अभिमान
अभिमान
यह कथा महाभारत काल की है। जब महाभारत युद्ध समाप्त हो गया, तो अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से कहा-" मैंने इस युद्ध में बहुत से करने न करने वाले कर्म किए हैं, उनका प्रायश्चित करना चाहता हूँ, आप मुझे गंगा किनारे ले चलें। उसमें स्नान करके मैं पवित्र हो जाऊँगा।" भगवान कृष्ण मुस्काए, समझ गए अब भी यह दृष्टा भाव नहीं ला पाया और बोले-" कि बहुत अच्छा भाव है।" चलो गंगा किनारे चलें, वहाँ जाकर गंगा किनारे से कुछ दूरी पर भगवान कृष्ण ने रथ रोक दिया। बोले-" मैं तो यहाँ रुक कर थके हुए घोड़ों की मालिश कर लूँगा, घास खिलाऊँगा, इतनी देर में तुम जाकर गंगा स्नान कर आओ।"
जब अर्जुन गंगा किनारे की तरफ चला उसने एक बड़ा ही अद्भुत दृश्य देखा, कि एक मनुष्य मृत पड़ा हुआ है, और उसके चारों तरफ कुत्ता चक्कर लगा रहा है, परंतु खा नहीं रहा है। कुत्ते के हाव भाव से वह समझ गया था कि वह बहुत भूखा है। परंतु यह देख कर कि उसको खा नहीं रहा, अर्जुन को अचरज हुआ कि वह एक जगह पेड़ के नीचे ठहर गया। भगवान कृष्ण ने उस समय उसको कुत्ते की भाषा समझने की बुद्धि दे दी। अर्जुन ने देखा कि एक दूसरा कुत्ता आया और पहले कुत्ते से बोला-" कि मित्र तुम बहुत भूखे लगते हो और भोजन भी सामने हैं परंतु तुम इसको खा नहीं रहे हो। इसका क्या कारण है?" पहला कुत्ता बोला-" कि देखो पिछले जन्म में जो हमने बुरे कर्म किए थे उससे तो हमको ये योनि मिली। यह तो लाश है, वह ऐसे मनुष्य की है जिसने बहुत बुरे कर्म किए हैं। इसको खाकर मैं अपनी दशा खराब नहीं करना चाहता।" दूसरा कुत्ता बोला-" चलो गंगा किनारे चलते हैं। चलने लगे तो एक कुत्ते की नजर अर्जुन पर पड़ गई। देखो अर्जुन खड़ा है, वह भी कितना मूर्ख है यही समझता है कि युद्ध मैंने लड़ा, जबकि भगवान कृष्ण ने सारे उपदेश दे दिए थे, यह भी समझा दिया था कि तू मुझ में ध्यान लगाकर युद्ध कर। तू मुझे प्राप्त होगा।"
ऐसा कहीं नहीं कहा था-" कि तू विजय को प्राप्त होगा। उनके मन का भाव समझ कर उसको कार्य करना चाहिए था, परंतु है तो मूर्ख। वह अभी भी यह समझता है, कि मैंने युद्ध लड़ा। और गंगा स्नान करके पवित्र होने जा रहा है।
जब अर्जुन ने सुना, आंखें खुल गई, और उल्टे पांव लौट गया। भगवान श्री कृष्ण के सामने जब पहुँचा, वह बोले-" कि ऐसा लगता है कि तुम बिना स्नान किए ही लौट आए।
अर्जुन भगवान के चरणों में गिरकर बोले कि-" हे भगवन ! मुझे क्षमा कर दीजिए, मैं अभी भी यही मूर्खता कर रहा था, कि मैं समझ रहा था कि युद्ध मैंने लड़ा। असल में मैं अपने "अभिमान" में इतना डूब गया था, कि आपके प्रभुत्व को ही भूल गया।
"अतः अभिमान मनुष्य को प्रभु से दूर कर देता है।"