minni mishra

Tragedy Inspirational

4.0  

minni mishra

Tragedy Inspirational

अम्मा का फैसला

अम्मा का फैसला

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“कमला, आज बड़े दिनों बाद मैंने चाव से खाना खाया है ! सच, माँ की याद आ गई !”


“वाह! तब तो तू हर रविवार मेरे घर आ जाया कर। मेरे पति छः महीने के लिए कम्पनी के काम से विदेश गये हैं, हम दोनों मिलकर गप्पे लड़ाएँगे। मैं घर में बोर हो जाती हूँ । ” 

कमला ने घर आयी सहेली, शांति से हँस कर कहा।


“प्रत्येक रविवार को यहाँ आना नामुमकिन है ! खैर ! पहले एक बात बता,  ये बूढ़ी मेड जो तेरे घर में खाना बनाती है... महीने का कितना लेती है ? बहुत टेस्टी खाना बनाती है, मैं हाथ चाटते रह गई । उसको मेरे घर भी भेज देना ,जो पैसे मांगेगी, मैं दूँगी।  मेरी सास पेरेलाइस्ड है , बेचारी बिछावन से उठ नहीं पाती है ! हर वक्त एक आदमी उनके पास चाहिए। यदि, खाना बनाने वाला कोई मिल जाती तो मुझे बहुत राहत होती।" कमला ने मन की बात सहेली को सुनाई। "


दोनों की बातें सुनकर बूढ़ी ने सकपकाते हुये कमला के समीप आकर कहा , “बेटी.. मुझसे अधिक काम नहीं होता ! इतना कर लेती हूँ.. वही काफी है। एक बूढ़ी विधवा को जीने के लिए पेट भरने से अधिक और क्या चाहिए !”


“कोई बात नहीं अम्मा ! आप मेरी सहेली के घर को बढ़िया से संभालते रहिए, मैं किसी को ढूंढ लूँगी। ”


"कमला, मुझे जाने दे, शाम होने वाली है। ” घर जाने के लिए शांति उतावली हो गई।

“ अरे... आज तो रुक जा , मेरा मन नहीं भरा। ”


“ नहीं, मेरी सास मेरा इंतजार कर रही होगी। वो सिर्फ मेरे हाथ से दवा खाना पसंद करती है। अपने बेटे से कहती है , “ तू बहुत हड़बड़ाकर दवा खिलता है । बहू को देख, कितना बढ़िया बच्चों की तरह फुसलाकर मुझे दवा खिलाती है। “   


तभी... सिसकने की आवाज आयी। "ओह ! क्या हुआ आपको ? बताइए अम्मा !” शांति से उसके आँसू देखे नहीं गए , तुरंत बूढ़ी के पास जाकर उसने मधुरता से पूछा।


“ कुछ नहीं बेटी ! इन आँसुओं का क्या भरोसा ! कब टपक पड़े !” बूढ़ी ने आँसू पोछते हुये जवाब दिया।


“अरे.. खड़ी होकर, यहाँ नौटंकी क्यों करती हो ? जाओ.. जल्दी से काम निपटो। रसोई में बहुत काम पड़े हैं ।” कमला आँखें तरेरते हुये बूढ़ी पर बरस पड़ी ।


“ जाती हूँ , ब.....उ...|” बूढ़ी के मुँह से निकले अधूरे शब्द कान में पड़ते ही शांति की आँखें फटी की फटी रह गईं ! प्रश्नवाचक दृष्टि लिए उसने कमला को घूरते हुये पूछा, “ तुम्हारी सास है ...? परन्तु ! तुमने तो...! हे भगवान !“


शांति के अप्रत्याशित सवाल से कमला का सिर लाज के मारे लटक गया, वह बुत बन खड़ी रही।


"पति की माँ को तुमने नौकरानी बना डाला! मुझे सहेली कहने में शर्म आ रही है ! मैं यहाँ अब एक मिनट नहीं रूक सकती ! पता चला कि तुम इसी शहर में आयी हो, सो बचपन की प्यारी सहेली से मैं मिलने आ गयी। छीः पति की अकूत दौलत ने तुम्हारे माँ -बाप के दिए संस्कार को धो-पोंछ डाला!" 

 

”अम्मा , आप मेरे साथ चलिए । वहाँ बेटी के अलावे आपको एक बहन भी बात करने के लिए मिल जायेंगी। " कहते हुए शांति ने बूढ़ी की कलाई पकड़ते हुये सीधे बाहर दरवाजे की तरफ चल पड़ी। परंतु ,वहीं सामने हॉल के दीवाल पर टंगी दिवंगत पति की तस्वीर पर नजर पड़ते ही बूढ़ी ठिठक गयी। बाहर से आ रहे तेज हवा के झोंके के कारण फोटो धड़ाम से गिर गया ,उसका शीशा चकनाचूर हो गया। लेकिन कागज की तस्वीर पर खरोंच तक नहीं लगी ! तस्वीर, मानो पत्नी से गुहार लगा रही थी , " प्रिय, मुझे भी अपने साथ ले चलो। इस घर में किसी को अब इसकी जरूरत नहीं है।"

बूढ़ी ने पति की तस्वीर को उठाकर सीने से लगाया और शांति के साथ बेखौफ़ नये सफर के लिए निकल पड़ी ।



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