minni mishra

Abstract Tragedy Classics

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minni mishra

Abstract Tragedy Classics

आस

आस

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आम के बगान ने पड़ोसी लीची के बगान से कहा, “यार...मालिक भी हद्द करते हैं,केवल गर्मी के छुट्टी में बच्चों के साथ आते हैं ...कच्चे-पक्के सभी फल खट्टी के हाथों बेच कर, फिर वापस शहर चले जाते हैं | एक बार पास आकर हाल-चाल भी नहीं पूछते !

“अरे या...र , फलों के राजा होकर भी तुम बुद्धू जैसे बातें करते हो ! ”

साल भर से आस लगाए , गाँव में रह रहे बीमार , बूढ़े माता-पिता का जो खोज खबर नहीं लेते ...वो बेजुबान की भाषा क्या समझेगा !”

 “नहीं चाचा, ऐसी बात नहीं है, प्राइवेट नौकरी में छुट्टी भी बहुत कम मिलती है ,उस पर से गांव आने में बहुत मशक्कत है ...बस,ट्रेन, ऑटो बदल-बदल कर आना जो पड़ता है|

 गांव आने के नाम पर ही मन भारी हो जाता होगा। साल में एकबार सपरिवार आकर बेटे होने का फर्ज तो पूरा कर ही लेता है न? " आम के नन्हें पौध ने गंभीरता से बुदबुदाता हुए कहा।

 इतना सुनते ही बुजुर्ग पेड़ों की आँखें नम हो गई ,सभी एकटक ऊपर आकाश को निहारने लगे। 


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