"बचपन कि यादें "
"बचपन कि यादें "
वो भी क्या दिन थे ना कोई डर था।
ना किसी का खोप था।
मम्मी डांटे फटकारे
तो दादीजी कि गोंदी में जा बैठे।
पापाजी डांटे फटकारे
तो मम्मी जी कि गोंदी में जा बैठे।
जब खिलौना नहीं मिलता।
तो चिल्ला चिल्ला कर मांगते।
मेला ठिलोना लाओ।
तोतली भाषा बोलते।
मम्मी जी ही समझ पाती।
बाकी घरवालें तो मुंह ताकते रहते।
कहते यह चुप क्यों नहीं होता हैं।
इसे क्या चाहिए देकर चुप किजिएगा।
जीवन में बचपन सबसे अच्छा होता हैं।
यह बात बड़े होने पर अनुभव से पता चली।
जिन्दगी में कभी खुशी कभी ग़म आते हैं।
पर बचपन में जो ख़ुशी मां बाप ने दीं।
वह जिन्दगी में कभी वापिस नहीं देखी।
धन्य हैं माता-पिता जिन्हें कुदरत ने बच्चों को
खुशियों देने के लिए संसार में फरिसता बना के भेजा।
हमें माता-पिता के चरणों में स्वर्ग समझना चाहिए।
कभी माता-पिता को वृद्धाश्रमों में नहीं छोड़ना चाहिए।
क्योंकि छोटे से बड़े करने तक हम पर लाखों
माता-पिता के उपकार है।
कुछ उपकार उतारने कि कोशिश होनी चाहिए।