AMAN SINHA

Comedy Drama Inspirational

4  

AMAN SINHA

Comedy Drama Inspirational

बाबुजी ज़िंदाबद

बाबुजी ज़िंदाबद

5 mins
344


घर के आंगन मे बाबुजी का शव पडा हुआ था। कल देर रात उनकी हृदय घात के कारण स्वर्ग्वास हो गया। घर में मैं मेरी ब्याहता मेरे दो बच्चे और बाबुजी हीं रहते थे। माता जी का स्वर्गवास हुए लगभग तीस वर्ष हो चुके थे। मैं तब चौदह साल का ही था। तब से ही मुझे मेरे बाबुजी ने बडे प्रेम और स्नेह से पाला है। वो चाहते तो दुसरी शादी कर सकते थे मगर उन्होने कभी भी इसके बारे में सोचा तक नहीं। तब वो चौतीस वर्ष के रहे होंगे और मेरी माता जी लगभग तीस-बत्तीस वर्ष की ही थी। उनकी मृत्यु एक जंगली जानवर के काटने से हो गयी थी। जब उनपर उस जानवर ने हमला किया था तो तब मां किसी तरह से बचकर निकल आयी थी मगर उस जंगली की काटने के कारण मा के शरिर मे विष फैल गया और अगले दो दिनों में ही उनकी मृत्यु हो गयी।

मां के अक्समात मृत्यु ने बाबुजी को बुरी तरह से झकझोर दिया था। मगर मेरा मूंह देखकर उन्होने फिर से हिम्मत जुटाई और मेरे पालन पोषण मे लगे रहे। कई रिश्तेदारों ने उनसे दुसरी शादी करने की सलाह दी मगर उनके कान पर जूं तक ना रेंगी। मां के मरने के पहले कभी मैंने बाबुजी का ये रुप नहीं देखा था जो अब देखने को मिल रहा था। मां के जाने के बाद तीन महिनों तक बाबुजी बिल्कुल उदास रहते थे। हमेश प्रसन्न रहने वाला व्यक्ति अगर एकांत ले ले तो कैसा लगेगा। दिन के कई कई घंटे वो मां की आलमारी को सजाते हुए बिताते थे। मां के गहने, मां की सारियां यही सब निहारा करते थे।

जब से मां और बाबुजी की शादी हुई थी तब से बाबुजी ने मां को एक दिन के लिये भी अकेला नहीं रहने दिया था। जहाँ से मुझे मेरा बचपन याद है मेरे माता-पिता के बीच एक दिन भी मैने झगरा होते हुए नहीं देखा था। पिता जी जबतक घर मे रहते थे एक हंगामा लगा रहता था। वो कुछ ना कुछ करते ही रहते थे। कभी मां के पिछे तो कभी मेरे संग लगे रहना उनका रोज़ का हीं काम था। उन तीन महिनों मे मैंए देखा और समझा था की मेरे बाबुजी मेरी मां से कितना ज़्यादा प्यार करते थे। बाबुजी मेरे बाबुजी थे मगर मां के सामने वो भी एक बच्चे हीं थे। जब से उन्होने ब्याह किया था तबसे मेरी मां में वे भी अपनी मां ही ढूंढते रहे थे। इसिलिये जब मेरी मां का देहांत हुआ तो लगा जैसे इस घर से एक साथ दो माओं का साया ऊठ गया। जितना दु:ख मुझे मेरी मां को खोने का था उससे कहीं ज़्यादा दु:ख़ मेरे बाबुजी को था।

तभी वो उनको अपनी ज़िंदगी से कभी भी निकाल नही पाये। हाँ मगर मुझे मां की कमी महसुस भी नहीं होने दिया। मां के जाने के बाद बाबुजी मेरे बाबुजी नहीं बल्कि एक मित्र के जैसे रहने लगे। वो समझते थे की उस समय मेरे जिवन का बदलाव का समय है। एक ऐसा समय जब हर युवक के तन और मन में उर्जा का प्रवाह रहता है। जब वो दुनिया देखना और समझना चाहता है तब उसे अपने मां की सबसे ज्यादा जरूरत होती है क्युंकि वही उसे सही और गलत के बीच का अंतर समझा सकती है। अक्सर जवान बच्चे अपने पिता के साथ अपनी मन की बात बांटते हुए झिझकते है और मुझे ये झिझक ना झेलनी पडे इसिलिये उन्होने ने अपने व्यक्तित्व को ही बदल लिया। फिर एक दिन बाबुजी ने मुझे उनके जुते पहनकर घूमते देख लिया। वो ज़रा हंसे और बोले अब तुम इस लायक हो गये हो की मैं अपने मन की बात तुमसे कह सकता हूँ।

अब तुम मेरे बराबर हो चुके हो और मेरे जुते भी तुम्हारे पैरों मे अट रहे है तो अब तुम मेरे मित्र बनने के लायक हो गये हो। कल तक मैं तुम्हारा मित्र था किंतु आज से तुम भी मेरे मित्र हो गये हो। अब मैं भी अपने दिल की बातें तुमसे कह सकता हूँ और अपना दर्द हल्का कर सकता हूँ। तो कहो क्या तुम मेरे मित्र बनना पसंद करोगे। उस पल मुझे समझ मे नहीं आया की बाबुजी क्या कह रहे है। ये तो हमेशा से ही मेरे मित्र रहे है। मैंने अपनी हर परेशानी में हर खुशी में इन्हे हर बात बतायी है तो क्या तब भी मैं इनका मित्र नही था। मगर मेरे अंदर से एक आवाज आयी की कल तक सिर्फ मुझे इनकी जरूरत थी जो उन्होने बेझिझक पुरी की मगर अब शायद इन्हे भी मेरी जरुरत मेहसुस हो रही है तभी अब ये मुझसे मित्रता का प्रस्ताव रख रहे है।

एक ओव दिन था और एक आज का दिन है मेरा बाबुजी के सिवा ना तो कोई मित्र रहा और ना ही कोई सलाह कार। बाबुजी ने मुझे इस तरह से बडा किया था कि मुझे कभी भी बाहर के लोगों से मित्रता करने की आवश्यक्ता ही नही हुई। और आज मेरा वो एक लौता मित्र भी मुझे छोड के जा कुका था। मुझे पता कैसे नहीं चला की वो अब इस दुनिया मे नहीं रहे। अंतिम समय मे उन्होने जरूर मुझे पुकारा तो होगा। मैं शायद तब गहरी निद्रा मे रह्ह हूँगा। सुबह जब उन्हे कमरे मे मृत पाया तो अनायास ही उनके कुछ शब्द मेरे कानों मे गूंज उठे।

सुनो, मैंने तुमसे कहा था ना की जब ये शरिर शव मे बदल जाये तो तुम्हे क्या करना है। लगता है के तुम भूल गये हो।

चलो तुम्हे एक बार फिर से मैं याद दिला देता हूँ। सबसे पहले तो तुम्हे एक डाक्टर को बुलाना होगा मगर याद रहे की वो डाक्टर जनाना होनी चाहिये कोई मर्द नहीं। कम से कम मरने के बाद तो मुझे किसी स्त्री के शरिर का स्पर्श तो नसीब हो। जब से तुम्हारी मां गयी है तब से मैंने किसी परायी स्त्री के बारे मे सोचा तक नही हैं।

अच्छा ऐसे सवालिया नज़रों से मुझे देखने की जरूरत नहीं। मैंने तुम्हारी मां से वादा किया था की जीतेजी किसी भी पर स्त्री का स्पर्श भी नहीं करुंगा। हाँ उन्हे देखकर आंहे तो भर ही सकता हूँ। 

मैंने तेरी मां से किया हुआ अपना वादा निभाया और आगे भी जबतक ज़िंदा हूँ निभाता रहुंगा तो तुम्हारा मुझे इस तरग से देखना तो बिल्कुल भी सही नहीं है.....

अभी दो दिन पहले की ही तो बात है उन्होने मुझे मेरे पार बिठाकर ये सब बातें कहे थी। तब उनकी आंखों मे एक अजीब सी खुशी थी। उनकी आंखे हमेशा चमकती हे रहती थी। मेरे बाबुजी ने अपने ज़ीवन में कई परेशानियों का सामना किया था मगर उनके मरने के रात तक मैंए कभी भी उनके चेहरे मे परेशानी या चिंता की लकीर नहीं देखी। बडे से बडे मुसीबत को भी उन्होने इस क़दर सम्हाल लिया जैसे के ये उनके लिये किसी बच्चे का खेल हो। ज़िंदादिली तो ऐसी की उसके समने बडे-से-बडा मशखरा भी पानी भरने लगे।

जैसे जैसे मैं बडा हो रहा था मेरे और बाबुजी के बीच मित्रता का धागा और भी मज्बुत होता जा रहा था। मुझे याद है जिस दिन मेरा १९ जन्म दिवस था उस दिन उन्होने मुझे एक ऐसा तोहफा दिया था जो आम तौर पर कोई बाप अपने बेटे को देने के पहले सौ बार सोचेगा। सबसे पहले तो उन्होने मुझे उनके पिताजी याने के मेरे दादा जी ने उन्हे जो खास घडी दी थी उसे मेरे हाथों मे रखकर कहा - जिस दिन मैं १९ का हुआ था मेरे बाबुजी ने ये घडी मुझे दी थी और आज मैं तुम्हे दे रहा हूँ। ये हमारे खानदान की निशानी है इसे सम्हाल कर रखना। तुम्हारे दादाजी के प्राण बसते है इसमें और खते कहते खुद हीं बडी ज़ोर से हंसने लगे। मैं भी उनकी हालत देखकर ठहाके मार उठा। फिर उन्होने मुझे कहा चलो आज मैं तुम्हारे दोस्त बनने का आखिरी फर्ज़ भी पुरा कर देता हूँ।

फिर मेरा हाथ पकद कर वो मुझे गराज़ तक ले गये और मेरी ओर उनके बुल्लेट की चाभी फेंकते हुए कहा चल आज गाडी तु चला, आज हम दोनों भाई साथ मे पब जाकर दारु पियेंगे। कितने राज छुप रक्खे है इस इंसान ने, मैं तो बस सोचता ही रह गया। मुझे आज तक याद नही कि बीते पांच सालों मे मैंने कभी भी उन्हे शराब छुते हुए भी देखा हो। मगर आज ये आदमी मुझे लेकर सीधे पब जा रहा है। वैसे मैंने भी कभी शराब नहीं पी थी क्युंकि मुझे डर था कि बाबुजी को दू:ख होगा मगर अब जैसे लग रहा था मेरा डर तो जैसे कोरा डर ही था। मां के जाने के बाद बाबुजी का व्यक्तित्व जैसे हर साल रंग बदल रहा था। तो क्या बाबुजी ने कभी शराब पी भी है या बस मुझे प्रभावित करने के लिये ये सब स्वांग रच रहे है। उस रात को हम दोनो ने पब मे बहुत मस्ती की। हम दोनो ने एक ही टेबल पर बैठ कर बीयर की बोतल खोली और एक सांस मे गटक गये। तीसरे बोतल तक आते आते मैं तो पुरी तरह से आसमान मे उडने लगा था। मेरी चारों ओर बस रंग-बिरंगे फूल दिख रहे थे। बाबुजी कभी मेरे पास आ जाते और कभी दूर नजर आते। मुझे एक कदम के बाद दुसरे कदम उठाने मे कई घंटो का समय लग रहा था। पब मे घुसते समय वहाँ जोरो का संगीत बज रहा था जो की अचानक से शांत हो गया था। मैं खडा हुआ तो लगा जैसे सारा का सारा पब मुझसे दूर भागते जा रहा है। ये सब देख कर पहले मैं हंसा मगर अगले ही क्षण मैं रोने भी लगा। मुझे मेरी मां की याद आ रही थी। बाबुजी वही दूर बिल्कुल शांत बैठे थे। बिल्कुल बुद्ध की तरह।

मेरा मन किया जाकर उनके चरणो में बैठ जाऊं मगर ये क्या वो तो अब भी मुझसे दूर् होते जा रहे थे। मुझे उनके माथे के पीछे एक उजला चक्र दिख रहा था। वो बडे सौम्य मन से इस मधुशाला मे भी ज्ञान की लौ जला रहे थे। फिर अचानक से वो दिखने बंद हो गये और मुझे मेरी मां की आवाज सुनाई दि। वो मुझे डांट रही थी। बिल्कुल उसी तरह जैसे जब वो ज़िंदा थी और मुझे मेरी गलती पर डांट सुनाती थी। मैं पिछे मुडा और मां को देख कर रोने लगा। मां तुम मुझे छोड कर क्युं चली गयी मां। मैं तुम्हारे बिना रही रह सकता। तभी मेरा शरिर बिल्कुल हल्का हो गया और मैं हवा मे ऊडने लगा। पब की लाइट्स मेरे पिछे भागने लगी। दरवाजा धीरे-धीरे मेरे पास आया और फिर मेरे सिर के उपर से होते हुए मेरे पिछे निकल गया।

फिर एक दम से मैं ज़मीन पर गिर पडा, धप्प। कानों में जैसे एक साथ हज़ारों चिडियां चहक उठी हो। मैं तो सीधा ही खडा था मगर पता नहीं क्युं मेरे आस पास की सभी चीजें मेरे चारों ओर चक्कर लगा रहे थे। ये बाबुजी की आवाज़ को क्या हो गया है। वो अचानक से इतने मोटी आवाज़ मे बात क्युं कर रहे है। मुझे उनके पास जाना चाहिये। मगर जितना मैं उनके पास जा रहा हूँ वो मुझसे और भी दूर क्युं होते जा रहे है। लगता है इस जगह पर भूकंप आया है। सब लोग इतना हिल क्युं रहे है। ये दीवार तो मेरे सर पर टूट पडेगी मुझे इससे दूर जाना चाहिये| बाबुजी….. बाबुजी...... आप मेरी बात क्युं नहीं सुन रहे है? इधर देखिये, इधर.. इधर.. ये बाबुजी मेरी तरफ देख क्युं नही रहे। लगता है उनको शराब चढ गयी है। यही होता है जब पहली बार कोई शरिफ आदमी शराब पीता है। अब लगता है मुझे हीं इनको लेकर घर जाना होगा। बाबुजी.. चलिये बाबुजी.. हमें घर जाना है। आप घबराना मत बाबुजी गाडी मैं ही चलाउंगा। फिकर नॉट बाबु...। 

अगली सुबह जब मेरी निंद खुली तो मैंए देखा दिन के बारह बज रहे थे। सर दर्द से फटा जा रहा था। कल रात की आखिरी याददाश्त जो मुझे थी वो तब तक की थी जब तक मैंने बीयर की दुसरी बोतल पी थी। उसके बाद क्या हुआ कुछ याद ही नहीं आ रहा था। मैं और मेरे बाबाजी दोनों ही आमने सामने पडे हुए थे। हम दोनों ही कपडे जुते सब पहने हुये हीं सो गये थे। घर बिल्कुल बिखरा पडा था। तभी बाबुजी उठ बैठे और मेरे पीठ पर हाथ रखते हुए कहा, तुने आज के पहले कभी पी नही थी क्या? मुझे पता नहीं था की तीन बोतल के बाद तु इतना ड्रामा करेगा। पता होता तो तुझे घर पर ही पिलाता। सारा मजा किर्किरा कर दिया तुने। पता है तुने पिछली रात क्या ड्रामा किया? जा जाकर मूंह धोकर आ और फिर आराम से देखना तेरा पुरा ड्रामा, मैंने सबका विडिओ बना लिया है। जब तेरा बेटा होगा ना तो उसे ये दिखाउंगा अओर कहूँगा कि देख तेरा बाप कैसा लडका था। जब मैं मूंह धोकर आया तो उन्होने पहले तो मुझे निंबू पानी दिया और फिर कहा देख बेटा मैं जानता हूँ की तुने कभी शराब नहीं पी है मगर तुझे शराब क्युं नही पिनी चाहिये ये समझाना जरूरी था। अब तु बडा हो गया है, बाहर जायेगा और नये दोस्त बनायेगा और उनके साथ उनकी आदते भी लेगा मगर ये विडियो देखने के बाद तु ये समझ जायेग की शराब पिने के बाद इंसान क्या से क्या बन जाता है। तुझे इसका अनुभव होना भी जरुरी इसलिये मैंने तुझे कल शराब पिलाई थी। मैंने भी तेरे मां के जाने के बाद कभी इसे हाथ तक नहीं लगाया था तो कल मैं भी थोडा बहक गया था मगर मैं काबू मे था। शराब से ये तुम्हारी पहली मुलाकात है मगर मैं ये चाहता हूँ यही मुलाकात आखिरी भी हो जाये तो बहुत अच्छा है। बाकी सब तुम्हारे उपर है, हाँ मगर मैं ये नही पसंद नही करुंगा की तुम मुझसे झूठ बोलकर शराब पियो और इसी शर्म को हटाने के लिये मैने तुम्हारे साथ शराब पी है।

भला कौन बाप अपने बेटे के साथ इस हद तक दोस्ती निभा सकता है। सही गलत का फर्क़ समझाने का इससे बेहतर तरिका क्या हो सकता है की कोई आपको किसी काम के प्रभाव का एक जीता जागता उदाहरण ही आपके सामने रख दे और इतने से भी काम ना बने तो आपको उसका हिस्सा भी बना दे। ऐसे थे मेरे बाबुजी जो आज अपने अंतिम यात्रा की राह देख रहे थे। उनका शरिर तो पार्थिव हो चुका था मगर मुझे पुरा भरोसा है की वो अब भी मुझे करीब से देख रहे होंगे। और अगर देख रहे होंगे तो ये कह भी रहे होंगे - जा भागकर अभी जा और पडोस के डाक्टरनी को बुलाकर लेता आ। और सुन उसे ही बुलाना, मुझे वो बडी अच्छी लगती है। मैंने उसे कितनी ही बार देखा है अस्पताल जाते हुए। अच्छी डाक्टर है वो, उसे ही मेरे मरने का प्रमाण पत्र लिखना होगा। जब वो मेरे हाथों को छुयेगी तो मेरी नब्ज़ फिर से चलने लगेगी। अब सोच क्या रहा है? जा जाकर उसे लेता आ। 

(खुद में ही हसते हुए) तेरी मां तो चली गयी, जाने स्वर्ग के किस देवता के साथ अपने दिन बिता रही होगी। (फिर से खुद में) मेरे जैसे आदमी को इतने दिनों तक झेला था तो स्वर्ग के अलावा कोई जगह हो ही नही सकती उसके लिये। अब जब मैं भी चल पडा हूँ तो उससे मिलने तो मेरे पास उसे जलाने के लिये कोई एक कहानी तो होनी ही चाहिये ना? ताकि जब मैं उससे मिलूं और उसे किसी और देवता के साथ देखूं तो मुझे भी बुरा ना लगे और उसे भी मुझे अकेला छोड कर जाने का दू:ख थोडा कम हो। क्या है ना जब तक तेरी मां ज़िंदा रही कभी मुझे उसे इर्ष्या मे देखने का मौका नहीं मिला। लेकिन अबकी बार जब वो मुझसे मिलेगी तो उसे बहुत जलाउंगा मैं। हाँ थोडी देर मे मैं उसे मना भी लुंगा क्युंकी इतने दिनों के बाद उससे मिलुंगा तो इस जुदाई की सभी बातें उसे बतानी है। कैसे मैंने उसके बिना ये दिन काटे? और कैसे उससे मिलने की आस मे ये उमर बितायी है। मैं उसके जैसा निर्दयी नही जो उसके लिये इस लोक से कुछ लेकर नहीं जाऊं। मैं लेकर जाउंगा तेरी बडे होने की खुशियां, तेरा परिवार बनाने के किस्से, तेरे बच्चे की किल्कारियां और मेरे जीवन के कुछ एक याद्गार पल जो मैं उसके साथ मिलकर बाटुंगा। लेकिन ये तो तब होगा ना जब तु मुझे इस लोक से मुक्ति दिलायेगा। और मुक्ति तब मिलेगी जब मेरी इच्छा पूरी होगी। और मेरी इच्छा कैसे पूरी होगी अगर तु मेरी एक मात्र विनती को नहीं मानेगा। तो जा, जाकर डाक्टरनी लो बुला ला।

जैसे ही यह बात मुझे याद पड़ी मैं झट से भागा बगल के मकान से डॉक्टरनी को बुलाने के लिए डॉक्टरनी चाची आज भी दिखने में वैसे ही मस्त थी मस्त  हां हां बिल्कुल मस्त  यह मस्त नाम भी मेरे बाबूजी का ही दिया हुआ है अक्सर जब भी कभी कभी हम बाहर निकला करते और आते जाते समय डॉक्टरनी आंटी से मुलाकात हो जाती तो मेरे बाबूजी मुझसे  कहा करते थे लेकिन आज भी कितनी मस्त लगती है देखने में।  पहले तो मैं थोड़ा  शर्मा जाता था और जब बाबूजी मुझे इस तरह से बार-बार कहने लगे तो मुझे एहसास हुआ कि शायद बाबूजी अब मुझ में अपना दोस्त खोज रहे थे ऐसा दोस्त से वह अपने मन की बातें के साथ मस्ती कर सके मजाक कर सके  अपने अकेलेपन को मिटाने का एक साथी मुझे एहसास हुआ कि  अब मैं भी इतना बड़ा हो चुका हूं  कि बाबूजी के मजाक का हिस्सा बन सके और उनके मजाक में अपना योगदान भी दे सकें तो मैंने उनकी बातों को हल्के में लेना शुरू कर दिया।  खुद मेरे बाबूजी भी कहा करते थे कि देखो बेटा अब तुम जवान हो चुके हो जवान लोगों में तुम्हारा उठना बैठना होगा नए दोस्तों के साथ जब दोगे दोगे और वह कुछ मजाक कर देंगे और उस मजाक को अगर तुम मजाक में ना ले सके या फिर उस मजाक से तुम अगर उत्तेजित हो गए तो फिर दोस्ती निभा पाओगे इसलिए ऐसी बातों को ज्यादा गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। 

यही सब बातें मेरे दिमाग में चल रही थी और मैं तेज कदमों से डॉक्टरनी आंटी के घर की तरफ बढ़ता जा रहा है दरवाजे तक पहुंचकर जैसे ही मैंने दस्तक की  सामने से वही बाहर  आईं।  उनकी यही होगी लेकिन अभी बिल्कुल चमकदार है आज भी वह पूरे साधु श्रृंगार के साथ रहती हैं डॉक्टरनी है तो पैसों की कमी तो बिल्कुल भी नहीं  वह अपना खास ख्याल रखती थी उनके पति भी उनके हुस्न के दीवाने थे।  मेरे बाबूजी और उनके पति दोनों मित्र थे दोनों का आपस में बड़ा लगाओ जब मैं उनके घर तक पहुंचा और डॉक्टर ने देखा तो ऐसा लगा जैसे वह पहले से ही सब कुछ जानती थी क्योंकि मुझे आते देखकर उन्होंने सबसे पहला सवाल जो पूछा वह यह था कि क्या तुम्हारे बाबू जी ठीक है यह सुनकर मुझे बड़ा अजीब लगा क्योंकि  मैं समझ ही नहीं पाया कि उन्हें मेरे बाबूजी की खबर कैसे पहुंच गई?  शायद ऐसे ही पूछ लिया लेकिन लेकिन मेरा यह  अगले ही छूट गया क्योंकि उन्होंने सवाल ही ऐसा पूछ लिया वह बोली कि कल रात मैंने एक सपना देखा सपने में तुम्हारे बाबूजी को बिस्तर पर पड़े पड़े छटपटाते देखा जैसे मानो वह बिस्तर से बाहर निकल कर तुम्हें आवाज लगाने की कोशिश कर रहे हो पसीने से लथपथ कपड़े बिल्कुल भीगे हुए सांस लेने में तकलीफ हो रही थी और उनका एक हाथ उनकी छाती पर था मुझे लगा शायद उन्हें खाद का दौरा पड़ा है ठीक तो है ना?  मैं समझ ही नहीं पाया कि मेरे बाबूजी और डॉक्टरनी के बीच इतना अगाध प्रेम था कि मेरे बाबूजी मरने के पहले मेरे नहीं बल्कि उनके सपने में आए थे।  एक बार तो बाबूजी को कोसने काजी किया लेकिन फिर लगा चलो सही है जो आदमी जिंदगी भर जीते जी अपने हिस्से की वफादारी  निभाता है उसे मरने के बाद तो अपने हिस्से की  अय्याशी  भी नसीब होनी ही चाहिए।  शायद इसी वजह से बाबू जी ने मुझे  मेरे कानों में यह बोल दिया कि जा और डॉक्टरनी आरती को बुला कर ला।  मैंने कहा हां डॉक्टर नहीं आंटी बाबू जी नहीं रहे कल रात शायद उन्हें हाथी आया था जिस तरह का हाल आप बता रही है बहुत कुछ वैसा ही हाल उनका हुआ है पता नहीं आपको यह खबर कैसे मिल गई आप चलकर क्या एक बार देखेंगे उन्हें और क्या आप उनका डेथ सर्टिफिकेट बना देंगे ताकि मैं उनका क्रम आसानी से कर सकूं।  और आपको जानकर यह हैरानी ही होगी कि मेरे बाबूजी भी यही चाहते थे कि मरने के बाद उनका शरीर सबसे पहले आप ही स्पष्ट करें ताकि उन्हें उनके हिस्से की अय्याशी का थोड़ा सा खतरा तो मिल ही जाए मेरी बात सुनकर एक बार दो डॉक्टरनी  आंटी ने नाक भौं सिकोड़ना लेकिन फिर यह सोच कर कि जो मर चुका उसके बारे में बुरा मान कर दी क्या ही करना है?  थोड़ा हंसते हुए बोली बड़े नसीब से तुम्हारे बाबू जी मुझे पता था कि जब तक वह जिंदा थे मुझे ही निहारा करते थे अक्सर जब हमारे घर पर चाय पार्टी होती थी तो वह ना चाहते हुए भी चार-पांच कप चाय तो सिर्फ इसीलिए पी जाते थे ताकि हर एक बार चाय देने के लिए मुझे ही आना पड़े तुम्हारे अंकल भी यह सारी बातें जानते थे मगर दोनों बुड्ढे आपस में ही बातें कर कर खुश हो गया करते थे पता नहीं है तो मन  मैं ही लड्डू खा लेते हैं। तू रुक मैं चलती हूं जरा अपना थैला लेता हूं और देखने की मशीन भी तो लानी पड़ेगी ताकि जब उन्हें स्पर्श ही करना है तो जरा तबीयत से स्पष्ट किया जाए ताकि बुड्ढे की आत्मा को शांति तो मिले।  मुझे पता है वह ऐसा क्यों चाहते हैं वह चाहते हैं कि जब वह तेरी मां से ऊपर मिले तो उन्हें जलाने की बात कर सके कोई कहानी अपने साथ लेकर जा सके और स्वर्ग में जो तेरी मां इतने दिनों से ऐसो आराम से जी रही है उसके जीवन में थोड़ा सा  कलह जरूर मच जाए। इतना कहते हुए डॉक्टर नहीं आती घर के अंदर चली गई और जाते-जाते अंकल को कहती हुई गई कि देखो तुम्हारे बुड्ढे दोस्त का इंतकाल हो चुका है जाओ और जाकर जनाजे में जाने की तैयारी करो देखो मैं चाहती हूं कि उसके जनाजे में एक कंधा तुम्हारा जरूर होना चाहिए इस बात का ध्यान रखें ताकि मरते वक्त उसे यह सुकून रहे कि उसका यह दूर था जिसने उसके अंतिम सफर में भी उसका साथ नहीं छोड़ा।

 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Comedy