Arunima Thakur

Abstract Inspirational

4.8  

Arunima Thakur

Abstract Inspirational

अंतिम संस्कार

अंतिम संस्कार

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"हैलो मम्मी ! हाँ मैं अच्छा हूँ। पापा कैसे है ? हाँ, फ़ोन स्पीकर पर डाल दो तो आप दोनों से साथ में ही बात हो जाएगी" सुयश दूसरे शहर से अपने मम्मी पापा से फ़ोन पर बातें करते हुए बोला।

"बेटा ! बहू और अंकु कैसे हैं ? तेरा काम कैसा चल रहा है ? मम्मी ने पूछा। तभी पापा ने बोला, "कल आयुष के दादाजी आए थे तेरे काम के बारे में बता रहे थे । तुनें नौकरी छोड़ कर ....." । 

उनकी बात काटते हुए सुयश बोला, "अरे पापा कोई काम अच्छा या बुरा नहीं होता है । वह जलते हैं मेरी कंपनी की तरक्की से। और फिर मैं तो अपना पुश्तैनी काम ही कर रहा हूँ। आप नहीं पर हमारे दादा परदादा तो पंडित थे और ...."।  

"पर बेटा अच्छी भली नौकरी छोड़ कर ...."

"अरे पापा आपको मालूम नहीं है । यहां बड़े शहरों में अपनी मिट्टी से दूर लोगों को कितनी मुश्किल उठानी पड़ती है। बच्चे जानते ही नहीं हैं इन सब चीजों के बारे में, कैसे करना है ? क्या करना है ? जब परिवार दुख में हो तब इन सब चीजों का इंतजाम करना वह भी परदेश में बहुत कठिन होता है"। 

"अरे बेटा तो हम कुछ कहा कह रहे हैं । हमें तो बुरा लगा कि तुमने हमें बताया भी नहीं", सुयश के मम्मी पापा एक साथ बोले ।

 "वह क्या है ना पापा, नया विचार था। चलता या नहीं चलता । पता नहीं, बस इसलिए नहीं बताया । पापा आप विश्वास नहीं करोगे दो साल में मेरी कंपनी का टर्नओवर करोड़ों के ऊपर पहुँच गया है । पहले मैं एक छोटा सा कर्मचारी था, आज बहुत सारे लोग मेरे अधीनस्थ काम करते हैं"। 

"हाँ बेटा वह तो ठीक है। पर इतना पढ़ लिख कर यही करना है तो यहीं आ जाओं"। 

"क्या पापा आप ही तो कहते थे पढ़ाई ज्ञान प्राप्त करने के लिए की जाती है नौकरी के लिए नहीं और पापा वह छोटा शहर है वहाँ यह सब चीजें आराम से हो जाती है। लोग एक दूसरे को जानते हैं, मदद कर देते हैं । यहाँ बड़े शहरों में जहां अधिकांश लोग अपनी जड़ों को छोड़कर आए हैं उनके लिए यह सब करना बड़ा मुश्किल हो जाता है । वैसे पापा मैं भी तो आपसे यही कहता हूँ वहां अकेले रहते हो आप दोनों। यहाँ हमारे पास क्यों नही आ जाते"। 

बेटा वहाँ बड़ा अजनबीपन लगता है । शहर तो शहर, वहाँ बोली भाषा, खान पान सब अनजाना है। ना हम किसी को जानते ना कोई हमें। सारी जिंदगी इसी शहर में रहें है सारे रिश्तेदार, दोस्त यहीं है, तो यह शहर छूटता ही नही"।

"वहीं तो बात है, छोटे शहरों में उन्नति के अवसर ही नही है। ना मैं वहाँ आ सकता हूँ ना आप यहाँ।" 

"चल यह सब छोड़, वैसे तुमने अपनी कंपनी के बारे में कुछ बताया नहीं। क्या करते हो तुम लोग"? मम्मी बात संभालते हुए बोली।

"अच्छा मम्मी सुनो, वह बड़े पंडित जी आये तो उनको जरा ग्यारह हज़ार एक रुपये दे देना। यह विचार मुझे उनको देखकर ही आया। याद है जो आपने मेरे लिए पूजा करवाई थी, तब वह पूजा का सारा सामान, बर्तन, गोमूत्र, गोबर सब लेकर आए थे कि आजकल यजमानों को बड़ी परेशानी होती है सामान जुटाने में, इसलिए मैं ही सारी सामग्री एकत्रित कर देता हूँ। अच्छा मम्मी पापा जरा सुनना पाँच मिनट मेरा बहुत जरूरी फोन आ रहा है ।आप जरा मेरे असिस्टेंट से बात करों। वह आपको मेरी कंपनी के बारे में बताएगा । मैं अपनी जरूरी कॉल खत्म करके फिर से आपसे बात करता हूँ", इतना कहकर सुयश ने अपने असिस्टेंट को बुला कर फ़ोन पकड़ा दिया। 

 बूढ़े पति पत्नी एक दूसरे का मुँह देख रहे थे उन्हें कंपनी के बारे में नहीं, इसी बहाने अपने बेटे से ढेरों बातें करनी थी । उसकी आवाज सुननी थी। 

असिस्टेंट को लगा कोई क्लाइंट (ग्राहक) है तो वह शुद्ध व्यवसायिक रूप से बात करने लगा, "सर आपको हमारे यहां सबसे अच्छी व्यवस्था मिलेगी। आपके मरने के बाद आपको किसी भी चीज की चिंता करने की जरूरत नहीं होगी। हम ही सारे इंतजाम करेंगे। कफ़न, अर्थी, पंडित से लेकर बाल काटने के लिए नाई, कंधा देने के लिए चार लोग, यहाँ तक कि अगर आप चाहेंगे तो रोने के लिए और "राम नाम सत्य" कहने के लिए भी कुछ लोगों को एकत्रित कर लेंगे। यहां तक कि हम अस्थियां विसर्जित करने की जिम्मेदारी भी लेते है। सारे क्रिया कर्म पूरी तरह से आपके धर्म के, रीति रिवाज के अनुसार। सॉरी सर मैंने तो पूछा ही नहीं कि आप किस धर्म के हो ? यह तो मैंने हिंदू धर्म के रिवाजों की बात की। आप अपना धर्म और रिवाज़ बता दीजिए, हम सब कुछ लिखकर रख लेंगे । सुनने में थोड़ा खराब लगता है पर क्या है ना सर आजकल हालात ऐसे हैं कि बच्चे माँ बाप से दूर है । इकलौता बच्चा होने के कारण लोगों के पास रिश्ते भी नही बचे है । आप एक बार अपनी आवश्यकताएं बता दीजिए तो उस हिसाब से हम आपको खर्च का पूरा ब्यौरा दे देंगे"। 

यह सब सुनकर बूढ़े माता पिता की आँखे भर आई। वह बोले, "ठीक है ! आप हम दोनों के लिए हिंदू रिवाज से दो अंतिम संस्कार बुक कर दीजिए। जीते जी तो यह आँखे रास्ता ही देखती रही उनके आने का । कम से कम मरने के बाद यह तसल्ली तो रहेगी कि शरीर को इंतजार नही करना पड़ेगा। वैसे बेटे तुम मरने के बाद यह सारे लोग किराए पर रहते हो, क्या तुम्हारे पास किराए पर देने के लिए बेटा, बहू, बेटी, दामाद, नाती पोतियाँ भी है क्या ? जिससे मरने से पहले हम जी सके। हमारा अकेलापन दूर हो सके । अपने साहब से कहना मरने के बाद सदगति की चिंता करना तो बहुत ही अच्छा विचार है। पर कोशिश करो किराए पर अपनापन जताने वाले भी देना शुरू कर दें। हम बूढ़ों को जीते जी खुशियों के चार पल पर मिल जाएंगे।

 लाइन के उस तरफ रिसीवर हाथ में पकड़े बेटे की आँखे नम थी । उसने अभी अभी कॉल खत्म करके, अपने असिस्टेंट से रिसीवर लिया था। वह कुछ बोल पाता तब से उसके अपने पापा को खुद के मरने के बाद के लिए इंतजाम करवाते सुना। क्या सच में उसके मम्मी पापा को लगता है कि वह भी अपने माता पिता के अंतिम संस्कार पर भी नही पहुँच पाएगा ? क्या उसके पापा सही कह रहे है ? आज लोगों को अंतिम संस्कार की भीड़ नही, जीते जी समय बिताने के लिए लोग चाहिए। मरने के बाद सदगति मिले यह सोच अच्छी है पर मरने से पहले हमारे बुजुर्ग अकेलेपन से ना मरें इसका इंतज़ाम करना, समाज का कर्तव्य है। अगर आप के आस पास बुजुर्ग है तो उनकी अंतिम यात्रा में जाने का इंतजार मत कीजिये। हो सके तो यूँ ही कभी कभार मिल लिया कीजिये। यक़ी मानिए वे आपके उनके अंतिम संस्कार में ना पहुँच पाने का बुरा नही मानेंगे।


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