STORYMIRROR

Vijay Erry

Inspirational Others

4  

Vijay Erry

Inspirational Others

अनंत असीम

अनंत असीम

5 mins
0

अनंत असीम 

लेखक: विजय शर्मा एरी

(लगभग १५०० शब्दों में)

रात गहरी थी। गाँव की। बिजली गई हुई थी, इसलिए सारे तारे बाहर आ गए थे, जैसे कोई बहुत दिनों से बंद पड़े थे और आज अचानक दरवाज़ा खुल गया हो। छोटा सा आँगन, मिट्टी की दीवारें, और ऊपर वो अनंत आकाश।

दस साल का आरव खाट पर लेटा था। उसकी दादी उसके पास बैठी थीं, सिरहाने एक मिट्टी का दीया जल रहा था। दादी ने धीरे से पूछा, “सोया नहीं अभी?”

आरव ने सिर हिलाया। “दादी, वो तारे कहाँ से आते हैं?”

दादी मुस्कुराईं। “बहुत दूर से, बेटा। जहाँ हमारी आँखें भी नहीं पहुँच पातीं।”

“और वो कभी खत्म नहीं होते?”

“शायद नहीं। शायद हाँ। कोई नहीं जानता।”

आरव चुप हो गया। उसका छोटा सा दिल कुछ समझना चाहता था जो शब्दों से परे था।

अगले दिन सुबह उसकी जिंदगी बदल गई।

स्कूल जाते वक्त उसने देखा कि गाँव के बाहर वाली सड़क पर एक बड़ा सा ट्रक पलटा पड़ा था। उसमें से किताबें बिखरी हुई थीं। ढेर सारी किताबें। आरव दौड़ा। उसने एक किताब उठाई। उस पर लिखा था – “खगोल विज्ञान की प्राथमिक जानकारी”। पन्ने फटे हुए थे, पर चित्र साफ थे। तारे, ग्रह, आकाशगंगाएँ।

उस दिन से आरव की दुनिया बदल गई। वो किताब उसने छिपा ली। रात को दीये की लौ में पन्ने पलटता, चित्र देखता और सोचता – “क्या सचमुच मैं भी कभी वहाँ पहुँच पाऊँगा?”

गाँव में कोई टेलिस्कोप नहीं था। शहर दूर था। पिता खेतों में मजदूरी करते थे। माँ बीमार रहती थीं। पर आरव ने हार नहीं मानी। उसने बांसू की पुरानी साइकिल के पहियों के स्पोक्स निकाले, लकड़ी के टुकड़े जोड़े, दादी की पुरानी साड़ी का कपड़ा लिया और अपना पहला टेलिस्कोप बनाया। वो टूटता, फिर बनता।

एक रात, जब चाँद नहीं था, आरव छत पर चढ़ा। उसने अपना कच्चा टेलिस्कोप आँख से लगाया। धुंधला था, पर एक तारा चमक उठा। वो चिल्लाया, “दादी! देखो! मैंने देख लिया!”

दादी ऊपर आईं। उनकी आँखें नम थीं। “हाँ बेटा, तूने देख लिया। अब तुझे कोई नहीं रोक सकता।”

समय गुजरा। आरव बड़ा हुआ। गाँव के लोग हँसते – “ये पागल लड़का तारों से बात करता है।” पर आरव चुपचाप पढ़ता रहा। उसने पुरानी किताबें इकट्ठी कीं, रेडियो पर अंग्रेजी सीखी, शहर के पुस्तकालय में घुसकर नोट्स बनाए।

एक दिन गाँव में खबर आई कि दिल्ली से एक वैज्ञानिक आ रहा है, गाँव के स्कूल में बच्चों को तारे दिखाने। नाम था डॉ. मेहता। आरव सुबह से तैयार था। जब डॉ. मेहता ने अपना बड़ा सा टेलिस्कोप लगाया, आरव सबसे आगे खड़ा था।

रात हुई। डॉ. मेहता ने कहा, “कोई सवाल?”

आरव ने हाथ उठाया। “सर, क्या कोई ऐसा तारा है जो मरने के बाद जहाँ हम चले जाते हैं?”

सारे बच्चे हँसे। डॉ. मेहता नहीं हँसे। उन्होंने आरव को पास बुलाया। “तूने कभी एंड्रोमेडा गैलेक्सी देखी है?”

आरव ने सिर हिलाया।

“वहाँ दो ट्रिलियन तारे हैं। हमारी आकाशगंगा में तीन सौ बिलियन। और पूरी ब्रह्मांड में शायद दो ट्रिलियन आकाशगंगाएँ हैं। सोच, कितने तारे। अगर हर तारे के पास एक ग्रह है जहाँ जीवन है… तो हम अकेले नहीं हैं, आरव। और मरने के बाद? शायद हमारा शरीर यहाँ रह जाता है, पर हमारी ऊर्जा, हमारी चेतना… वो कहीं और चली जाती है। विज्ञान अभी नहीं जानता। पर सवाल पूछना बंद मत करना।”

उस रात डॉ. मेहता ने आरव को अपना पता दिया। “जब बड़ा हो जाए, दिल्ली आना। मैं इंतज़ार करूँगा।”

आरव बीस साल का हुआ। पिता नहीं रहे। माँ चल बसीं। दादी अकेली थीं। आरव ने गाँव छोड़ने से पहले दादी से पूछा, “मैं चला जाऊँ?”

दादी ने उसका माथा चूमा। “तू तो पहले ही जा चुका है, बेटा। तेरी आँखें तारों में बसती हैं। जा। बस कभी-कभी लौटकर अपनी दादी को बता देना कि तूने क्या-क्या देखा।”

दिल्ली में आरव ने दिन में मजदूरी की, रात में पढ़ाई। डॉ. मेहता ने उसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के एक छोटे से प्रोग्राम में दाखिला दिलवाया। वहाँ उसने पहली में पहली बार असली टेलिस्कोप छुआ। उसकी आँखें भर आईं।

वर्ष गुज़रे। आरव अब डॉ. आरव शर्मा था। उसने चंद्रयान-३ के कुछ हिस्सों पर काम किया। फिर आदित्य-एल१। पर उसका सपना और बड़ा था। वो जानना चाहता था कि ब्रह्मांड की शुरुआत कैसे हुई थी। वो डार्क मैटर, डार्क एनर्जी को समझना चाहता था।

एक दिन उसे अमेरिका से बुलावा आया – कैलिफोर्निया में एक बड़ा रेडियो टेलिस्कोप प्रोजेक्ट। वहाँ वो गया। वहाँ उसने पहली बार Event Horizon Telescope के जरिए ब्लैक होल की तस्वीर बनाने में हिस्सा लिया। दुनिया ने तालियाँ बजाईं।

पर आरव का मन नहीं भरा। वो लौट आया। भारत लौट आया। उसने हिमालय की ऊँचाई में, लद्दाख में एक नया ऑब्जर्वेटरी बनाने का प्रस्ताव रखा। सरकार ने मंजूरी दी। नाम रखा – “अनंत आकाश वेधशाला”।

उद्घाटन के दिन आरव मंच पर खड़ा था। उसकी दादी नहीं थीं। वो तीन साल पहले चल बसी थीं। पर आरव ने माइक थामा और बोला:

“ये वेधशाला किसी एक व्यक्ति की नहीं है। ये उस दस साल के बच्चे की है जिसने पहली बार आकाश में झाँका और सोचा कि शायद वहाँ भी कोई उसकी तरह अकेला बैठा तारे गिन रहा होगा।

ये उस दादी की है जिसने कहा था, ‘जा बेटा, आकाश बहुत बड़ा है, तुझे जगह मिल जाएगी।’

ये उन सारी किताबों की है जो सड़क पर बिखरी मिली थीं।

और ये उन सारी रातों की है जब मैंने सोचा कि शायद मैं कभी नहीं पहुँच पाऊँगा… पर पहुँच गया।

आज यहाँ जो सबसे बड़ा टेलिस्कोप लगा है, उसका नाम मैंने रखा है – ‘दादी’। क्योंकि उन्होंने मुझे सिखाया कि आकाश अनंत है, और इंसान का हौसला उससे भी बड़ा हो सकता है।”

भीड़ में तालियाँ गूँजीं। पर आरव की आँखें ऊपर थीं। वो जानता था कि कहीं बहुत दूर, किसी तारे पर, दादी मुस्कुरा रही होंगी।

रात हुई। सब चले गए। आरव अकेला छत पर था। उसने अपना पुराना, टूटा-फूटा, घर का बना टेलिस्कोप निकाला जो आज भी उसके पास था। उसने उसे आँख से लगाया। धुंधला था अब भी। पर एक तारा चमक उठा।

आरव धीरे से बोला, “दादी, मैं घर आ गया।”

और उस रात, अनंत आकाश में, एक तारा ज़रा ज़्यादा चमक उठा, जैसे जवाब दे रहा हो।

जय हिंद। जय विज्ञान।

और जय उस बच्चे का, जो कभी हार नहीं मानता।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational