Ragini Ajay Pathak

Abstract Drama Tragedy

4.0  

Ragini Ajay Pathak

Abstract Drama Tragedy

बचत कैसे करूँ!!

बचत कैसे करूँ!!

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"अगर आज के जमाने में कंजूसों की लिस्ट बनती तो मेरे पतिदेव का नाम सबसे ऊपर होता। एक एक रुपये का हिसाब किताब लिखकर रखते है। हद है इस आदमी का पानी पूरी खाने के पैसों का हिसाब लिख दिया"

राखी ने अपने पति अमर के हिसाब किताब की डायरी के पन्नों को पलटते हुए कहा और गीत गुनगुनाने लगी

," हे भगवान जीए तो जीए कैसे?"

तभी राखी की सास गीताजी ने कहा, "बहू 2000 रुपये के फुटकर रखे है क्या तुमने?"

राखी ने सकुचाते हुए कहा, "मांजी चेंज तो मेरे पास नहीं है। लेकिन आप बताओ कहाँ पेमेंट करना है ? मैं ऑनलाइन ट्रांजेक्शन मेरा मतलब पेमेंट कर देती हूं।"

इधर रमा मन ही मन बुदबुदाते हुए बोलने लगी कि कैसे कहे कि अमर तो उसको एक रुपया भी कैश नहीं देते? तो चेंज क्या वो ख़ाक रखेगी ?आपकी ही किस्मत अच्छी है जो बाबूजी पूरी तनख्वाह आपको लाकर दे देते है। और हिसाब भी नहीं लेते आप से।

लेकिन चुप रही।

नहीं बहू मुझे अभी बाहर जाना था तो सोचा तुमने रखे होंगे कुछ चेंज पैसे तो मैं तुमसे ही ले लूँ। लेकिन कोई बात नहीं।

राखी के सास ससुर एक देवर जिसकी शादी अभी नहीं हुई थी उसके पास कुछ दिनों के लिए आए हुए थे। राखी के ससुर जी रेलवे में कर्मचारी थे।

अमर स्वभाव से कंजूस और दांतों के नीचे पैसे दबा कर रखता था क्या मजाल जो राखी एक रुपया भी चोरी चुपके इधर से उधर रख सके। सारी शॉपिंग ऑनलाइन यहाँ तक कि राशन भी ऑनलाइन आर्डर करने या शॉपिंग मॉल से छूट देखकर ही लेता था जिसमें कैश के बजाय ऑनलाइन पैसे देने हो। सब्जियां भी ऑनलाइन पैसे ले तो ले किस बहाने से ये सोच सोच कर ही उसका दिमाग़ खराब हो जाता।

राखी को अपनी निजी जरूरत की चीजों के लिए भी अमर से पूछकर ही लेना पड़ता था। वो भी ऑनलाइन ही पेमेंट करना होता ताकि राखी एक रुपया भी अपने पास ना रख सके। दोनों बेटियां अभी छोटी थी इसलिए वो कुछ नहीं समझती थी लेकिन उसकी चिंता ये थी कि अगर भविष्य में अमर ने अपनी आदत नहीं सुधारी तो वो अपने बच्चों के लिए कुछ नहीं कर पायेगी। अगर बेटियों ने कभी उससे कुछ मांगा तो वो कैसे उनकी मदद करेगी।

कभी कभी तो अमर की हरकतों को देखकर उसका रोने का मन करता। वो सोचने लगती भगवान मेरी किस्मत में ही ऐसा पति लिखना था। सोसायटी की सहेलियों के साथ वो कभी ना शॉपिंग जा पाती ना कहीं घूमने। क्योंकि अमर को राखी का यूं सहेलियों के साथ जाकर पैसे फालतू में खर्च करना गवारा नहीं था। और बिना पैसों के उनके साथ जाकर हर बार वो अपना तमाशा नहीं बनाना चाहती थी। उसकी सहेलियां उसको हमेशा कंजूस कहकर चिढ़ाती। तो उसको मन ही मन बहुत गुस्सा आता। वो सोचने लगती की इन्हें कैसे बताए कि उसका पति हर चीज अपने कंट्रोल में रखता है। फिर  अमर की हरकतों के बारे में वो सोचने लगती। और उसका दिल दुखी होकर गुनगुनाने लगता।

"कौन सुनेगा किसको सुनाए इसीलिए चुप रहते है।"

वो मन ही मन सोचती ऐसे ही कम परेशानी थी हम गृहणियों की जिंदगी में ऑनलाइन ट्रांजेक्शन की वजह से और बढ़ गयी। अब तो एक पैसा ना झूठ बोलकर पतियों से ले सकते है। ना उनकी निगाहों से बचाकर अपने लिए खरीद सकते है।

उसका दिल रो कर रह जाता।

राखी के सास ससुर स्वभाव से अच्छे थे। लेकिन इस सच से अनजान थे कि अमर राखी के साथ ऐसा व्यवहार करता है। रविवार के दिन सभी घर पर मौजूद थे। उसी दिन उसकी ननद भी घर पर उससे मिलने आयी। तो एक बार फिर उसकी सास ने उससे पैसों के लिए पूछा," तो उसने फिर वही जवाब दिया मांजी मेरे पास कैश पैसे नहीं है। अमर का क्रेडिट कार्ड है।"

इस बार उसकी सास ने कहा, "ये क्या बहु क्या तुम हर काम क्रेडिट कार्ड से करती हो ? क्या तुम अपने पास बचत करके एक भी पैसा कैश में नहीं रखती। अगर मान लो की कभी कोई अचानक जरूरत पड़ जाए तब क्या करोगी। ये आदत अच्छी नहीं अपने अंदर बचत की आदत डालो और कुछ पैसे बचत करना सीखो।"

तभी अमर ने बीच में तपाक से कहा, "मां जब इनको फालतू खर्च करने से फुर्सत मिले तब तो ये बचत करेंगी। इनको तो बस सहेलियों के साथ घूम फिर कर फालतू खर्च करना आता है। ये क्या जाने गृहिणी की बचत का मतलब बस सब कुछ आराम से मिल रहा है। तो इनको इससे क्या मतलब है। चार पैसा कमाती तब समझ आता कि कितनी मेहनत लगती है। हँसते हुए अमर ने सबके बीच राखी को नीचा दिखाते हुए कहा

आज अमर ने हद पार कर दी। तो राखी ने कहा, "माँजी आप बचत करके अपने पास कैश पैसे रख पाती है क्योंकि पापा जी आपको अपनी पूरी तनख्वाह लाकर दे देते है। लेकिन शादी के इतने सालों में मुझे आज तक अपनी तनख्वाह लाकर देना तो दूर की बात मुझे ये तक नहीं पता कि अमर को तनख्वाह मिलती कितनी है। दूध से लेकर राशन तक सब कुछ ये खुद लेकर आते है। मेरी जरूरत की चीज भी बहुत मिन्नतें करने पर जब इन्हें जरूरी लगती है तब ऑनलाइन ऑर्डर करके खुद मंगाते है। क्रेडिट कार्ड दे रखा है लेकिन उसको इस्तेमाल करने की सख्त पाबंदी है। इस्तेमाल करने से पहले मुझे इनसे पूछना पड़ेगा। तब ही मैं कही खर्च कर सकती हूं। तो अब आप ही बताइए कि मैं बचत कैसे करूँ।

राखी की बात सुनकर सब आश्चर्यचकित होकर अमर की तरफ देखने लगे। राखी की सास ससुर ने अमर को समझाया की ये वो गलत करता है उसको ऐसा नहीं करना चाहिए। उनके सामने तो उसने वादा कर लिया कि अब वो राखी को कुछ कैश पैसे देगा। लेकिन उनके जाने के बाद उसने राखी से कहा "क्या जरूरत थी तुम्हें ये सारी बाते मां पापा को बताने की और खुद को बेचारी साबित करने की? "

तब राखी ने कहा, "तब तुम्हें क्या जरूरत थी सबके बीच मेरा मजाक बनाने की ना तुम मेरा मजाक बनाते ना ही मुझे सच बोलना पड़ता।"

कहकर राखी वहाँ से चली गयी।


लेखिका के मनोभाव- सखियों लोग बड़ी आसानी से कह देते है कि तुम गृहिणी हो बचत करके या छुपा कर अपने पास कुछ पैसे रखने चाहिए। लेकिन जो महिलाएं ऐसा नहीं कर पाती उन को लोग कभी झूठी औरत, या इसकी तो आदत है रोने की, ऐसा कैसे हो सकता है कि पति कुछ ना दे कुछ तो पैसे देता ही होगा, असल में इसको बचत करनी आती ही नहीं इत्यादि और भी ना जाने क्या क्या। लेकिन इस समस्या को वही समझ सकता है जो इस समस्या से जूझ रहा हो। बाकी ऐसे लोगों के लिए दो कहावत बिल्कुल फिट बैठती है।


"जाके पैर ना फ़टे बेवाई ते का जाने पीर पराई"


दूसरे ऐसे लोग जो उपदेश देते गई कि ऐसा करो वैसा करो। जैसे रास्ते बताने वालों के लिए बस इतना ही


"पर उपदेश कुशल बहु तेरे "सखियों ये आज के आधुनिक डिजिटल युग की अधिकतर घरेलू औरतों की समस्या हो गयी है। जहाँ उन्हें अपनी हर छोटी से छोटी चीज को पति को बताकर या उनसे पूछकर करनी होती है। जिससे अब उनके पास खुद के खर्च के लिए पैसे नहीं रहते।

आप सबकी राय क्या कहती है। कृपया मुझे कमेंट के माध्यम से बताइयेगा।


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