अनमोल रत्न
अनमोल रत्न
एक आदमी था, अन्य कई आदमियों की तरह । उसकी एक पोटली थी और उसमें रंग बिरंगें , काले पीले और चितकबरे कई तरह के पत्थर थे। मानो तो रोड़ी जानो तो रत्न ।
खैर, एक पेड़ के नीचे बैठ कर अकसर वह अपनी पोटली खोल कर देखा करता था । कुछ को देख कर वह बहुत खुश होता तो कुछ पर वह ध्यान नहीं देता। एक पारदर्शी रत्न तो उसे खास पसंद था । इसमें उसके बच्चे से उसके रिश्ते की चमक थी ।इसी तरह एक रंग बिरंगे पत्थर में उसकी पत्नी से उसके रिश्ते की चमक थी ।
आज तक वह जितने लोगों से मिला और रिश्ते बनाए, वह किसी न किसी रूप में इस पोटली में थे, कुछ ठोस तो कुछ भुरभुरे ।
वह पेड़ उसे पत्थरों में उलझा देख कुछ न कहता, केवल मुस्कुराता
एक दिन वह बहुत परेशान था। पेड़ ने कहा वह सरकारी कर्मचारी वाला घिसा-पिटा रोड़ा क्यो नही इस्तेमाल करते? उसने वैसा ही किया, उसकी मुसीबत तो दूर हो गई पर वह रोड़ा हमेशा के लिए खो गया ।
इसी तरह एक दिन वह बहुत दुखी था, पेड़ के पूछने पर बताया कि उसके सबसे ठोस और पुराने पत्थर में दरार आ गई है ।यह उसके दोस्त के रिश्ते की चट्टान थी।
कभी वह बहुत खुश भी होता जैसे उस दिन जब वह एक नया चमकीला पत्थर लाया, अपनी बहू के आने पर।
पत्थरों को अकसर वह धो पोछ कर साफ भी करता।
किन्तु समय के साथ रत्नों की चमक जाती रही। उसके बेटे के भी रत्न में वो पारदर्शिता नहीं रही। और सच कहें तो उसमें भी रिश्तों की पोटली के लिए वह उत्साह नहीं रहा ।
एक दिन ऐसा भी आया कि वह अनमने भाव से पेड़ के नीचे बैठा रहा पर पोटली नहीं खोली।और सहसा बोल उठा, " पेड़, तुमसे यह कैसा रिश्ता है जब रिश्ते धूमिल हो गये, यह वैसे का वैसा ही है।"
पेड़ खिलखिला कर हँसने लगा और बोला ," यह पोटली के बंधन में नहीं है, यह खुली हवा में सांस लेता है!"
