अपना काम ठीक से करो
अपना काम ठीक से करो
एक बार की बात है। विवाह के कुछ समय बाद मैं अपनी मॉं से मिलने गई। इधर- उधर की बात के बाद उन्होंने मुझसे पूछा- “ अब क्या कर रही हो ?”
मैंने कहा कि “हिन्दी का डिपार्टमेंट एग्ज़ाम था, वह देकर आ रही हूँ , पता नहीं रिज़ल्ट कैसा आयेगा”।
उन्होंने कहा-“ उसमें कहना क्या है, तुम्हारे नम्बर तो अच्छे आयेंगे, उसमें भी अव्वल आओगी। “
मैंने थोड़ा उदासी के स्वर में कहा-“ मैंने तैयारी पूरी नहीं की थी। हिन्दी का एग्ज़ाम था, ऐसे ही बस इम्तहान दे दिया। “
मॉं ने पूछा-“ तैयारी क्यों नहीं की थी ?”
मैं बोली-“ क्योंकि उसमें बस पास हो जाना था। अच्छे नम्बर लाकर भी क्या करना था । नहीं पास होने पर भी दोबारा दे सकते हैं।
सुनकर मॉं को अच्छा नहीं लगा ,कहने लगीं-“ जो काम करो पूरी तैयारी से ,पूरे मन से करो। अभी तक तुम अच्छा करती आईं हो। हाईस्कूल से एम.ए़ . तक फ़र्स्ट डिविज़न लाई हो, प्रतियोगिता परीक्षा में अव्वल आई हो। ऐसी लापरवाही ठीक नहीं। अपना एक स्टैण्डर्ड हो जाता है, उसे बनाये रखना चाहिये। जो भी काम करो उसमें तुम्हारी छाप होनी चाहिये कि अव्वल दर्जे का होगा। “
मॉं का कहना सही था। उन्होंने मुझे चेता दिया। मैं सच में बिना तैयारी के वह परीक्षा देकर आई थी, उसे गंभीरता से नहीं लिया था।
मैंने मॉं से कहा- आपकी बात याद रखूँगी, जो भी काम करूँगी, अपने स्तर से पूरी सावधानी से करूँगी।
मॉं की बात मेरे लिये प्रेरणास्रोत बन गई। अब हर काम ठीक तरीक़े से और पूरे मन से सावधानी से करने का स्वभाव बना लिया।
ससुराल सास के पास कुछ दिन के लिये गई। एक बार दोपहर के खाने के लिये वे रसोई में चावल चुन रही थीं। मैंने जाकर कहा-“ लाइये, चावल मैं चुन देती हूँ।”
उन्होंने ना ना करते भी थाली मुझे पकड़ा दी। मुझे मॉं की सीख याद थी। मैंने अच्छे से चावल चुने। उसमें सुरसुली बहुत थीं। बार बार फटकना और चुनना पड़ा। मैं भी लगी रही बढ़िया से सब साफ़ कर चुना और थाली सासु जी को पकड़ा दी। उन्होंने थोड़ा उलट पलट कर देखा और चावल धोकर बनने के लिये चढ़ा दिये।
दूसरे दिन उन्होंने चावल स्वयं ही मुझे चुनने के लिये दे दिये। मैं चावल चुन ही रही थी कि इनके मामा जी की लड़की आ गई और मुझसे बोली-“ लाओ भाभी, चावल मैं चुनती हूँ। “
उन्होंने मेरे मना करते करते भी थाली मुझसे ले ली, एक तरह से छीन ही ली और चावल चुनकर रख दिये।
मेरी सास जी आईं और चावल बनाने के लिये धोने लगीं। फिर मुझसे बोलीं-“ आज चावल तुमने कैसे चुने। कल तुमने बहुत अच्छे चुने थे। आज चावलों में सुरसुली भरी हुई हैं।”
मैंने कहा- आज जो जीजी आई हुई हैं, उन्होंने मेरे से थाली ले ली , उन्होंने ही बाक़ी के चुने। “
सासुजी ने कहा- “ तुम्हें उन्हें नहीं देना था। वह ठीक से काम नहीं करती। उसे जल्दबाज़ी बहुत है। तुमने कल बहुत अच्छे चावल चुने थे, इसीलिये आज तुम्हें चुनने के लिये दिये थे। “
गलती मेरी थी। जो काम मुझे सौंपा गया था, वह मुझे ही करना चाहिये था। उसे दूसरे को देने से शालीनतापूर्वक मना कर देना चाहिये था।
मुझे दूसरी सीख यह मिली कि अपने ज़िम्मे जो काम दिया गया है, उसे दूसरे को मत दो। उस काम को स्वयं करो। या जिसने काम सौंपा है, उसे बताओ, उसकी अनुमति लो।
अपने ज़िम्मे का काम स्वयं पूरी सावधानी से पूरी लगन से करो, ये दो बातें हमेशा मेरी पथप्रदर्शक रहीं। अपने ज़िम्मे का काम दूसरे पर नहीं छोड़ना चाहिये, क्योंकि तुम्हें नहीं पता वह कैसा काम करेगा। वह काम बिगाड़ भी सकता है। जबकि ज़िम्मेदारी तुम्हारी है। इसलिये अपने ज़िम्मे का काम अपनी पूरी योग्यता से स्वयं करो।