chandraprabha kumar

Children Stories Inspirational

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chandraprabha kumar

Children Stories Inspirational

ऐरावत

ऐरावत

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एक समय की बात है, दो पड़ौसी राजाओं में अनबन हो गई। धीरे धीरे यह अनबन शत्रुता में बदल गई। धीरे धीरे शत्रुता बढ़ती गई। शत्रुता इतनी बढ़ी कि उनमें युद्ध की नौबत आ गई। दोनों ने अपनी अपनी सेनाएँ इकट्ठी करनी शुरू कर दीं। और अपनी अपनी सेनाएँ बढ़ानी शुरू कर दीं। और युद्ध की शुरुआत हो गई। 

उनमें से एक राजा को विचार आया कि ज्योतिषी से पूछा जाय कि विजय किसकी होगी। उसने राज ज्योतिषी को बुलाकर इस बारे में पूछा। ज्योतिषी ने गणना करके बताया कि विजय तुम्हारी होगी। राजा ने पूछा -‘ मुझे कैसे पता चलेगा‘?

 ज्योतिषी ने कहा-‘ तुम्हारी सेना के आगे आगे ऐरावत चलेगा, अर्थात् श्वेत गज चलेगा तो समझ जाना कि तुम्हारी विजय हो रही है।‘

राजा उत्तर सुनकर संतुष्ट हो गया और अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हो गया। 

दूसरे राजा को इसके बारे में अपने गुप्तचरों से पता चला, पर उसने हिम्मत नहीं हारी और कसकर युद्ध की तैयारी में लगा रहा। 

युद्ध शुरू हो चुका था। दोनों तरफ़ की सेनाएँ वीरता से लड़ रही थीं ।पहले राजा की सेना के आगे आगे सफ़ेद हाथी कुछ ऊँचाई पर अन्तरिक्ष में चल रहा था ।उसे देखकर राजा में और राजा की सेना में ख़ुशी की लहर दौड़ गई। अपनी विजय पक्की समझ पहला राजा ख़ुशी से फूल गया। और आराम से लड़ने लगा। 

उधर दूसरा राजा उस पहले राजा की सेना के आगे सफ़ेद हाथी चलता देखकर घबराया नहीं, उसने और वीरता से लड़ना शुरू किया और अपनी सेना में भी जोश भरा। उसकी सेना भी प्राणों का मोह छोड़कर लड़ी। राजा ने अपनी सेना से कहा -‘ मुस्तैदी से युद्ध करो। शत्रु ढीला पड़ गया है, विजय हमारी निश्चित है।‘

दूसरे राजा के सैनिक बहादुरी से लड़े। राजा उनका उत्साह बढ़ाता आगे -आगे चलरहा था बिना अपने प्राणों की परवाह किये। राजा को आगे चलता देख सैनिकों में भी और जोश बढ़ा, उत्साह बढ़ा, सबने बहादुरी से लड़ाई की। 

धीरे धीरे पासा पलटने लगा। दूसरे राजा की विजय सामने दिखने लगी। अब जो ऐरावत पहले राजा की सेना के आगे दिखाई दे रहा था, वह इस दूसरे राजा की सेना के आगे चलता दिखाई दिया। 

ऐरावत को सामने नहीं देखकर दूसरे राजा का उत्साह ख़त्म हो गया। विजय की उम्मीद छूट गई। उसके सैनिक भी हतोत्साह हो गए। वे हारने लगे। 

दूसरे राजा की जीत हो गई। पहले राजा को हार का सामना करना पड़ा। दूसरे राजा ने उसका राज्य भी अपने राज्य में मिला लिया। 

  राज्य को खोकर ,हारकर पहला राजा फिर ज्योतिषी के पास गया और कहा-‘ आपने झूठी भविष्यवाणी की थी कि मैं विजयी होऊँगा, मैं तो हार गया।‘

ज्योतिषी ने कहा-‘ विजय तो तुम्हारी ही ओर थी,पर मैंने यह कब कहा था कि प्रयत्न करना छोड़ दो। अपना प्रयास कभी नहीं छोड़ना चाहिये। सोये हुए सिंहों के मुख में हिरन अपने आप नहीं आते, उसे भी जागकर प्रयास करना पड़ता है। तुम्हें भी विजय के मद में अपना प्रयत्न नहीं छोड़ना चाहिये था। उत्साह व जोश से वीरता से युद्ध करना चाहिये था’। राजा यह सुन निरुत्तर हो गया। 

बात सही थी। कर्म ही प्रबल है। कर्म से प्रारब्ध भी पलट जाता है। हार -जीत की बात छोड़कर अपना प्रयत्न करते रहना चाहिये। सफल हों या असफल यह चिन्ता छोड़कर हमें अपने हिस्से का कर्म पूरी लगन एवं निर्भयता से करते रहना चाहिये,फिर उसका सुफल मिलने में देर नहीं लगती। अपने प्रमाद, आलस्य एवं उत्साह हीनता से ही असफलता का मुँह देखना पड़ता है,अच्छा भाग्य भी पलट जाता है।


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