अजनबी
अजनबी
"मम्मी ,अपना ख्याल रखना ,बिना मोबाइल के बाहर मत जाना । एड्रेस वाला पेपर हर समय अपने साथ ही रखना।" हिदायतें देते हुए बिट्टू के चेहरे पर अब भी डर स्पष्ट था।। दरवाजा बंद करके जानकी उसे खिड़की में से जाता हुआ देख रही थी।
अपने इकलौते और लाडले बेटे बिट्टू की ऑस्ट्रेलिया में नौकरी लगने पर पैर छूकर एयरपोर्ट जाते हुए, और हाथ हिलाकर बिट्टू ने जब एयरपोर्ट में प्रवेश किया तो वह पल जानकी जी के लिए तो अत्यंत असहनीय था। वर्मा जी और जानकी भी एक दूसरे को जस तस समझाते हुए , एक दिन खुद भी ऑस्ट्रेलिया घूमने की योजना बनाते हुए हुए एअरपोर्ट से वापस आ रहे थे।
समय अनवरत गति से चल रहा था। बिट्टू को कंपनी की तरफ से एक अपार्टमेंट मिल गया था। वर्मा जी और जानकी रोज तो बिट्टू से बात करते ही थे, पासपोर्ट वीजा की फॉर्मेलिटी पूरी करने के बाद वह दोनों भी ऑस्ट्रेलिया घूमने जाने के लिए तैयार हो ही रहे थे कि अचानक पड़े दिल के दौरे ने न केवल वर्मा जी की जीवन लीला समाप्त की बल्कि जानकी के भी जीवित रहने का कारण खो दिया।
बिट्टू आया तो था, लेकिन जानकी जी को रिश्तेदार और पड़ोसियों के सहारे अकेले छोड़कर वापिस जाने के अलावा उसके पास और कोई रास्ता भी तो ना था। कभी घर के बाहर भी अकेले ना जाने वाली जानकी बिट्टू के कहने पर और उसके टिकट भेजने पर पहली बार अकेली ऑस्ट्रेलिया तक गई। सिडनी तक की फ्लाइट में उसे एक जगह रुकना भी था। लोग सच ही कहते हैं कि एक स्त्री "बहन ,बेटी और पत्नी के रूप में" भले ही कमजोर हो लेकिन एक मां कभी किसी भी हालात में नहीं डरती। अपने बिट्टू से मिलने के लिए अकेली ही उसने इतनी लंबी हवाई यात्रा करी।
विदेश में बिट्टू का छोटा सा घर, उसका साथ जानकी जी को बहुत अच्छा लगता था। ममता बिट्टू को विदेश में भी अपने हाथ का खाना खिला कर निहाल हो उठी। बिट्टू के दफ्तर जाते ही घर में सूनापन और ज्यादा गहरा जाता। वहां आसपास ना तो वह किसी को जानती थी और ना ही कभी बिट्टू को इतना समय था कि वह आस-पास वालों से दोस्ती रखता। घर आकर वह अपने लैपटॉप में व्यस्त हो जाता। थोड़ी दूर पर एक बहुत ही सुंदर झरने वाले पार्क में वह दोनों वीकेंड में घूमने चले जाते थे।
ऑस्ट्रेलिया का अजब गजब सा मौसम, वर्मा जी की यादें, बिट्टू के दफ्तर जाने के बाद उन्हें अपने देश में सब की याद आ रही थी। यादों के भंवर से खुद को निकालने के लिए वह घर से उस पार्क के लिए निकल गई जहां कि बिट्टू और वह अक्सर छुट्टी वाले दिन आकर बैठते थे। वहां पर मनोहर से झरने, प्रकृति की अनंत शोभा, हालांकि अंदर अच्छा ना हो तो बाहर भी कुछ मनमोहक नहीं लगता। थोड़ी देर बैठ कर जानकी वापस आने को हुई ,लेकिन शायद वह गलत गली में मुड़ गई थी। अचानक ही मौसम ने बदलाव लिया और कुछ आंधी तूफान का अंदेशा हुआ, जानकी जी घबराहट में जाने कौन कौन से रास्ते पकड़ गई थी।
यह मौसम का असर था या रात गहराने को थी, पता नहीं पर जानकी जी को कुछ सूझ नहीं रहा था। वहां के अजनबी लोग उसकी टूटी फूटी इंग्लिश समझ भी नहीं पा रहे थे। मोबाइल वह लेकर नहीं गई थी और घबराहट में वह घर का नंबर और जगह दोनों ही भूल गई थी।
समस्या बेहद विकट थी।अब--??? तभी एक विदेशी वृद्ध महिला उन्हें सामने से गुजरती हुई दिखी। जानकी जी की भाषा तो नहीं लेकिन वह उनके आंसुओं को तो जरूर समझ पा रही थी। अनजान जगह में बस इतना ही काफी था। उसने जानकी से उसके बेटे का नाम और जिस कंपनी में उनका बेटा काम करता है उस कंपनी का नाम पूछा?
बिट्टू की कंपनी में मैसेज भिजवा दिया गया कि अपनी मां के बारे में जानने के लिए बिट्टू इस नंबर पर संपर्क करें।
बिट्टू भी आदतन अपनी मां से दफ्तर से फोन पर एक या दो बार बात जरूर करता था और अब उनका फोन ना मिलने से वह खुद भी काफी परेशान था।
उसको रिसेप्शन से उसकी मां के बारे में मैसेज मिला, बिट्टू ने जब उस देय नंबर पर संपर्क करा तो उसकी जानकी जी से बात हो गई। दोनों की जान में जान आ गई। वह वृद्ध महिला जानकी जी को अपने अपार्टमेंट में ले गई। बिट्टू ने अपनी मम्मी को इस मौसम में उन महिला के घर जाने के लिए कह दिया था। शायद वह भी अकेली थी। जब जानकी जी उस अजनबी महिला के घर गई तो दोनों एक दूसरे की भाषा ना जानते हुए भी एक सहायता करके, और एक सहायतापाकर बहुत खुश थी।
थोड़ी ही देर में बिट्टू भी आ गया और उन्हें धन्यवाद करके मां ,बेटे अपने अपार्टमेंट में चले गए।
सुबह दफ्तर जाते हुए जानकी जी को बहुत सारी हिदायतें देता हुआ छोटा सा बिट्टू पहली बार जानकी जी को बहुत बड़ा लग रहा था। इतना बड़ा कि अब वह जानकी जी का ख्याल रख सकता है। लेकिन उसने-----------यह क्या किया? प्यारा बिट्टू!!!! जानकी जी पिछले दिन का हादसा याद कर बेहद दुखी हो रही थी की भी वजह है कि उन्होंने बिट्टू को कितना परेशान किया और खुद भी परेशान हुई।
पाठक गण इस कहानी के माध्यम से मैं भी यह कहना चाहती हूं कि यदि कभी कहीं बाहर घूमने जाएं तो बच्चे ही नहीं बुजुर्गों के हाथ में भी उनके नाम पता वाली पर्ची और मोबाइल जरूर दी जाए।