Ragini Ajay Pathak

Others

4.5  

Ragini Ajay Pathak

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अच्छी मां

अच्छी मां

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"हैलो! मां मैं कल बच्चोंं के साथ घर आ रही हूं। कुछ दिनों के लिए आपसे मिलने" स्नेहा ने अपनी माँ सरलाजी से फोन पर कहादरअसल स्नेहा एक साल से कोरोना की वजह से मायके नहीं आ पाई थी। जिस कारण वो अभी कुछ दिनों के लिए अपने मायके आ रही थी।फोन रखकर सरलाजी ने अपनी बहू रमा को आवाज देते हुए कहा,"रमा!कल स्नेहा आ रही है बच्चोंं के साथ"कहती हुई सरलाजी जब रमा के कमरे तक पहुंची। जहाँ से तेज तेज आवाजें आ रही थी

रमा- "अच्छा चीटिंग किया तो मैं नहीं खेलूंगी"

बच्चें -"मम्मी क्या यार ,आप तो हमें बार बार हरा दे रही हो?"

"अब हमारी गोटियो को मत काटना प्लीज"

कमरे में पहुँचर उन्होंने देखा," रमा अपने दोनों बच्चों सोनू(9) और सोनिया(7) के साथ लूडो खेल रही थी"

वो तीनो लूडो खेलने में इतने व्यस्त थे कि उनको सरलाजी का कमरे में आना पता ही नहींं चला।ये देख सरलाजी ने गुस्से में चिल्लाते हुए कहा,"रमा! ये सब क्या हो रहा है?"

"मैं तुम्हें कब से आवाज दे रही हूं? ,और तुम यहाँ बच्चों के साथ खेलने में व्यस्त हो। बच्चों के साथ बच्ची बनी शोर शराबे कर रही हो। हद हो गयी अब तो, इसलिए बच्चे तुमसे डरते नहींं। माँ हो तो मां की तरह रहो। वरना भविष्य में ये तुम्हें अपने इशारों पर नाचने लगेंगे।"गर्दन झुकाये रमा और बच्चे सरलाजी की बातों को चुपचाप सुन रहे थे।

"कल स्नेहा आ रही है। यही बताना था तुम्हें सारी व्यवस्था कर दो उसकी और उसके बच्चों के लिए कमरा ठीक से साफ कर देना।"

"जी माँजी" रमा ने कहा

और उनके जाते बच्चें रमा की तरफ देखने लगे तो उसने मुस्कुरा दिया। जिसे देख बच्चें भी हँसने लगे। फिर उसने कहा,"अच्छा अब तुम दोनो अपने होमवर्क खत्म करो तब तक मैं काम करती हूँ।"

"माँ आप कहो तो सफाई में हम आपकी हेल्प करा दे फिर हम होमवर्क भी कर लेंगे" बच्चों ने आग्रह किया तो रमा ने हां में सिर हिला दिया।इधर रमा सोचने लगी. अब तक तो सिर्फ दो लोग ही थे हर बात में टोका टाकी करने के लिए अब तो तीन हो जाएंगे। अब तेरा क्या होगा रमा तू तो गयी काम से।

स्नेहा की आदत थी हर बात में रमा को नीचा दिखाने और खुद को महान और परफेक्ट दिखाने की। वो हर बार हर चीज में रमा को टोकती कभी बच्चों की परवरिश, कभी खान पान तो कभी रहन सहन को लेकर हर बात में बच्चों की तुलना और खुद की तुलना करना उसकी आदत थी। जो रमा को बिल्कुल भी पसंद नहीं था। लेकिन मजबूरी में उसको सुनना ही पड़ता। घर की शांति बनाए रखने के लिए।

दअरसल रमा अपने बच्चों के साथ कभी बच्ची बन जाती। तो कभी माँ, बच्चों और रमा का एक दूसरे के साथ ये दोस्तना व्यवहार रमा के सास और पति अमर दोनो को नहीं पसन्द था।

उनके हिसाब से बच्चे वेल डिसिप्लिन और हर काम मे स्मार्ट होने चाहिए। उन्हें मल्टी टैलेंटड बच्चे पसन्द थे। जब कि रमा की सोच इससे बिल्कुल अलग थी।उसे लगता था कि छोटी सी उम्र में बच्चों के कंधों पर हम अपेक्षाओं का अतिरिक्त बोझ रख कर उन्हें और खुद को सिर्फ और सिर्फ तनाव में डालते है। जिससे हम खुशहाल जीवन ना जी कर तनावग्रस्त जीवन जीने लगते है।

अगले दिन स्नेहा दोनों बच्चों खुशी (8) और कुश (6) के साथ सुबह सुबह छ: बजे घर आ गयी। स्नेहा के दोनों बच्चे और रमा के बच्चों की उम्र लगभग समान थी। स्नेहा ने घर मे घुसते ही सबसे पहले बच्चों को नहला धुला कर आठ बजे स्कूल की ऑनलाइन क्लास के लिए बैठा दिया।

इधर रमा के भी बच्चें ऑनलाइन क्लासेज करने के लिए बैठ गए। तब तक रमा ने सबके लिए नाश्ता चाय सब तैयार करके कराया। और दोपहर के खाने की तैयारियों में लग गयी।रमा के दोनों बच्चे भी दोपहर 12 बजे तक खाली हो गए।

सभी बच्चों ने साथ बैठकर खाना खाया। सोनू और सोनिया ने खुश होकर कहा,"मम्मी अब हम इसके बाद कुश और खुशी के साथ मिलकर कैरम खेलेंगे।"

इतनी बात सुनते कुश और खुशी की आंखे खुशी से चमक गयी और खुशी बोल पड़े "येह"। लेकिन अगले ही पल वो अपनी मम्मी की तरफ देखकर चुप हो गए।

तभी स्नेहा ने कहा,"सोनिया और सोनू अभी नहीं अभी खुशी और कुश की ऑनलाइन क्लासेज है।"

"आप लोगो की भी तो होंगी,क्लासेज"

"नहीं बुआ अब हमारी कोई क्लासेज नहीं,अब हम सीधा शाम को पढ़ाई करेंगे" बच्चों ने एक सुर में एक दूसरे की तरफ देखते हुए कहा और वहाँ से खेलने चले गए।

इधर खुशी और कुश ऑनलाइन ही एक्स्ट्रा एक्टिविटी की ऑनलाइन क्लासेज कर रहे थे। स्नेहा ने डांस, आर्ट एंड क्राफ्ट, योगा, और कराटे क्लासेज के साथ साथ ऑनलाइन टयूशन भी लगा रखा था।

सोनिया और सोनू दोनो किचन में भी छोटे मोटे कामो और घर के कामो में भी रमा की मदद कर देते। जिसे देखकर स्नेहा अक्सर ही रमा को टोक देती।

रविवार दिन स्नेहा,सरलाजी और अमर बैठकर बातें कर रहे थे। बच्चें आपस मे कैरम खेल रहे थे। तभी अमर ने स्नेहा से कहा,"लैपटॉप पर बैठकर काम करते करते पीठ अकड़ जाती है,साथ ही आंखे और सिरदर्द अलग से होने लगा है।"

स्नेहा ने कहा,"हाँ भैया ये तो सही कहा आपने लेकिन अब मजबूरी में करना ही पड़ेगा, वरना नौकरी हाथ से चली जायेगी। फिर और मुसीबत"

रमा भी तब तक सबके लिए चाय बनाकर लायी। और सबको चाय दे कर वो भी वही बैठ गयी। रमा को वहाँ बैठा देखकर बच्चों ने कहा,"माँ आप भी आओ ना हमारे साथ खेलने।"

बच्चों की इतनी बातें सुनकर स्नेहा ने रमा से कहा-

"बुरा मत मानना भाभी,लेकिन आपको एक अच्छी माँ नहीं कहा जा सकता, जो खुद के आराम के लिए बच्चों का भविष्य खराब कर दे,आप बच्चों के भविष्य पर जरा भी ध्यान नहीं दे रही।"

रमा ने कहा,"मतलब में समझी नहीं दीदी।"

स्नेहा-"मतलब आप समझना नहीं चाहती या वाकई नहीं समझ रही। आप ने बच्चों को कोई एक्स्ट्रा क्लासेज नहीं लगाई, बच्चे पुरा दिन खेल कूद करते है साथ मे समय मिलते आप भी उनके साथ बच्चों में बच्ची बन जाती है। क्या आपको नहीं पता कि अब सिर्फ पढ़ाई से काम नहीं चलने वाला। बच्चों को हर क्षेत्र में आगे होना चाहिए।तभी वो जमाने के साथ चल पाएंगे।तभी अमर ने कहा,"किसको समझा रही है स्नेहा। जो खुद बच्चोंं के साथ बच्ची बनी रहती है। इनको समझाना मतलब हाथी को चड्डी पहनना है। कहते हुए अमर ने व्यंग मुस्कान भरी।

इतना सुनते रमा ने कहा,"दीदी अच्छी या बुरी माँ का खिताब मुझे दुसरो से नहींं चाहिए। क्योंकि ये मेरे बच्चें और मैं तय करूंगी की मैं कैसी मां हुँ। शायद मैं आप लोगो की नजरों में अच्छी माँ नहीं हुँ। क्योंकि मुझे ना खुद को ना अपने बच्चों को किसी और की अपेक्षाओं पर खरा उतारना है ना ही उतारना चाहती हूं। मैंने खुद को और अपने बच्चोंं को भी दूसरों की अपेक्षाओ से आजाद रखा है।"

अभी थोड़ी देर पहले अमर ने कहा,"कि ऑनलाइन काम से उनको कमर और आंखे सिर सब दर्द होता है। तो क्या ये समस्या बच्चों के साथ नहीं होगी। जिन्हे हम डर और भय से ऑलराउंडर बनाना चाहते है। खुद को दुनिया की नजरों में आदर्श और परफेक्ट माँ साबित करने के लिए।"

कभी आपने सोचा है कि इसका दुष्प्रभाव क्या होगा? बच्चोंं के साथ साथ खुद के स्वास्थ्य और मानसिक विकास पर। अगर बड़े होने पर बच्चे ने आपका विद्रोह करना शुरू कर दिया तो या भगवान ना करे कि अत्यधिक तनाव से उसके साथ कोई स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याएं हो गयी तो।

आये दिन हम रोज कुछ ना कुछ बच्चों के साथ घटनाएं सुनते रहते है। उसका कारण क्या है? सिर्फ और सिर्फ आवश्यकता से अधिक अपेक्षाएं। आजकल लोग खुद की और बच्चों की क्षमता समझकर उन्हें सही दिशा में ले जाने की बजाय भीड़ में सबकी बराबरी करना पसंद करते है। 

कि अरे फला बच्चे ने ये किया तो मेरे बच्चे को भी करना ही होगा। 

दीदी अगर सब बच्चे एक समान एक ही कार्य करे तो आज दुनिया मे अल्बर्ट आइंस्टीन और सचिन जैसे बच्चे नहीं होते। हर बच्चे की अपनी क्षमता है। बस उनसे अपेक्षाएं कम रखिये और सही मार्गदर्शन कीजिए।

और आज हमने अपने बच्चोंं के साथ उनका बचपना नहीं जिया तो कल को बड़े होने के बाद हम सिर्फ पछताने के और कुछ नहीं कर पाएंगे। और मैं अच्छे से जानती हूं कि मेरे बच्चों के लिए क्या सही और क्या गलत है।?

कोरोना की बजह से वैसे ही पिछले एक साल से बच्चें घर मे कैद हो गए है। उनके स्कूल और बाहर खेल कूद सब कुछ बन्द हो गया है। ऐसे में हम माता पिता को उनके मानसिक विकास पर जोर देना चाहिए ना कि सिर्फ और सिर्फ ऑनलाइन क्लासेज के भरोसे रहना चाहिए।

"मम्मी जल्दी आइये।" बच्चों ने दोबारा आवाज लगायी।

"आ रही हूं" चलती हूं बच्चे बुला रहे रहे।

तभी खुशी और कुश ने कहा,"मामी तो बहुत अच्छी मम्मी है। आप दोनो बहुत लकी हो,काश हमारी मम्मी भी हमारे साथ ऐसे ही खेलती। लेकिन वो तो हमें सिर्फ डांटती रहती है पढ़ो पढ़ो, हम दोनो ने तो तय कर लिया है कि हम बड़े होकर मम्मी के साथ नहीं रहेंगे"

स्नेहा अपने बच्चोंं के मुँह से ये बात सुनकर स्तब्ध रह गयी। उसे अपनी गलती का एहसास हो चुका था।

कहानी का सार सिर्फ इतना है कि इस आधुनिकता की होड़ में हम खुद ही अपने बच्चों का बचपना उनसे कही ना कही छीन ले रहे है। परफेक्ट स्मार्ट और हर क्षेत्र में अग्रणी रहने की अपेक्षा ने मां और बच्चोंं दोनो की आजादी को छीन लिया है। जिससे आजकल बहुत कम उम्र के बच्चे भी मानसिक अवसाद का शिकार हो रहे है। जिससे हमें खुद को और अपने बच्चों को भी बचाना होगा। हम औरतें कैसी माँ है। ये हम खुद तय करेंगे कि हमे कैसी माँ बनना है। ना कि समाज और नाते रिश्तेदार इस बात को तय करेंगे। 



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