NOOR EY ISHAL

Drama Tragedy Action

4  

NOOR EY ISHAL

Drama Tragedy Action

बेगम की कोठी.. एक सुनसान स्थान

बेगम की कोठी.. एक सुनसान स्थान

4 mins
668


 नए ज़माने के लिये वह बस बेगम नाम की ही थीं। लेकिन अपनी कोठी के अंदर सही मायनों में बेगम थीं। सारा शहर बेगम की क़िस्मत पर रश्क करता था। "क्या क़िस्मत पायी है बेगम ने। देखा कितने नौकर चाकर हैं बेगम की कोठी में। यक़ीनन बेगम तो पलंग से पैर भी नहीं उतारती होंगी। भई जरूरत क्या है काम करने की। ऐसा चाहने वाला पति मिला है। बेगम के काम काज खुद करता है और घर के लिए नौकर लगा रखें हैं। "बस जितने मुँह उतनी ही बातें। वैसे देखा जाए तो जो बेगम की कोठी देखता था वह यही सब सोचने पर मजबूर हो जाता था। और साथ ही इस कोठी में रहने वाले लोगों की क़िस्मत पर भी रश्क करता था। पर कहते हैं ना के कब्र का हाल मुर्दा जानता है। वही कुछ बेगम की कोठी में रहने वालों के साथ था। सब बेगम राज में पिंजरे में फंसी चिडियों के समान महसूस करते थे जो खुले आसमान में उड़ने की ख़्वाहिश लिये हुए बस अपने पिंजरे में फड़फड़ाते रहते थे।

बेगम अपने पति और बच्चों के साथ बड़ी शान से इस कोठी में रहती थीं। बेटों की शादियाँ होने के बाद तो उस की शान ओ शौकत में और इजाफ़ा हो गया था। बहूओं पर हुक्मरानों की तरह दाब धौंस बेगम के रोज की दिनचर्या की आम बात थी। अंधेर नगरी चौपट राजा का कानून कोठी में था। बेगम के मायके वाले सर आंखों पर बिठाए जाते थे। बहूओं के घर वालों को इस बात की सजाएँ मिलती थीं के उन्होंने बेटियों को जन्म दिया है और अहसान इस बात का जताया जाता था कि कितने बड़े खानदान ने अपने बेटों से शादी करके उनकी बेटियों की क़िस्मतें बदल दी। पति बेगम के लिए सुबह उठते ही चाय लगाते थे।

अगर बेगम के लिये चाय ख़त्म हो गयी है और पति के लिए चाय है तो पति मोहब्बत में अपनी चाय बेगम के नाम कर देते थे। दिनभर बहूओं को बेगम की खिदमत करने के पाठ पढ़ाए जाते थे। बेगम की काम चोरी और आलस का ये आलम हो चुका था के धुले हुए अपने दो कपड़े तार पर फैलने में भी बेगम की कलाई में दर्द हो जाता था। बैठे बैठे वज़न बेगम को लगभग गोल कर चुका था। कुर्सी पर बैठकर घंटों टीवी सीरिअल देखने के बाद बेगम कराहते हुए अपने सूजन भरे पैर अपने चाहने वाले पति को दिखाती थीं तो पति घर भर में शोर मचा देते थे कि बेचारी। माँ कितनी तकलीफ में हैं। बेटों पर फौरन हड्डी वाले डॉक्टर को दिखाने का एक्सरे करने का और अच्छी खिलाई का आदेश आ जाता था। बेगम की आंखों पर चर्बी चढ़ चुकी थी बस अपने चोंचले अपने नखरे उठवाने उनकी आदत में शामिल हो चुका था।

बड़ी बहू पेट से थी। तीसरा महीना चल रहा था। बेगम की बहन के बेटे की शादी हुई थी। बेगम चाहती थी कि नयी बहू और उसकी दावत की जाये और साथ में बेगम के सारे खानदान के लोगों का खाना भी हो। बड़ी बहू ने मिन्नतें करते हुए लगातार तीन दिन मना किया के उसकी तबीयत ऐसी नहीं है कि वो ये सब खाना और दावत कर सके। चौथे दिन बेगम ने अपने बेटे के सामने ने दो चार घड़ियाली आंसू गिराये जिसका असर ये हुआ के बेटे ने फौरन दावत में आने वाले मेहमानों की लिस्ट बनाने का आदेश जारी कर दिया। पूरी दावत का काम बड़ी बहू के जिम्मे डाल बेगम सुबह से कमर दर्द का बहाना करके कमरा बंद करके सोती रहीं और बेगम के पति उनकी खिदमत करते रहे। बेचारी बहू शाम तक काम में अकेले लगी रही। शाम को बेगम मेहमानों के आने के बाद अपने कमरे से निकलीं।

बहू ने सारा काम किया। मेहमानों के आने के बाद बेगम की सारी बीमारी दूर हो चुकी थी। कहकहे और बातें ही बातें थीं फिर वक़्त का पहिया घूमा। दोनों बेटे नौकरियों के सिलसिले से बाहर चले गये। बहूएं भी बेगम द्वारा हद से ज़्यादा सताये जाने के कारण बेगम की कोठी में आने से कतराने लगी थीं। नए ज़माने में नौकर भी खत्म हुए। बेगम के पति की भी तबीयत खराब रहने लगी अब वो क्या बेगम के काम करते अब बेगम को ही उनकी खिदमत करनी पड़ रहीं थी। बेगम के आराम की रही सही कसर लॉक डाउन ने निकाल दी जिसकी बजह से अब सारे ही काम उनको करने पड रहे थे। कभी खुशियों और अपनों के साथ से रौशन और जगमगाती बेगम की कोठी आज एक सुनसान स्थान बन के रह गयी है।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama