Harish Sharma

Drama Tragedy

3.8  

Harish Sharma

Drama Tragedy

बदलाव

बदलाव

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मिस्टर लखानी सचिव पद से रिटायर हुए ही थे कि देश मे चुनाव का बिगुल बज गया। 

जिस राज्य में उन्होंने सचिव के तौर पर काम किया था, वहीं उन्हें सत्ता से बाहर की पार्टी ने टिकट दे दिया। 

मौजूदा सरकार के विरोध में हवा चल रही थी तो चुनाव का परिणाम भी उसके खिलाफ ही आया। मिस्टर लखानी लोक लहर की भावनाओं से ही कई नए नेताओं की तरह विजय श्री पा गए।

नई सरकार बदलाव का नारा लेकर सत्ता में आई थी। पार्टी भी नई ही थी और सत्तारूढ़ के विरोध की लहर उसके लिए वरदान साबित हुई थी। 

मिस्टर लखानी जा चुकी सरकार में भी विशेष सचिव के रूप में अपना डंका मनवा चुके थे। वे मार्केटिंग और प्रचार की कला में सिद्ध हस्त थे। वे आंकड़ों से खेलते थे।

उनका मानना था कि देश आंकड़ों से चलता है, वो सही होने चाहिए। पूरे विश्व में आंकड़ों की ही धूम थी, रेटिंग, वेटेज और टी आर पी विकास और खुशहाली की नई इबारतें लिख रहे थे।

मिस्टर लखानी ने भी यही किया, जो विभाग मिला उसके हर छोटे बड़े अधिकारी को आंकड़े और प्रतिशतता के लिए प्रतिबद्ध कर दिया। जमीनी हकीकत चाहे जो हो। साधन उपलब्ध हो या न हो , पर आंकड़े सही होने चाहिए थे। उनका ग्राफ आगे से बढ़ते हुए पूर्वोत्तर की ओर दिखना चाहिए था। सरकार के मुखिया उनकी इस कार्यकुशलता से प्रसन्न थे और उन्हें फ्री हैंड दे दिया था कि आपके विरोध का हक किसी को नहीं होगा, बस आप आंकड़ों का विकास कीजिये।

मिस्टर लखानी के भीतर लोगों को नायक फ़िल्म का अनिल कपूर दिखने लगा और जो लखानी के सिस्टम में काम कर रहे थे, वो उनके लिए अमरीश पुरी था। जरा सी चूक, आंकड़ों के विकास में कमी निचले कर्मचारियों के लिए भयभीत करने वाली कार्यवाही बन जाते थे। जिस तरह नायक का हीरो झट पट इस्तीफे टाइप करवाकर भेजता था, वैसे ही चलती हुई ऑनलाइन मीटिंग में टर्मिनेशन हो जाते थे। आखिरकार निचले हिस्सों से विरोध शुरू हुआ पर सरकार की फूल स्पोर्ट के चलते लखानी जी को कोई टच नही कर पाया। उनका दमन चक्र बढ़ता गया, भय ने आंकड़ों और विकास के ग्राफ को लगातार ऊंचाई की ओर धकेला। स्वच्छता अभियान और लोगों को मिलने वाली सुविधाओं की असली सच्चाई को नेस्तनाबूत करते और झुठलाते आंकड़ों ने समस्या को ऐसे ढक लिया जैसे गंजे आदमी को विग ढक लेता है। लखानी ने अफसरों को सर्वे करने के लिए बढ़िया देशों का टूर करवाया, अच्छे होटलों में ठहराया और ऐश करवाई। सभी अफसर अपने अपने काम में अपने मुखिया की हाँ में हां मिलाते रहे। वे जान चुके थे कि जगत मिथ्या है और अधिकारी सत्य। 

अधिकारी खुश है तो हम खुश हैं, उसे तकलीफ होगी तो हम भी तकलीफ में आ जायेंगे।

खैर आंकड़ों और अधिकारियों ने खूब विकास किया। नए नए प्रोजेक्ट लांच हुए। जैसे जैसे प्रोजेक्ट लांच होते, नई कार्ययोजनाओं के लिए ताबड़तोड़ ग्रांट जारी होती। समाचार पत्र इन ग्रांटों , अनुदानों के सरकारी विज्ञापनों से सजे रहते। सोशल मीडिया में भी खूब धूम मची। विरोध के स्वर पार्श्व में खोते से लगे। पर जब चुनाव हुए तो सरकार गिर गई। चुनाव से कुछ ही दिनों पहले लखानी जी अपने प्रिय मंत्री के साथ नई राजनीतिक पार्टी में आ गए। रिटायरमेंट के बाद और बन रही सम्भावनाओं के बाद उन्होंने भी दल बदली की कूटनीति अपनाई। 

नई सरकार बदलाव लाना चाहती थी। आंकड़े चमक रहे थे, जमीनी हकीकत मैली थी। एक बार फिर लखानी जी को ही उनके अनुभवों से एक उच्च पद नई सरकार में मिला। 

लखानी जी ने कुर्सी पर बैठते ही बयान जारी किया, "पिछली सरकार में अधिकारियों को दबाव के जरिये काम करवा कर झूठ को सच दिखाया गया। मैं खुद इस शोषण का हिस्सा रहा। नौकरी थी तो परिवार की जरूरतें एक आम आदमी की तरह पूरी करने का दबाव भी था। पर आत्मा हमेशा एक बोझ से लदी रही। एक झूठ के बोझ से। हम अपने ही लोगो के साथ अन्याय और झूठ के बीच पिसते रहे। पर अब हमारे नए नेता और सरकार जमीनी स्तर पर बदलाव लायेंगे। सभी घोटालों की जांच होगी और जनता का पैसा जनता पर खर्च होगा। "

जनता तो हमेशा बटीं हुई होती है, मीडिया उसके पूर्वाग्रहों को बदल देता है। क्रांति और बदलाव की लहर में लखानी जी भी जनता के सामने एक आदर्श नेता और अधिकारी सिद्ध हो गए। 

बदलाव की हवा में सब कुछ बदल गया। लोग एक बार फिर उम्मीद की चक्की में बैठ गए।


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