआ शीशा मानों किसीने उडेल दिया हो ऐसी जलन होने लगती थी। 

पर उस दिन हद हो गई सुबह से ही मेरी तबियत ठीक नहीं थी तो मैंने राज को कहा आज ऑफ़िस से छुट्टी ले लो कभी भी अस्पताल जाना पड़ेगा, राज ने छुट्टी ली भी पर मेरे लिए नहीं माला के साथ रंगरेलियां मनाने के लिए। खाना खाकर दोनों उपर चले गए और मुझे लेबर पेइन शुरू हो गया तो मैंने राज और माला को आवाज़ लगाई, दोनों उपर के कमरे में थे एक काॅडलैस घंटी भी रखी थी जो मैंने बार-बार बजाई पर एक घंटे तक दोनों नीचे नहीं आए। मेरा दर्द बढ़ता जा रहा था, सारा पानी गिर गया मैं दर्द से बेहाल रोए जा रही थी, और कब बेहोश हो गई पता ही नहीं चला। जब होश में आई तो अस्पताल के बैड पर पड़ी थी। एक नर्स मेरे बाजु में बैठी थी, पास में खाली झूला मेरी बेबसी पर हंसता पवन के झोंके के संग झूल रहा था। मैंने नर्स से पूछा क्या हुआ मुझे बेटा या बेटी कहाँ है मेरा बच्चा? नर्स ने सर झुकाते कहा मैडम आप आराम कीजिए आपको आराम की जरूरत है। मुझे शक हुआ और मैंने चिल्लाते हुए कहा बोलो कहाँ है मेरा बच्चा, और मैं खड़ी होने की कोशिश करने लगी तो नर्स ने कहा मैम आपके बच्चे ने पेट में ही दम तोड़ दिया था। बेटा था जो अब इस दुनिया में नहीं रहा।  

इतना सुनते ही मैं पागलों की तरह फूट फूटकर रोने लगी, मेरी आवाज़ सुनते ही राज अंदर आया और मुझे शांत कराने लगा। मैंने उसका चेहरा देखना भी गंवारा नहीं समझा, आँखें बंद करके उसकी और थूंकते हुए मैंने कहा दूर हो जाओ मेरी नजरों के सामने से धोखेबाज मेरे बच्चे के कातिल हो तुम, तुम्हारी शक्ल से भी नफ़रत है मुझे। और चले जाओ मेरी ज़िंदगी से राज बाहर चला गया। 

मेरे ख़्वाबों के, मेरे प्यार के, मेरी खुशियों के महल ढ़ह गए थे मैं कुछ भी सोचने की स्थिति में नहीं थी। उस दिन पापा की याद बहुत आ रही थी, लग रहा था कितने सही थे पापा। मेरी नासमझी का परिणाम मेरे सामने था। पर अब मुझे सोचना था अपनी आगे की ज़िंदगी के बारे में। तीन-चार दिन बाद थोड़ा ठीक होते ही मैं बिना किसी को कुछ बताए अस्पताल से भाग निकली और सीधा पापा के घर आ गई। एक असमंजस थी पापा वापस अपनाएंगे या नहीं, पर आख़िर माँ-बाप जो थे सबकुछ भुलाकर मुझे गले लगा लिया। मैंने सारी हकीकत बयाँ की, पापा ने कहा मैं कुछ नहीं बोलूंगा तुम खुद फैसला करो अब आगे तुम्हें क्या करना है, राज के पास वापस जाना है या तलाक लेना है। मैंने कुछ भी सोचे बगैर जवाब दे दिया नहीं पापा मैं राज को तलाक ज़िंदगी भर नहीं दूँगी, मैं तलाक दूँगी तो माला से शादी करेगा ना। तड़पते रहेंगे दोनों एक होने के लिए यही उसकी बेवफ़ाई की सज़ा है। 

मेरा तो रिश्तों पर से भरोसा ही उठ गया है तो अब दूसरी शादी तो कभी नहीं करनी। आपने इतना पढ़ाया है कुछ न कुछ काम कर लूँगी। पापा ने कहा ठीक है ये तुम्हारा ही घर है आराम से रहो। आज एक स्कूल में टीचर की नौकरी करके छोटे-छोटे बच्चों में अपने बच्चे को तलाशती रहती हूँ।

सुनने में आया है माला ने राज को छोड़ दिया है और किसी एक बच्चे के बाप और उनसे दस साल बड़े विधूर से शादी कर ली है, और राज को गुर्दे का कैंसर हो गया है अकेले ज़िंदगी बिता रहा है। पर मुझे किसी से कोई हमदर्दी नहीं, हर किसी को अपने पापों की सज़ा भुगतनी ही पड़ती है। इतनी कड़वाहट भरी है उस शख़्स के लिए दिल में कि आज भी जब कहीं राज नाम सुनती हूँ या उस बेवफ़ा की याद आती है तो मन का ज़ायका बिगड़ जाता है और थूक देती हूँ।



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