PRAVIN MAKWANA

Inspirational

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PRAVIN MAKWANA

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अँदर और बाहर

अँदर और बाहर

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एक दिन मैं अपने अध्यापक से मिलने गया। उनकी केबिन में पहुँचा तो वह पढ़ रहे थे। मुझे देखकर तुरंत खड़े हो गए। "अरे, धनंजय तुम! आओ बेटा आओ।" मुझे बुलाकर अपने पास बैठा लिया।

अनुस्नातक के मेरे दो साल उनके सानिध्य में ही बीते। दिल से पढ़ाते थे। वे निष्ठावान अध्यापक थे। बहुत ही ज्ञानी फिर भी डाउन टू अर्थ। सभी के साथ मिलनसार और हसमुख स्वभाव था उनका। उन्होंने मेरा दिल जीत लिया था। मैंने भी उनके हृदय में अपने लिए ऊँचा स्थान बना रखा था। मैं पढ़ाई में अव्वल था। नियमित था। जो भी पढ़ाया जाता उसे मैं तुरंत समझ जाता। उत्तर देने में भी आगे रहता। कभी किसी काम से जी नहीं चुराया। इसीलिए उनका लाडला था।

"बेटा, सुना है तुम बहुत बढ़िया पढ़ाते हो। तुम जैसे होनहार विद्यार्थी ही आने वाली पीढ़ियों की नींव हैं। तुम्हारी उन्नति देखकर बहुत खुशी होती है।"

मैं फूला न समाया। मैंने कहा, "सर, आपका आशीर्वाद है। आप से बहुत कुछ सीखा है मैंने। आपको निरंतर देखा है। आपकी योग्यता और पढ़ाने के तरीके ने ही मेरा निर्माण किया है।"

"लेकिन अभी तक तुम अच्छी तरह से गढ़ नहीं गए। पी.जी. में जैसे थे वैसे के वैसे ही हो।"

"मतलब सर?"

"एक शिक्षक जैसा परिवर्तन आ जाना चाहिए तुम्हारे अंदर। तुम्हारे कपड़े अभी भी वैसे ही होते हैं बिल्कुल, ढीले ढाले। इस्त्री बिना। कोई मैचिंग नहीं। पहनने की स्टाइल भी अभी तक वैसी की वैसी है।"

".........."

"तुम्हारे हाथ में यह कड़ा अब शोभा नहीं देता। गले में रुद्राक्ष की माला ठीक नहीं लगती।लंबी दाढ़ी। पैरों में अभी भी चप्पल पहनते हो। जब तक विद्यार्थी थे, यह सब ठीक था।"

"लेकिन सर, पढ़ाने के लिए बाहर के दिखावे से क्या? विद्यार्थियों को तो सिर्फ ज्ञान ही चाहिए ना!

"तुमने मुझे नहीं देखा?"

"देखा है ना सर। आप तो हमेंशा अप टू डेट रहते हैं।"

"उसमें से कुछ भी नहीं सीखा क्या?"

"लेकिन सर, वह आपकी स्टाइल है। आप आप हैं, मैं मैं हूँ।"

"ऐसा नहीं चलेगा।"

"बाहर के दिखावे से क्या होता है सर?" आप ही तो कहते हैं कि इंसान को अँदर से शुद्ध होना चाहिए। मैं अंदर से बिल्कुल चौबीस कैरेट शुद्ध हूँ।"

"लेकिन बाहर से भी 24 कैरेट शुद्ध रहने में तुम्हें हर्ज ही क्या है?"

मैं उनकी ओर ताकता रह गया। उनकी आँखों में मेरे लिए 24 कैरेट शुद्धता का भाव बह रहा था। उसे कैसे अनदेखा किया जा सकता था ? मैंने उस दिन से अँदर और बाहर का संतुलन बना लिया।


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