अर्द्धांगिनी
अर्द्धांगिनी
अर्द्धांगिनी शब्द का शाब्दिक अर्थ है किसी का आधा अंग इसलिए पत्नियों को उनके पति की अर्द्धांगिनी माना जाता हैं अर्थात पति के सुख-दुख में आधे की हिस्सेदारी होती हैं उनकी । इसलिए देश की तमाम पत्नियां अर्द्धांगिनी होती हैं सिवाय सैनिकों की पत्नियों की । किसी भी सैनिक की अपने पति की अर्द्धांगिनी नहीं अपितु उनकी संपूर्ण अंग होती हैं । सैनिकों की पत्नी को उनके सुहागरात में सिर्फ फूलों का गुलदस्ता और सोने चांदी के ज़ेवर ही नहीं दिए जाते हैं बल्कि उनके मेंहदी लगे कोमल से हाथों में जिसमें कुछ देर पहले ही आम के पल्लव का कंगन पहनाया गया होता है । दोहरी जिम्मेदारी सौंपी जाती है वो सैनिक की पत्नी घर की बहू ही नहीं बेटा भी होंगी । ननद देवरों की भाभी ही नहीं भैया भी होंगी और जब उनके बच्चें होगें तब उन बच्चों की मां के साथ साथ पिता की भी भूमिका निभाएंगी । सैनिक की पत्नी अपने पति की तमाम जिम्मेदारियों की जवाबदेह होती हैं । सुख के पल भले ही कम मिलें लेकिन संघर्ष के अनगिनत दिन मिलते हैं । इंतजार इंतजार और फिर इंतजार .....। होली दीवाली तीज़ त्यौहार तो जैसे मनाने का उन्हें हक ही नहीं होता और ना उनके यादगार दिनों को सेलिब्रेट करने की छुट्टी मिलती है । जब कभी तिलक लगाकर भेजती हैं उन्हें युद्ध के मैदान या दुश्मन देश के सीमाओं पर तब उन्हें नहीं पता होता की अगली मुलाकात जब होगी तो उनके जांबाज सिपाही अपने पांव पर चल कर आएंगे या किसी के कंधे पर ..... अनिश्चितता के इस कठिन लम्हों में भी चेहरे पर मुस्कराहट लेकर विदा करती हैं ताकि विषम से विषम परिस्थितियों में भी उनका यह चेहरा याद रहें जिसमें पूरा विश्वास है लौट कर आने का और पत्नी के आंखों में झलकता यही विश्वास उन्हें युद्ध के वक्त प्रेरणा देगा । उन्हें जीतना होगा और लौट कर घर जाना होगा जहां उनकी पत्नी उनके इंतजार में न जाने कितने मौके पर खरीदें गये उपहार इकट्ठा करके रखी होंगी । ननद की दी हुई भाई दूज के गोले से लेकर छठ पूजा में मां के हाथों से चढ़ाया गया बद्दी और नारियल । उनके जन्मदिन पर लिए गया एक विशेष उपहार और शादी की सालगिरह पर लिखी गई कविता ...... न जाने कितने सारे सौगात सबसे छुपा कर रखती हैं । मन की सारी बातें फोन पर बताना मुमकिन नहीं होता तो उसे खतों में लिखकर रखती हैं । जब सीमाओं पर तैनात होते हैं तब सैनिकों के खत भी खुले हुए मिलते हैं तो वो मोहब्बती बातों वाले खत भेजें भी नहीं जाते ।
सैनिकों की पत्नियां आम महिलाओं जैसी नहीं होती वो खुद भी एक सैनिक होती हैं और उसी कठोर अनुशासन का पालन करते हुए जीवन व्यतीत करती हैं । पति से दूर रहकर सास ससुर ननद देवरों के साथ अपने बच्चों की जिम्मेदारी उठाने के लिए उन्हें एक कठोर आवरण ओढ़ना ही पड़ता है । इस पुरूष प्रधान समाज में अपने परिवार को सुरक्षित और सम्मानित रखने के लिए उन्हें भी एक योद्धा बनना पड़ता है । हर वक्त चौकन्ना अपनी हर जिम्मेदारियों के बोझ से दबी अगर मन के कोने में कोई अरमान मचलने लगे तो उसे बड़ी बेदर्दी से मसलना पड़ता है । क्योंकि वह कोई आम इंसान नहीं एक सैनिक की संपूर्ण अंग होती हैं दोहरी जिंदगी जीना उनकी नियति होती है ।
बहुत खुशनसीब होती हैं वो पत्नियां जिनके पति दुश्मन देश के सीमाओं से अपने पैरों पर चल कर आतें हैं और वो महान वीरांगना होती हैं जिनके पति शहीद हो जाते हैं । पति के साथ वो भी सम्मानित होती है उनका योगदान तो और बड़ा हो जाता है जिन्होंने अपने सुहाग की कुर्बानी दी है । 1971 का विजय दिवस हो या 1999 का कारगिल विजय दिवस । हमारे जांबाज सैनिकों के शहादत के साथ उनकी पत्नियों का भी योगदान स्मरणीय रहेगा ।