अलहदगी
अलहदगी
वह कहने लगी, "अलहदगी हो रही है हमारी..."
उस आवाज़ में नमी नहीं थी...बल्कि खुश्की का अहसास हुआ...
मैं ठहरी एक लेखिका....जिंदगी को अलग नज़रिये से देखने वाली लेखिका !
वे दोनों पति पत्नी मेरे अज़ीज़ दोस्त हुआ करते थे.... घर में आना जाना हुआ करता था....इस प्यारे कपल का तलाक का फ़ैसला हम सभी को अजीब लग रहा था....
लेकिन उन दोनों के बीच के फ़ासले कुछ ज्यादा ही बढ़ गए थे।
एक लेखिका और एक दोस्त होने के कारण मैंने तमाम कोशिशें करके देख ली। लेकिन उन दोनों के तलाक का फ़ैसला फाइनल हो गया और आखिरकार अलहदगी भी हो गयी।
मेरा लेखिका वाला मन इसे क़बूल नहीं कर पा रहा था। मुझे लगा अगर यह पति पत्नी इस मोड़ पर विदा लेकर फिर से एक मुस्कुराहट के साथ दोबारा मिल जाए तो कितना अच्छा होगा...मिलकर सारे गिले शिकवे भुलाकर फिर से अपनी दुनिया बसा लें अगर....
आप भी हँसते हुए कह रहे होंगे कि ये लेखक और कवि न जाने किस मिट्टी के बने होते है और ना जाने कौन सी दुनिया में रहते है जिन्हें ना दुनियादारी की समझ होती है और ना ही हक़ीक़त की !