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Vijay Erry

Romance Others

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Vijay Erry

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अधूरी मुलाकात

अधूरी मुलाकात

5 mins
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अधूरी मुलाकात

लेखक: विजय शर्मा एरी

दिल्ली की सर्द हवाएँ नवंबर के आखिरी दिनों में कुछ ज्यादा ही ठंडी लगती हैं। स्टेशन की प्लेटफॉर्म नंबर सात पर खड़े होकर आरव एक पुरानी घड़ी को बार-बार देख रहा था। ट्रेन अभी दस मिनट लेट थी। उसके हाथ में एक लाल रंग का गुलाब था, जिसकी पंखुड़ियाँ ठंड से सिकुड़ने लगी थीं। दस साल। पूरे दस साल बाद आज वह मिलने वाली थी।

नाम था उसका — अनन्या।

आरव को आज भी याद है वो दिन। 2015 का दिसंबर। कॉलेज का आखिरी सेमेस्टर। लाइब्रेरी के बाहर बारिश हो रही थी और अनन्या अपनी किताबें बचाने की कोशिश कर रही थी। आरव ने अपना जैकेट उसके सिर पर डाल दिया था। पहली मुलाकात। पहली मुस्कान। पहला झगड़ा। पहला वादा।

"पढ़ाई पूरी होते ही शादी कर लेंगे।" अनन्या ने कहा था।

"पक्का?" आरव ने उसका हाथ थामा था।

"पक्का। तुम जहाँ जाओगे, मैं वहाँ आ जाऊँगी।"

फिर वही हुआ जो अक्सर होता है।

आरव को लंदन में जॉब मिल गई। अनन्या के पापा नहीं माने। "पहले लड़की की नौकरी पक्की हो, फिर शादी की बात करेंगे।" अनन्या ने मना किया था जाने से, लेकिन आरव के सपने बहुत बड़े थे। उसने कहा था, "दो साल। सिर्फ दो साल। मैं वापस आऊँगा।"

दो साल पाँच हुए। फिर सात। फिर दस।

फोन कॉल्स कम हुए। मैसेजेस सूखे-सूखे से। "बिजी हूँ" बन गया सबसे आम जवाब। वीडियो कॉल्स में अनन्या की आँखों के नीचे काले घेरे बढ़ते गए। आरव के बालों में सफेदी। दोनों ने एक-दूसरे को दोष दिया। कभी-कभी चुप्पी ने सारी बातें कह दीं।

फिर एक दिन अनन्या का मैसेज आया —

"मैं दिल्ली आ रही हूँ। 28 नवंबर को। पुरानी दिल्ली स्टेशन। प्लेटफॉर्म नंबर सात। दोपहर के बारह बजकर पैंतीस मिनट पर। आओगे?"

आरव ने सिर्फ एक शब्द लिखा — "आऊँगा।"

और आज वही दिन था।

ट्रेन आई। दरवाजे खुले। लोग उतरे। आरव की नजर हर चेहरे पर रुकती, फिर आगे बढ़ती। दस साल में लोग बहुत बदल जाते हैं। क्या वह पहचान पाएगा?

फिर उसे दिखी।

सफेद साड़ी में। बाल अब भी लंबे, पर अब खुले नहीं थे। एक साफ-सुथरी सी चोटी। चेहरा थोड़ा पतला हो गया था। आँखों में वही पुरानी चमक थी, पर अब उसमें कुछ और भी था — जैसे कोई पुराना दर्द जो मुस्कान के पीछे छिपा हो।

उसने आरव को देखा। एक पल को दोनों रुक गए। जैसे समय ने साँस रोकी हो।

फिर अनन्या ने धीरे से मुस्कुराते हुए हाथ हिलाया। आरव के पैर अपने आप आगे बढ़े। गुलाब उसके हाथ में अब भी था।

"हाय..." अनन्या की आवाज में हल्की सी काँप थी।

"हाय..." आरव का गला रुँधा हुआ था।

दोनों एक-दूसरे के सामने खड़े थे। दस साल का फासला। दस साल की चुप्पी। दस साल के सवाल।

आरव ने गुलाब आगे बढ़ाया। अनन्या ने लिया। उसकी उँगलियाँ ठंडी थीं।

"तुम... बदल गए हो।" अनन्या ने कहा।

"तुम नहीं बदलीं।" आरव ने झूठ बोला। दोनों जानते थे कि दोनों बदल गए हैं।

"चाय पीते हैं?" आरव ने प्लेटफॉर्म की कैंटीन की ओर इशारा किया।

अनन्या ने सहमति में सिर हिलाया।

दो प्लास्टिक की कुर्सियाँ। दो कुल्हड़ चाय। बीच में एक छोटी सी टेबल। जैसे कॉलेज के कैंटीन में हुआ करती थी।

"कैसी हो?" आरव ने पूछा।

"ठीक हूँ।" अनन्या ने कुल्हड़ घुमाया। "तुम?"

"मैं भी ठीक हूँ।"

खामोशी।

फिर अनन्या ने धीरे से कहा, "मैं शादी कर रही हूँ, आरव।"

आरव का हाथ रुक गया। कुल्हड़ उसके होंठों से कुछ इंच दूर थम गया। उसने चाय एक घूँट में पी ली। गला जल गया, पर उसने कुछ नहीं कहा।

"कब?" आखिरकार उसने पूछा।

"अगले महीने।"

"कौन है?"

"पापा का दोस्त का बेटा। आईएएस है। अच्छा लड़का है।"

"तुम्हें पसंद है?"

अनन्या ने कुछ देर सोचा। फिर बोली, "वह मुझे दुखी नहीं रखेगा।"

आरव ने सिर झुका लिया।

"तुमने किसी को...?" अनन्या ने अधूरा सवाल पूछा।

"नहीं।" आरव ने कहा। "किसी को तुम्हारी तरह प्यार नहीं कर पाया।"

अनन्या की आँखें नम हो गईं। उसने जल्दी से चेहरा दूसरी तरफ कर लिया।

"मैंने बहुत कोशिश की थी, आरव। तुम्हें रोकने की। तुम नहीं रुके। फिर मैंने भी कोशिश की भूल जाने की। नहीं भूल पाई। पर अब थक गई हूँ।"

आरव चुप रहा।

"याद है, तुमने कहा था — दो साल। सिर्फ दो साल। मैंने इंतजार किया। पहले दो, फिर चार, फिर सात। दसवें साल में पापा ने कहा — अब बस। मैंने हाँ कर दी।"

आरव ने कुछ कहना चाहा, पर शब्द नहीं निकले।

अनन्या ने अपना पर्स खोला। एक पुराना फोटो निकाला। कॉलेज का ग्रुप फोटो। दोनों बीच में थे। अनन्या ने मुस्कुराते हुए आरव का गाल खींच रखा था।

"ये रखो।" उसने फोटो आरव की ओर बढ़ाया। "मेरे पास बहुत सारी यादें हैं। तुम्हारे पास शायद कुछ भी नहीं बचा।"

आरव ने फोटो लिया। उसकी उँगलियाँ काँप रही थीं।

"मैं जा रही हूँ।" अनन्या उठी। "ट्रेन का समय हो गया।"

आरव भी उठा। दोनों स्टेशन के बाहर तक साथ चले। रिक्शा वाला इंतजार कर रहा था।

अनन्या ने रिक्शे में बैठते हुए कहा, "ख्याल रखना अपना।"

आरव ने कुछ कहना चाहा। बहुत कुछ। माफी माँगनी थी। वापस बुलाना था। कहना था कि वह अभी भी उतना ही प्यार करता है। पर सिर्फ इतना बोला, "तुम खुश रहना।"

अनन्या ने मुस्कुराने की कोशिश की। रिक्शा चला गया।

आरव वहीँ खड़ा रहा। लाल गुलाब अब उसके हाथ में नहीं था। फोटो था। और एक खालीपन जो शायद कभी नहीं भरेगा।

शाम होने लगी थी। स्टेशन की लाइटें जल गईं। भीड़ कम हो गई थी। आरव धीरे-धीरे प्लेटफॉर्म की बेंच पर बैठ गया। फोटो को उसने छाती से लगाया।

दूर कहीं एक ट्रेन की सीटी बजी।

जाने कौन सी ट्रेन थी।

जाने कहाँ जा रही थी।

बस इतना पता था कि वह ट्रेन अब कभी नहीं रुकेगी।

और उनकी मुलाकात हमेशा के लिए अधूरी रह गई।

(शब्द संख्या: लगभग १५२०)


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